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November 22, 2024 4:27 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! “सुदामा और वो केवट” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 61 !!-भाग 1 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! “सुदामा और वो केवट” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 61 !!-भाग 1 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! “सुदामा और वो केवट” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 61 !!

भाग 1

अरे ! ये क्या !

सुदामा जब उठे और सामने जो देखा , तो देखकर चौंक गए थे ।

सुदामा को झपकी आगयी थी थके थे ही , सुबह ही निकले थे अपने गाँव से , वैसे चले तो ज़्यादा नही थे , दो ढाई कोस ही चले होंगे , पर देह मैं तो शक्ति है नही आत्मशक्ति कितना काम दे देगी , देह चलने के लिए अन्न तो माँगता ही है ना ! इसलिए कुछ ही दूर चलकर लेट गए थे बेचारे सुदामा जी…..अब जब उठे तो सामने कुछ और ही देखा , समुद्र लहरा रहा है , सागर की बड़ी बड़ी लहरें उठ रही हैं उसकी अपनी ही गर्जना है ।

अरे ! ये क्या !

सुदामा चौंक गए थे ।

पर सागर निकट तो था नही , मैं इतनी जल्दी कैसे पहुँच गया सागर तक ? सुदामा विचार करते हैं ……किन्तु फिर सोचते हैं मेरे लिए तो अच्छा ही हुआ ना , सुदामा प्रसन्न हो उठे हैं ….भगवान जो भी करता है अच्छा ही करता है , । सुदामा उचके और समुद्र के मध्य में उन्हें वह दिव्य नगरी दिखाई दी , ध्वजा लहरा रही थी । लो ! मैं तो पहुँच गया द्वारिका । सुदामा हंसते हैं , वो पथिक कह रहा था मुझे पहुँचने में पूरा जीवन लग जाएगा , लोग कुछ भी बोलते हैं , सुदामा प्रसन्न हैं । ऐ भैया ! ये जो नगरी दिखाई दे रही है इसका नाम क्या है ? सुदामा जी पक्का करने के लिए एक पथिक से फिर पूछते हैं ……द्वारिका , वो बोलता हुआ चला जाता है ।

लो , हम तो आगये द्वारिका , धन्यवाद सुशीला ! तेरे कारण मुझे अपने मित्र के दर्शन होंगे ,

वो मुझे मिलेगा ? नही नही , मेरा नाम सुनते ही मुझ से मिलने आएगा ।

मैं कहूँगा ना , उज्जैन , ऋषि संदीपनी के यहाँ हम लोग पढ़े थे ,

क्या वो भूल गया होगा ? सुदामा फिर दुखी हो उठते हैं , अगर वो हमें भूल गया होगा तो ?

तो क्या हुआ ! तुरन्त सुदामा अपना आत्मबल बढ़ा लेते हैं , , तुझे धन सम्पत्ति थोड़े ही चाहिए , तुझे तो दर्शन ही चाहिए ना सुदामा ! फिर क्यों दुखी होता है वो पहचानेगा तो ठीक, नही पहचानेगा तो और ठीक , तू तो अपने सखा को देख लेना , निहार लेना , बस ।

ये विचार करते हुए सुदामा अपनी लाठी लेकर फिर खड़े हो गए , “दुःख चिन्ता वहाँ होती है जहाँ चाह हो , कामना हो , यहाँ तो कोई कामना है ही नही , फिर काहे की चिन्ता” सुदामा अपने इस सिद्धांत को मन ही मन दोहराते हैं , और खड़े हैं समुद्र के किनारे ।

बड़ी बड़ी नौकाएँ हैं , आती हैं लोग उसमें बैठते हैं नौका वाला उनसे शुल्क लेता है तब नौका चलती है ।

सुदामा ने जब पहली नौका देखी तब उसमें चढ़ना चाहा , पर नाव वाला जब शुल्क माँगता हुआ आया सुदामा के पास तब संकोचवश सुदामा उतर गए स्वयं ही …..”जाना नही है तो लोग बैठते क्यों हैं “। । नौका वाला थोड़ा रिसाय भी गया था ।

सुदामा अब बैठ सागर किनारे , वैसे पास ही में है द्वारिका , दिखाई दे रही है । थोड़ी तैराकी भी जिसे आती हो वो तैरता हुआ जा सकता है द्वारिका , पर इस ब्राह्मण को तो वो भी नही आती ।

सुदामा लहरों को देख रहे हैं , लहरें आती हैं फिर चली जाती हैं , हंसते हैं “ये संसार भी लहरों की तरह ही है , आती है फिर जाती है , स्थिर तो सागर है , वही तो परमात्मा है , धीर गम्भीर एक रस “। लो, सुदामा इसी चिन्तन से प्रसन्न हो उठे । दोपहर की वेला हो गयी है , ऊपर से धूप , पर सुदामा को इन सबसे कोई फर्क पड़ने वाला नही है , वो अपने आपमें ही लीन हैं ।


अरे किसी को पार जाना है क्या ? अब सीधे शाम को आएगी नाव !

एक नाव लेकर आगया था केवट , और आवाज़ लगा रहा था ।

ओ पण्डित जी ! तुम जाओगे क्या पल्लीपार ? सुदामा ही थे उस समय वहाँ , पर सुदामा तो अपने आत्मचिंतन में लीन थे वो कहाँ से सुनते , पर सुना सुदामा जी ने जब तीन बार उस केवट ने सुदामा को ही इंगित करके कहा तब सुदामा का ध्यान उधर गया ।

क्रमशः …
शेष चरित्र कल –

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