श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “श्रीकृष्णसुदामा का अद्भुत सख्यरस”- उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 66 !!
भाग 1
सुदामा ! चलो अब तुम भोजन कर लो ,
श्रीकृष्ण ने सुदामा का हाथ पकड़ा और बड़े प्रेम से उठाया था ।
पर अभी तो मैं स्नान करूँगा , सुदामा ने कहा ।
तुम तो वैसे ही पवित्र हो सुदामा ! चलो , भोजन ही कर लो पहले । श्रीकृष्ण फिर आग्रह करने लगे थे ।
देखो कृष्ण ! मैं तुम्हारी सारी बात मान लूँगा पर स्नान किए बिना मैं कुछ खाऊँगा नही ।
सुदामा ने स्पष्ट कह दिया था ।
अच्छा ! कुछ सोचते हुए श्रीकृष्ण ने अपनी रानियों से कहा , चलो ! मेरे मित्र को स्नान कराओ ! ये भी आदेशात्मक वाक्य थे श्रीकृष्ण के अपनी रानियों के प्रति ।
जो आज्ञा नाथ ! हाथ जोड़ती हुई रानियाँ तुरन्त वहाँ से चली गयीं ।
कृष्ण ! तेरी बात बहुत मानती हैं तेरी रानियाँ , वाह ! सोलह हजार एक सौ आठ को नचा रखा है तूने , हिम्मत है ! मानना पड़ेगा तुझे , सुदामा श्रीकृष्ण के कन्धे में अपने हाथ रखते हुए बोले थे ।
अब स्नान कर लो , भूख भी सता रही होगी ना ! श्रीकृष्ण ने कहा , और ताली बजाईं ।
बस श्रीकृष्ण की ताली क्या बजी सोलह हजार एक सौ आठ रानियाँ फिर वहाँ पर आ गयीं ।
ये अब क्यों आयी हैं ? सुदामा श्रीकृष्ण से पूछते हैं ।
“अब सुदामा अपनी भाभियों से ही पूछो”। श्रीकृष्ण पीछे जा कर खड़े हो गए ।
“आप हमारे प्राणनाथ के मित्र हैं और आप ब्राह्मण भी हैं ऐसा सुयोग फिर कब मिलेगा , इसलिए हम सब आपको स्नान कराएँगी , इस सेवा से हमें वंचित मत कीजिएगा”। ये कहते हुए सब रानियाँ सुदामा के चरणों में गिर गयीं ।
कृष्ण ! ये सब क्या है ? सुदामा ने श्रीकृष्ण से पूछा ।
अरी रानियों ! ये मेरे मित्र बड़े संकोची हैं , सेवा की आज्ञा ये नही देंगे इसलिए आप को जो सेवा करनी हो करो ।
अपनी रानियों को ये कहकर सुदामा की ओर श्रीकृष्ण ने देखा और हंसे ।
सुन्दर सुवर्ण का पाटा वहीं लगाया गया । सुदामा जी को बैठने के लिए कहा । श्रीकृष्ण दूर जाकर खड़े हो गए और मुस्कुरा रहे हैं । किन्तु सुदामा जी बहुत घबड़ाए हुए थे ।
सौ रानियाँ अब दूसरी ओर से आयीं , उनके हाथों में कुछ था ,
ऐ इधर आओ , श्रीकृष्ण ने रानियों को पहले अपने पास बुलवाया । और सुदामा को सुनाने के लिए जोर से बोले …..इसमें क्या ? “उबटन” रानियों ने उत्तर दिया ।
सुदामा को सुनाते हुए विनोद प्रिय श्रीकृष्ण बोले – मित्र ! उबटन है ।
सुदामा तो पाटा से उछलकर श्रीकृष्ण के पास जाकर खड़े हो गए थे , ना , कृष्ण ना , ये सौ रानियाँ मिलकर मुझे उबटन लगाएँगी तो बेचारा सुदामा तो गया , सुदामा को देह तो देख , हड्डी का ढाँचा है , इसमें क्या उबटन ।
श्रीकृष्ण खूब हंसे । हंस मत , अपनी रानियों को कह दे की उबटन हम लोग नही लगाते , बस जल से स्नान करते हैं । सुदामा ने श्रीकृष्ण से कहा ।
सुनो , उबटन रहने दो , तुम सब को सेवा करनी है ना , तो एक एक कलश में जल ले आओ , और बड़े प्रेम से इनके ऊपर चढ़ाओ । श्रीकृष्ण फिर हंसकर बोले थे ।
क्या मतलब ! सुदामा उखड़ गए , जल चढ़ाओ का क्या मतलब ? मैं कोई शिव लिंग हूँ जो जल चढ़ाओ कह रहे हो । अच्छा मेरे ब्राह्मण देवता ! आप पाटा में बैठ जाओ , ये सब आपको स्नान कराएँगी , आप बैठ जाओ बस । सुदामा को श्रीकृष्ण ने फिर पाटा में बैठा दिया था ।
सुदामा पाटा में बैठे ही थे कि उधर से फिर चाँदी और सुवर्ण के कलशों में जल भरकर सोलह हजार एक सौ रानियाँ आने लगीं ।
सुदामा फिर घबड़ाए , वो इस बार भी उछलकर भागने वाले थे पर श्रीकृष्ण ने उन्हें उठने नही दिया ,
अब क्या हुआ ? हंसी रोककर श्रीकृष्ण ने सुदामा से फिर पूछा ।
अरे ! सोलह हजार एक सौ आठ कलशों से मैं नहाऊँगा तो भैया ! मैं तो बह ही जाऊँगा ।
पर इन सब की इच्छा है , श्रीकृष्ण अपने सखा से विनोद कर रहे हैं , सख्य रस में ये आवश्यक भी तो है ।
तो तुम क्या चाहते हो इन बेचारियों को सेवा से वंचित रखा जाए ?
मैंने कब कहा ! सुदामा बोले । देख कृष्ण! एक कलश को सब छू लें फिर उस कलश का जल तुम अपने हाथों से मुझ पर डालों , सब को सेवा का पुण्य मिला की नही ! श्रीकृष्ण अपनी रानियों से बोले – यही करो ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
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