श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “वो सुदामा के चिउरा” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 67 !!
भाग 1
सुदामा का स्नान भोजनादि सब हो चुका था, श्रीकृष्ण अब अपने इस सखा का प्रेम से हाथ पकडे वहाँ ले जाते हैं जहाँ एक साथ सोलह हजार एक सौ आठ उनकी रानियाँ बैठी हुई हैं ।
यहाँ क्यों ? सुदामा इतनी सारी रानियों को जहां देखते हैं वहीं असहज हो उठते हैं ।
ये सब हमारे बारे में जानना चाहती हैं , इनकी उत्सुकता है सुदामा ! हमारी मित्रता को लेकर , और ये गलत भी तो नही है । श्रीकृष्ण सुदामा को सहज बनाकर ऊँचे सिंहासन में बिठाते हैं ।
रुक्मणी को इशारा करके श्रीकृष्ण अपने पास बुलाते हैं , रुक्मणी के साथ साथ सत्यभामा भी उठकर चली आती हैं ।
आहा ! सुदामा के पीछे खड़ी हैं ये दोनों सृष्टि की मूल शक्ति , श्रीशक्ति और भूशक्ति , लक्ष्मी और पृथ्वी । ये दोनों सुदामा को पंखा झल रही हैं ।
ये ब्राह्मण कितना भाग्यशाली है ना ! महारानी जाम्बवती इस अनुपम दृश्य को देखकर अपने साथ बैठी महारानी भद्रा से कहती हैं ।
हाँ , देखो तो लक्ष्मीस्वरूपा महारानी रुक्मणी स्वयं पंखा कर रही हैं , भद्रा ने जाम्बवती की बात पर “हाँ” मिलाई ।
अरे भद्रा ! ये क्या कह रही हो , उस अद्भुत द्र्श्य को तुम भूल गयीं जब भगवान नारायण स्वरूप श्रीकृष्ण स्वयं जिनके नीचे बैठ कर चरण पखार रहे थे , वहाँ लक्ष्मी अगर पंखा झले तो क्या बड़ी बात है । जाम्बवती ने कहा इसलिए तो ….धन्य है ये ब्राह्मण, भद्रा ।
ये अवधूत भिक्षु ! महारानी रुक्मणी पीछे पंखा कर रही हैं और सोच रही हैं ।
और मैं महालक्ष्मी , क्या तप क्या व्रत क्या दान इसने किया होगा कि मैं महालक्ष्मी स्वयं इनकी सेवा में उपस्थित हूँ !
जीजी ! तप नही कोई महातप इसने किया होगा । सत्यभामा पृथ्वी की अवतार हैं , वो भी समझ गयीं कि महालक्ष्मी के मन में अभी क्या चल रहा है , इसलिए वो भी बोल उठीं थीं ।
इस अद्भुत अलौकिक द्र्श्य को जिसने भी देखा वो गदगद हो उठा था ।
जिस सिंहासन में सुदामा को आज श्रीकृष्ण ने बैठाया, उस में द्वारिकाधीश के सिवा आज तक कोई बैठा नही था । वो दुबला पतला ब्राह्मण , संकोच से जो दवा जा रहा है , धन वैभव इसने आज तक देखा ही नही था , फिर ये तो द्वारिका का वैभव था ।
सुदामा ! श्रीकृष्ण सुदामा का नाम लेते हैं ।
हाँ , सुदामा कहीं खोए हुए थे , वो भी तो सोच रहे थे कि इतना वैभव होने के बाद भी मेरा मित्र कितना सरल और सहज है , धन्य है ये , पर जैसे ही श्रीकृष्ण ने सुदामा को पुकारा ।
हाँ , क्या बात है ! सुदामा श्रीकृष्ण से पूछते हैं ।
हमारी भी कोई भाभी है ? श्रीकृष्ण सुदामा से ये प्रश्न करते हुये हंसते हैं ।
तू भी ना , इतने लोगों के बीच में ऐसा प्रश्न कौन करता है ? सुदामा कुछ ज़्यादा ही संकोची हैं ।
ले , मैंने कुछ गलत पूछा हो तो बताओ , मैंने यही तो पूछा है कि तुम्हारा विवाह हुआ या नही ?
इसमें गलत क्या है सुदामा , विवाह हुआ हो तो कह दो हुआ है , नही हुआ तो ….नही ।
सिर को झुका लिया लाल मुखमण्डल हो गया सुदामा जी का , फिर बड़े शरमा के बोले ,
तेरी भाभी आगयी है ।
“जय हो”। श्रीकृष्ण ने करतल ध्वनि की तो समस्त रानियों ने भी उनका अनुसरण किया ।
कुछ देर हंसी छाइ रही सभा में , और कुछ देर तक श्रीकृष्ण भी हंसते रहे ।
अब इतना क्यो हंस रहा है ?
सुदामा को लगता है कि ये कुछ भी कह देगा इसलिए श्रीकृष्ण को चुप कराना चाहते हैं ।
वो , गुरुकुल में …….श्रीकृष्ण फिर हंसने लगे । आगे तो बोल , सुदामा रानियों को देखते हैं ,
हे भगवान , ये सब क्या सोच रही होंगी ….सुदामा फिर चुप कराना चाहते हैं श्रीकृष्ण को ….पर ।
तुम से हम लोग गुरुकुल में कहते थे , “सुदामा विवाह करोगे”…..तब तुम हमलोगों को पीटने के लिए भागते थे , पर वाह ! विवाह कर लिया तुमने ।
सुदामा शरमा रहे हैं ………सिर को झुका कर बैठ गए हैं ।
कैसे मित्र हो , विवाह कर लिया भाभी ले आए , और अपने इस मित्र को स्मरण भी नही किया ।
ये क्या बोल रहा है कृष्ण ! सुदामा ने श्रीकृष्ण की ओर देखा चौंके ।
हाँ , बताओ , भूल गए अपने इस मित्र को विवाह में । श्रीकृष्ण अपने मित्र से विनोद कर रहे हैं ।
समस्त रानियाँ मैत्री का ऐसा विमल रूप देखकर आनंदित हैं ।
रानियाँ अपने पति की हर बात पर हंस रही हैं , और कभी कभी तो करतल ध्वनि भी करती जा रही हैं ।
सुदामा को लग रहा है , यार ! भाभियों के सामने ये सब क्यों पूछ रहा है , एकान्त में पूछ ना , मैं सब बताऊँगा । पर श्रीकृष्ण को अपने सखा से आनन्द लेना है ।
सुदामा ! हम भी नाचते तुम्हारे विवाह में , कितना अच्छा होता , पर तुम हमें भूल गए ।
सुदामा को ग़ुस्सा आया , कृष्ण ! मेरा तो एक ही विवाह हुआ , मैं बुलाना भूल गया , पर तेरे तो “इतने” विवाह हुए हैं , तेने कभी हमें बुलाया ? सुदामा की ये बात सुनते ही श्रीकृष्ण चुप ।
अरी भाभियों ! अब करो करतल ध्वनि ! सुदामा को अब उत्साह आया था ।
रानियाँ हंस रही हैं , आपस में कह रही हैं, उत्तर तो सटीक दिया हमारे नाथ को ।
बोल , अब कोई उत्तर है तेरे पास …….सुदामा की अब बारी थी ।
देखो मित्र ! तुम्हारा विवाह हुआ होगा तो पहले सगाई हुई होगी , फिर विवाह हुआ होगा , मतलब विधि तो हुई होगी ना ! पर यहाँ तो सुबह तक कँवारे हैं और शाम को देखो तो घर में बहु आगयी है ……श्री कृष्ण हंसते हुए बोले थे ।
तो सब ऐसे ही आयी हैं ? सुदामा को आश्चर्य हो रहा है ।
हाँ, हाँ कोई खुद ही आगयी हैं तो किसी को भगा के लाए हैं ।
ये कहते हुए रुक्मणी की और श्रीकृष्ण ने देखा था ।
अच्छा छोड़ो इन बातों को …..सुदामा ! मैंने ये बात इसलिए छेड़ी है कि अगर मेरी भाभी आयी है …तो उसने अपने इस देवर के लिए क्या भेजा है ? श्रीकृष्ण ये कहते हुए भाव में डूब गए थे ।
सुदामा ने जैसे ही श्रीकृष्ण के मुख से ये सुना कि …..मेरी भाभी ने मेरे लिए क्या भेजा है ……
सुदामा तो संकोच में पड़ गए ……क्या दूँ मैं इस द्वारिकाधीश को ! वो तीन मुट्ठी चिउरा ?
सुवर्ण की जिसने पुरी बनाई हो उसे सुदामा दे ……….चिउरा ?
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
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