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December 3, 2024 5:52 pm

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दादरा नगर हवेली एवं दमन-दीव क्षेत्र भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रभारी श्री दुष्यन्त भाई पटेल एवं प्रदेश अध्यक्ष श्री दीपेश टंडेल जी के नेतृत्व में संगठन पर्व संगठन कार्यक्रम दादरा नगर हवेली के कार्य पाठशाला का आयोजन किया गया.

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! “जब सुदामा द्वारिका से विदा हुए”- उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 68 !!-भाग 1: Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! “जब सुदामा द्वारिका से विदा हुए”- उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 68 !!-भाग 1: Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! “जब सुदामा द्वारिका से विदा हुए”- उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 68 !!

भाग 1

तात ! मैत्री में आकंठ डूबे इन दोनों मित्रों के भाव का यथारूप वर्णन असम्भव ही है ।

सुदामा जो अयाचक हैं , कामना ही नही हैं इनके मन में , ब्रह्मविद्या से सुसम्पन्न हैं , और श्रीकृष्ण ऐसे अयाचक और ज्ञानी भक्त के तो अनादिकाल से पुजारी रहे हैं ।

उद्धव यमुना के किनारे विदुर जी को श्रीकृष्णलीला का वर्णन करके सुना रहे हैं ,
इन दिनों सुदामा चरित्र को सुनाते हुए उद्धव भाव विभोर हो उठे थे, विदुर जी भी सुदामा चरित्र को सुनते हुए गदगद हैं ।

दस दिन तक रहे द्वारिका में सुदामा , उन दस दिनों में श्रीकृष्ण न अपनी सुधर्मा सभा में गए न किसी से मिलना जुलना किया । उन दिनों बस उनका सखा सुदामा ही उनके लिए सर्वस्व था ।

मैं अपने गाँव जाऊँ ? सुदामा ने आज ऐसे ही पूछ लिया था ।

रानियाँ थीं, श्रीकृष्ण विराजे थे, सहज भाव से सब बैठे थे, तब एकाएक सुदामा ने पूछ लिया था ।

हाँ , जाओ सुदामा ! श्रीकृष्ण भी सहज में बोल दिए ।

सुदामा चौंक गए थे , उन्होंने ये सोचा भी नही था कि कृष्ण मुझे इतनी जल्दी यहाँ से जाने देगा ।

सुदामा ही नही चौंके थे उनकी रानियाँ भी चौंक गयीं थीं कि इतने रूखे ढंग से अपने मित्र को कौन “जाओ” कहता है ! पर ये श्रीकृष्ण हैं !

सुदामा ने सोचा था कि आज कहूँगा जाने के लिए तो कम से कम एक मास और ये रोक ही लेगा ……इसलिए अभी से कहना शुरू किया जाए । पर सुदामा को क्या पता था कि ।

विदाई की तैयारियाँ शुरू हो गयीं थीं सुदामा की । रानियों के नेत्रों से अश्रु बह चले थे , श्रीकृष्ण सुदामा को अपने हृदय से लगाते हैं , सजल नेत्र हो गए हैं उनके । हृदय भर आया है ।

आते रहना सुदामा ! इतना बोलकर सुदामा से अलग हो गए थे श्रीकृष्ण ।

जाऊँ ? सुदामा फिर पूछते हैं । श्रीकृष्ण जैसे सखा से दूर जाने की इच्छा भी किसकी होती है ।

हाँ , श्रीकृष्ण सुदामा से दूर खड़े हो जाते हैं , जाओ अब मित्र ! श्रीकृष्ण फिर दोहराते हैं ।

सुदामा की वापस जाने की इच्छा नही है , पर श्रीकृष्ण ………….

एक बार फिर दौड़कर सुदामा को हृदय लगाते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं , मुझे भूलना नही मित्र !

आँसुओं के साथ हंसी फूट पड़ती है सुदामा की , तेरे जैसे मित्र को कोई भूल सकता है ?

सुदामा चल पड़े हैं अपने गाँव की ओर ! दूर तक देखते रहे श्रीकृष्ण और उनकी रानियाँ भी देखती रहीं सुदामा को , सबके नेत्रों से अश्रु निरन्तर बहते जा रहे थे । सुदामा ने कई बार मुड़ कर देखा था , एक बार तो वो दूर जाकर रुक ही गए थे , किन्तु श्रीकृष्ण ने ही हाथ हिलाकर कहा , जाओ अब , सुदामा फिर चल दिए , और चलते चलते ओझल हो गए ।

क्रमशः …
शेष चरित्र कल –

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