श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “जब सुदामा द्वारिका से विदा हुए”- उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 68 !!
भाग 2
सुदामा चल पड़े हैं अपने गाँव की ओर ! दूर तक देखते रहे श्रीकृष्ण और उनकी रानियाँ भी देखती रहीं सुदामा को , सबके नेत्रों से अश्रु निरन्तर बहते जा रहे थे । सुदामा ने कई बार मुड़ कर देखा था , एक बार तो वो दूर जाकर रुक ही गए थे , किन्तु श्रीकृष्ण ने ही हाथ हिलाकर कहा , जाओ अब , सुदामा फिर चल दिए , और चलते चलते ओझल हो गए ।
जब सुदामा चले गए तब श्रीकृष्ण हिलकियों से रो पड़े थे , सुदामा का नाम ले लेकर ।
रानियाँ श्रीकृष्ण की ये स्थिति देखकर विकल हो गयीं थीं ।
नाथ ! क्यो नही रोका फिर आपने अपने मित्र को ! एक दो मास और रुक जाते यहाँ ।
रुक्मणी ने निवेदन किया , हमें भी सेवा का अवसर मिल जाता ।
कुछ बोल नही पाए श्रीकृष्ण , नेत्रों से बस अश्रुओं की बरसात ही शुरू हो गयी थीं ।
सम्भालिए नाथ ! अपने आपको सम्भालिए । रानियाँ समझा रही हैं ।
हे रानियों ! तुम एक दो माह की बात करती हो , मैं तो चाहता था कि मेरा सुदामा यहीं रह जाए , ऐसे ही हम लोग हंसते खेलते जीवन को बिताएँ । पर ………..श्रीकृष्ण की वाणी फिर अवरुद्ध हो गयी थी ।
आज दस दिन हो गए हैं मेरी भाभी ने कुछ नही खाया है ! श्रीकृष्ण का कण्ठ रुँध गया है ।
आप कुछ दे देते ना ! रानियों ! मैंने तीन लोक की सम्पत्ति दी , सुदामा को नही दी , क्यों की सुदामा लेता ही नही , मैंने विश्वकर्मा को आदेश देकर रातों रात में सुदामा की झोपड़ी के स्थान पर महल बना दिया है , धन सम्पदा अकूत दे डाली है , पर मेरी भाभी सुशीला ने जल का भी पान नही किया । वो निर्जला में बैठी है , उसका कहना है मेरे पति गए हैं परदेश , पता नही किस स्थिति में होंगे , मैं कैसे कुछ खा पी सकती हूँ । ये बताते हुए श्रीकृष्ण कुछ देर के लिए मौन से हो गए थे , सुबुकते रहे …….फिर बोले – मैंने इसलिए सुदामा को यहाँ नही रोका , मुझे पता है उसकी बहुत इच्छा थी यहाँ रुकने की , मेरी इच्छा तो सुदामा से भी ज़्यादा थी ।
पर मैं उसे रोक लेता तो मेरी भाभी सुशीला को और कष्ट होता , उसे और भूखे रहकर दिनों को काटना पड़ता …..इसलिए मैंने सुदामा को रोका नही भेज दिया ।
रानियों ने श्रीकृष्ण चरणों में प्रणाम किया ….., और वो सब बोलीं हमें क्षमा कर दीजिए , हम आपको समझ नही पाईं , आपके प्रति हमारे मन में ये भावना आयी थी कि अपने मित्र को भी ये रोक क्यो नही रहे ! पर आपके भाव तो ……….”कोई बात नही”, श्रीकृष्ण इतना ही बोले ।
अब क्या लीला करने वाले हैं सुदामा के साथ ? रुक्मणी समझ रही थीं कि ये लीलाधारी हैं लीला ही तो नित्य करते हैं ये ।
सुदामा के साथ लीला ? श्रीकृष्ण तुरन्त मुस्कुराए थे !
शेष चरित्र कल –
Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877