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June 4, 2025 2:26 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! “जब सुदामा को मार्ग में लूटा” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 69 !!-भाग 1 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! “जब सुदामा को मार्ग में लूटा” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 69 !!-भाग 1 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! “जब सुदामा को मार्ग में लूटा” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 69 !!

भाग 1

लीलाधारी हैं श्रीकृष्ण तो लीला करेंगे ही ……ये समस्त सृष्टि उनकी लीला ही तो है ।

कोई रो रहा है तो कोई हंस रहा है , ये सब उनकी लीला है । कहीं अकाल है तो कहीं अतिवृष्टि के कारण जीव त्राहि कर उठा है ……ये लीला ही तो है ।

तात ! सुदामा द्वारिका से जब अपनें गाँव के लिए चले तो श्रीकृष्ण को अपने सखा के साथ ही लीला करने की सूझी । उद्धव विदुर जी को वो प्रसंग सुनाने लगे थे ।


आहा ! कृष्ण ने मुझे अपने हृदय से लगाया ! मेरा ये कहाँ कठोर देह , और उसका कोमल अत्यंत कोमल , फिर भी मुझे अपने हृदय से लगाया ।

पर ज़िद्दी है , पहले की आदत अभी तक गयी नही है उज्जैन में जैसा था अभी भी वैसा ही है ।सुदामा चलते चलते ये सोचते हुए हंसने लगते हैं ।

चलो , दस दिन तक रुका अपने कृष्ण के साथ आनन्द के साथ समय बीता , समय बीता ?

समय तो भागा , बताओ दस दिन भी ऐसे बीते जैसे दस घड़ी के बराबर ।

फिर सुदामा बैठ जाते हैं एक वट वृक्ष के नीचे …..ये बैठे ही इसलिए हैं कि कृष्ण के साथ बिताए काल का स्मरण कर आनंदानुभूति की जा सके ।

आहा ! सुदामा के नेत्रों से अश्रु बहने लगे थे ।

मैं कहाँ दरिद्र , मैं कहाँ पापी , और वो कहाँ पापों को हरने वाले श्रीकृष्ण ।

सुदामा रो पड़ते हैं , वो कहाँ श्रीनिकेतन , और मैं कहाँ दरिद्री , परमदरिद्री…..फिर भी उनकी करुणा तो देखो , मुझे अपनी बाहों में भर लिया । मेरी पत्नी सुशीला को कितने प्रेम से “भाभी भाभी” कहा उन रमानिवास ने । छप्पन भोग आरोगने वाले वो द्वारकेश मेरी पत्नी द्वारा दिए गए चिउरा को भी कितने प्रेम से खाया ।

सुदामा हिलकियों से रो रहे हैं …..

अब कुछ नही चाहिए मुझे , कुछ नही , सब कुछ दे दिया है तुमने मुझे द्वारिकानाथ ।

गले में पड़ी मोतियों की माला जो सुदामा को श्रीकृष्ण ने ही पहनाई थी ।

सुदामा उस माला को देखते हैं , सुशीला को धन चाहिए था , वो इसलिए मुझे “द्वारिका जाओ द्वारिका जाओ” कहती रहती थी । चलो ये मोती की माला सुशीला को दे दूँगा और कहूँगा ये दिया है मेरे सखा ने। इसी को देकर चिउरा का कर्जा उतार ले । पड़ोस से माँग कर लाई थी वो चिउरा ।

फिर सुदामा का गले में हाथ जाता है तो और प्रसन्न हो जाते हैं , अरे ! ये हीरों की एक माला भी मेरे गले में पड़ी है , मैंने तो मना किया था पर उसनें अपनी माला उतार कर मेरे गले में पहना दी थी ………चलो , बालकों के लिए अन्न की व्यवस्था भी इससे हो जाएगी । सुदामा और खुश होते हैं । मैं सोच रहा था कि कृष्ण चलते समय कुछ तो देगा , अपने लिए नही , उसी की भाभी के लिए , क्यो की उसी ने तो चिउरा की व्यवस्था करके मुझे भेजा था । पर चलते समय कुछ दिया नही उसने …….सुदामा अब वहाँ से उठ गए थे , और यही सब सोचते हुए जा रहे थे ।

ये पीताम्बरी भी तो है , सुदामा अपनी पहनी पीताम्बरी को देखते हैं और प्रसन्न होते हैं ।

सुशीला को ही दे दूँगा ये भी, कहूँगा तू बालकों के लिए इसके वस्त्र बनवा दे । बालक भी खुश हो जाएँगे , मुझे तो अपनी वही फटी धोती और लँगोटी ही अच्छी लगती है । सुदामा अब तेज चाल से चलने लगे थे , अब इन्हें शीघ्र पहुँचना था अपने गाँव ।

क्रमशः …
शेष चरित्र कल

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