श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “जब सुदामा को मार्ग में लूटा” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 69 !!
भाग 2
ये पीताम्बरी भी तो है , सुदामा अपनी पहनी पीताम्बरी को देखते हैं और प्रसन्न होते हैं ।
सुशीला को ही दे दूँगा ये भी, कहूँगा तू बालकों के लिए इसके वस्त्र बनवा दे । बालक भी खुश हो जाएँगे , मुझे तो अपनी वही फटी धोती और लँगोटी ही अच्छी लगती है । सुदामा अब तेज चाल से चलने लगे थे , अब इन्हें शीघ्र पहुँचना था अपने गाँव ।
पर चलते चलते सुदामा एकाएक रुक गए , डर गए , वो चारों ओर देख रहे हैं…….
“ तेरे पास जो भी है हमें दे दे , नही तो हम तुझे मार देंगे” ।
उन काले काले जंगल में रहने वाले भीलों ने सुदामा को घेर लिया था ……सुदामा काँपने लगे ।
“तुझे हम कुछ नही करेंगे न कहेंगे , जो तेरे पास हो वो हमें अभी दे”
ये भीलों का सरदार था , वो आगे आया और सुदामा से बोला था ।
सुदामा क्या कहते , नुकीले भाले दिखाकर ही खड़े थे वे सब भील ।
मेरे पास तो बस ये हैं , मोतियों की माला , हीरों का कण्ठहार , दुखी मन से सुदामा ने दे दिया ।
श्री या धन के प्रति कोई आकर्षण नही है सुदामा के मन में , बस सुशीला का कर्जा …..और फिर सखा के द्वारा दिया गया उपहार भी तो था ये ।
“अब कुछ नही है मेरे पास” …..सुदामा से ये सब लेने के बाद भी वो भील लोग जाने को माने नही,
तो सुदामा को कहना पड़ा ।
ये पीताम्बरी …एक भील बोला । तो सुदामा चिल्लाए – मेरे तन में बस यही वस्त्र तो है , ।
पर इसे हम छोड़ नही सकते , ये तो बहुत क़ीमती है , भीलों ने ज़बर्दस्ती खींच लिया ।
सुदामा की क्या चलती उन बेचारे भीलों के सामनें पीताम्बरी भी ले गए भील ।
लँगोटी के ऊपर वृक्ष की छाल बाँध ली सुदामा ने ,और अब अपने गाँव की ओर बढ़ चले थे ।
तूने ये क्यों किया कृष्ण ! नही पूछूँगा , क्यो पूछूँ ? तू मेरा सखा है तो मेरे हित की ही तो तूने सोची होगी ना …..सुदामा फिर कहते हैं , नही नही , हित की तो मैं सोचता हूँ तू तो परम हित की सोचता है ।
सुदामा जोर से ठहाका मारकर हंस पड़े थे ।
शेष चरित्र कल
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