श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “ इति सुदामा चरिते” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 70 !!
भाग 2
सुदामा जी का ध्यान महल की ओर ही था कि तभी –
माता जी ! थोड़ा दूर से …….
महल से आयीं थीं ये महिला , इनके साथ आठ सखियाँ थीं , चार वाम भाग में और चार दाहिने भाग में , मध्य में महल की ही मालकिन आयी थीं उनके हाथों में पूजा की थाल थी ….पग के नूपुर , ध्वनि अद्भुत कर रहे थे । उन महिला ने आकर सुदामा जी के चरणों में वन्दन किया था…..सुदामा जी को लगा महल की मलिकन आयी है और ब्राह्मण के चरण छू रही है ।
माता जी ! थोड़ा दूर से ……..
सुदामा जी बोल पड़े थे ।
माता जी ? सुशीला ने रोष से देखा सुदामा जी के मुख में ।
सुदामा ने जैसे ही देखा सुशीला को ……सुशीला ! अरे वाह ! ये साड़ी , ये हाथों के कड़े , सोने के हैं ? हाँ , हाँ सब सोने के ही हैं सुशीला बोली ।
झोपड़ी कहाँ ? ये महल अपना है ! सुशीला ने कहा ।
महल अपना है ! सुदामा जी कुछ समझ नही पा रहे हैं कि इतना सब !
पतिदेव ! अब महल में चलिए ना !
हाँ , हाँ चलो महल में , सुदामा जी लाठी उठाए …..अब छोड़िए इस पुरानी लाठी को , हमारे पास सोलह हजार एक सौ आठ लाठियाँ हैं ! सुशीला बोल उठी ।
सोलह हजार एक सौ आठ ? सुदामा जी चौंके ।
हाँ , देखिए वो हमारी गौशाला , उसमें भी सोलह हजार एक सौ आठ गौएँ हैं ।
आपके पादत्राण भी सोलह हजार एक सौ आठ हैं , सुशीला बोलती जा रही है …..अपने पतिदेव सुदामा जी को महल दिखा रही है ……..सुदामा को हंसी आगयी , उसके मित्र ने कैसा विनोद किया था उसके साथ । “छाता भी सोलह हजार एक सौ आठ हैं , मेरी साड़ी भी सोलह हजार एक सौ आठ हैं , पतिदेव ! आपकी धोती भी सोलह हजार एक सौ आठ हैं” …….सुशीला बोलती गयी , पर सुदामा जी वहीं बैठ गए …..उनके नेत्रों से अश्रु धार बह चले थे , वो अब हिलकियों से रो पड़े ।
मुझे क्षमा कर दे कृष्ण ! मुझे क्षमा कर दे , मैं भूल गया था कि तू तो यशोदा का पुत्र है ना !
दूसरे को “यश” देना तुझे आता है , मेरे सामने तू कृपण बना , वहाँ मुझे कुछ नही दिया , पर यहाँ !
अपनी प्रत्येक रानियों से दिलवाया , और स्वयं ने मेरी पीताम्बरी भी भील के रूप में उतरवा ली ।
सुदामा जी वहीं बैठ गए …..और बस रोते ही जा रहे हैं । हाँ , वो भील तुम्हीं थे , मुझे लूटनें वाले भी तुम्हीं थे , हे सखे ! अब मुझे कुछ नही चाहिए , मुझे ये सब अब नही चाहिए ।
पतिदेव ! ये देखिए पीताम्बरी , सोलह हजार एक सौ आठ हैं , उतारिये ये छाल और पहनिये ये पीताम्बरी ……..सुशीला ने आकर कहा ।
सुदामा जी बस रो रहे हैं …..क्या हुआ …आप रोते क्यो हैं ? सुशीला पूछ रही है ।
देवि ! तुम कहती थीं ना , बालक भूखे हैं , बालकों ने कुछ खाया नही हैं ।
अब न बालक भूखे रहेंगे , न कोई अभाव रहेगा …….सुदामा जी और भी कुछ बोलनें वाले थे पर उनकी वाणी ही अवरुद्ध हो गयी थी ।
आप कहाँ जा रहे हैं नाथ ! सुशीला ने चरण पकड़ लिए ।
सुशीला ! मैं रहूँगा तो उसी वट वृक्ष के नीचे जहां बैठकर मैं अपने सखा का स्मरण करता था , तुम रहो , संपत्ति का सदुपयोग करना सुशीला ! मैं तुम्हें वहीं मिलूँगा !
सुदामा जी जानें लगे , सुशीला बिलख उठी …….तभी –
“अब ये क्या नाटक लगा दिया यार” श्रीकृष्ण प्रकट हो गए थे ।
सुदामा जी ने श्रीकृष्ण को देखकर कहा , नाटक तो मेरे साथ तुमने किया है ।
बताओ ! मैंने तुमसे कभी कुछ भी माँगा ? तुम को दुनिया अंतर्यामी कहती है , देख लेते मेरे मन में , सुदामा श्रीकृष्ण के चरणों में गिर गए थे ……नही चाहिए ये सब मुझे कृष्ण !
श्रीकृष्ण कुछ नही बोल सके सुदामा के सामने , उनके भी नेत्र भर आए जब सुदामा ने कहा , मुझे “तुझसे” नही , “तू” चाहिए । श्रीकृष्ण ने उठा लिया सुदामा को और अपने हृदय से लगाते हुए कहा था …..जिसे कुछ नही चाहिए यार ! उसे मैं मिलता हूँ ।
सुदामा जी ने इतना अवश्य कहा , मेरे मन में जो थी वो इस सुशीला को लेकर थी , तुम्हें ये कुछ कहती तो मुझे अच्छा भी लगता , पर इतना सब नही ।
सुदामा जी चल पड़े थे उसी वटवृक्ष के नीचे , जहां पूर्ण एकान्त था और अपने सखा का चिन्तन अच्छे से होता था । सुदामा जी को लाख कहा श्रीकृष्ण ने पर सुदामा जी ने महल को और महल की सम्पदा को स्वीकार नही किया ।
“मेरे सखा की प्रसादी है ये सम्पदा , विवेक के साथ खर्च करना” …….यही कहते रहते थे जब जब परिवार मिलने आता था ।
( साधकों ! सुदामाचरित का विराम यहीं पर हो रहा है । श्रीकृष्णचरितामृतम् के 210 से 213 तक के भाग को भी पढ़ा जाए , तब सुदामा चरित पूर्ण होगा , “उज्जैन में दोनों सखा कैसे रहते थे”उसका वर्णन मैंने उनमें किया है , उसे भी आप अवश्य पढ़े ……हरिशरण )
शेष चरित्र कल –
Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877