श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “कुरुक्षेत्र में मनसुख और श्रीकृष्ण” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 73 !!
भाग 1
मनसुख ! आखिर पहुँच ही गए कुरुक्षेत्र ।
श्रीदामा भैया ने कहा था ।
बैल गाड़ी से मनसुख उतरा ……इधर उधर देखा …..भैया ! यहाँ तो भीड़ बहुत है ।
शिविर कहाँ लगाएँगे ? मधुमंगल ने पूछा था ।
मनसुख ही आगे गया , भीड़ अपार थी परसों ही है सूर्यग्रहण , कहाँ से लोग नहीं आए थे ….पर मनसुख ने एक स्थान देख ही ली ……वहीं पर शिविर लगाने के लिए मनसुख ने कहा ।
ब्रजराज बाबा को भी वो जगह अच्छी लगी थी ……अपने कन्हैया का यहीं कहीं है क्या ? बेचारी मैया यशोदा पूछ रहीं थीं । इन्हें क्या मतलब है सूर्यग्रहण और उससे मिलने वाले पुण्य से …ये तो बस अपने कन्हैया के लिए ही आए हैं ।
शिविर लगाया गया …..वृन्दावन नाम लिखा उस शिविर में ताकि लोग भटके नहीं ।
शिविर के प्रवेश में सखाओं का यानी पुरुषों का निवास बनाया गया था उसके भीतर महिलाओं का । मनसुख ने पूरी व्यवस्था खुद ही देखी ……रात तक में शिविर लग गया ।
कन्हैया का शिविर कहाँ है ? खोजता हुआ रात में ही निकल गया था मनसुख ।
इसे नींद आएगी …….कन्हैया आया है यहाँ ये जानकर ।
जो लोग मिलते उन्हीं से पूछने लगता ……अब “कन्हैया” ये नाम ब्रज से बाहर कौन जानता है ।
पर ये मनसुख था , रात भर पूरे कुरुक्षेत्र में घूमता रहा ………पर उस समय वो उछल पड़ा था ख़ुशी से जब उसने एक जगह पढ़ा ….द्वारिका शिविर ।
अभी अभी पहुँचे ही थे द्वारिकावासी शिविर लगा कर सब सो गए थे …..थके थे ही ।
कन्हैया यहीं है ? मनसुख ने शिविर के बाहर खड़े द्वारपालों से पूछा ।
कौन कन्हैया ? द्वारपालों ने प्रतिप्रश्न किया ।
अरे ! कन्हैया ….द्वारिका का जो राजा बन बैठा है । मनसुख ने परिचय ऐसे ही दिया था ।
श्रीकृष्ण चन्द्र महाराज ? द्वारपालों ने ये नाम लिया ।
हाँ , हाँ वही तुम्हारो श्रीकृष्णचन्द्र ……मनसुख को इनसे बहस करना नही हैं ।
मुझे मिलना है ……..मनसुख शिविर में जाने लगा ।
ऐसे कैसे जा रहे हो ? रोक दिया द्वारपालों ने ।
मनसुख को क्रोध आया …..रोक क्यो रहे हो …..मेरा नाम लो अपने राजा के सामने देखो वो कैसे भागता आएगा मेरे पास …..मनसुख को अपने सखा की ठसक थी ही ।
नही ….आप नही जा सकते ……द्वारपाल भी ज़्यादा कुछ कहना नहीं चाह रहा था ।
मैं सखा हूँ …….जाओ …कहके तो देखो ……मनसुख फिर बोलने लगा था ।
बहस बढ़ने ही वाली थी …..बढ़ी , आवाज़ तेज होती गयी …….श्रीकृष्ण जहां विश्राम कर रहे थे मनसुख और द्वारपालों की बहस से उनकी नींद खुल गयी थी ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
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