Explore

Search

November 22, 2024 5:44 am

लेटेस्ट न्यूज़

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! “कुरुक्षेत्र में मनसुख और श्रीकृष्ण” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 73 !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! “कुरुक्षेत्र में मनसुख और श्रीकृष्ण” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 73 !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! “कुरुक्षेत्र में मनसुख और श्रीकृष्ण” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 73 !!

भाग 2

हाँ , हाँ वही तुम्हारो श्रीकृष्णचन्द्र ……मनसुख को इनसे बहस करना नही हैं ।

मुझे मिलना है ……..मनसुख शिविर में जाने लगा ।

ऐसे कैसे जा रहे हो ? रोक दिया द्वारपालों ने ।

मनसुख को क्रोध आया …..रोक क्यो रहे हो …..मेरा नाम लो अपने राजा के सामने देखो वो कैसे भागता आएगा मेरे पास …..मनसुख को अपने सखा की ठसक थी ही ।

नही ….आप नही जा सकते ……द्वारपाल भी ज़्यादा कुछ कहना नहीं चाह रहा था ।

मैं सखा हूँ …….जाओ …कहके तो देखो ……मनसुख फिर बोलने लगा था ।

बहस बढ़ने ही वाली थी …..बढ़ी , आवाज़ तेज होती गयी …….श्रीकृष्ण जहां विश्राम कर रहे थे मनसुख और द्वारपालों की बहस से उनकी नींद खुल गयी थी ।

अरे ! मैं उसका सखा हूँ ……मनसुख बोले जा रहा था …..पर आप जो भी हों इस समय द्वारिकाधीश से मिल नही सकते ।

इन्हीं बातों को सुनते हुए उठ गये थे श्रीकृष्ण ……कौन है ? इतने तेज तेज क्यो बोल रहे हो ?

श्रीकृष्ण गवाक्ष से बोले थे ।

हम नही नाथ ! ये कोई उपद्रवी है इसी ने आपके नींद में विघ्न डाली , हम तो इसे मना कर रहे थे …पर ये मान ही नही रहा ।

मनसुख ने देखा ….घुंघराले वो केश …..श्याम वर्ण , पीताम्बरी लटकी हुई थी श्रीअंगो में …..

मैं ….मैं तेरा सखा ……मनसुख पुकार उठा था ।

प्रकाश बहुत मध्यम था श्रीकृष्ण ने ध्यान से देखने की कोशिश की ….पर ।

कौन ? मैंने पहचाना नही ……श्रीकृष्ण ने जब ये कहा ……

अब जाओ यहाँ से …..बड़े आए सखा हूँ कहने वाले ……द्वारपाल हंसे मनसुख को देखकर ।

नेत्रों से झरझर अश्रु बह चले थे मनसुख के ……..वाह रे कन्हैया ….हम सौ वर्षों से तेरी प्रतीक्षा में घड़ी गिन गिन कर जी रहे हैं और आज तू कह रहा है ….हमें नही पहचानता …..कोई बात नही मत पहचान ……तू बहुत बड़ा राजा हो गया है ना ….पर भूल गया माखन हमनें ही तुझे खिलाया था चोरी करके …..मनसुख जानें लगा ……सुन लाला ! मैया और बाबा से तो मिल लियो ……मनसुख ने इतना अवश्य कहा और ……..

श्रीकृष्ण ने ध्यान से देखा ….सिर में पगड़ी बांधे हुए गौर वर्ण , मस्तक में ऊर्ध्व पुंड पीला केसर का चंदन ….कण्ठ में तुलसी की दुलरी माला …..पीले वस्त्र ……….देखते ही श्रीकृष्ण ऊपर से चिल्ला उठे ……

मनसुख ……..मनसुख लौट रहा था ….श्रीकृष्ण अपने शिविर से दौड़े ….रानियों ने देखा अभी तो पहुँचे ही थे ये कहाँ चल दिए , विश्राम भी नही ….रुक्मणी आदियों ने देखा तो …….

मनसुख ……..पकड़ लिया था श्रीकृष्ण ने अपने इस सखा को ….और उसे देखते हुए हिलकियों से रो पड़े थे । कैसा है तू ? मनसुख के आनन्द का ठिकाना नही है ….वो गले से लगा लेता है अपने कन्हैया को ……

दोनों सखा आज सौ वर्षों के बाद जो मिल रहे थे ।

शेष चरित्र कल –

admin
Author: admin

Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877

Leave a Comment

Advertisement
लाइव क्रिकेट स्कोर
कोरोना अपडेट
पंचांग