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November 22, 2024 12:15 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! “वृन्दावन का निस्वार्थ प्रेम” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 75 !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! “वृन्दावन का निस्वार्थ प्रेम” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 75 !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! “वृन्दावन का निस्वार्थ प्रेम” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 75 !!

भाग 2

अरे ! कृष्ण ! वसुदेव देवकी रथ से वापस अपने द्वारिका शिविर में आ रहे थे …

देवकी ने रथ रुकवाया …अरे कृष्ण ! पर कृष्ण को कहाँ खबर अपनी …उन्हें तो आज अपना प्रेम ही दिखाई दे रहा था …..”नगर बसा दूँगा द्वारिका में , वृन्दावन नाम का नगर”…उनमें केवल यही लोग रहेंगे ……..मैं नित्य जाऊँगा मैया बाबा के पास ।

ये बात शिविर में पहुँचते ही जब बाबा नन्द मिले तो श्रीकृष्ण ने अति उत्साह में बता दिया था ।

बाबा सहज ही रहे …..अपने लाला का हाथ पकड़ कर मैया यशोदा के पास ले गए ।

“ ये कुछ कह रहा है “ बाबा ने मैया से कहा ।

मैया पुचकारती हैं ….अपने पास बैठाती हैं ….लाला ! क्या कह रहा है बोल ।

मैया ! आप लोग मेरी द्वारिका में चलो ना ….

“लाला ! आएँगे तेरी द्वारिका देखने” ….मैया लाला के सिर में हाथ फेरते हुए कहती हैं ।

नही मैया ! वहीं रहो ….मैं दूसरा नगर बसा देता हूँ …..उसमें केवल मेरे वृन्दावन वाले रहेंगे ।

श्रीकृष्ण की बात सुनने के लिए भानु नन्दिनी भी आगयीं थीं उनके साथ उनकी सखियाँ थीं ।

मैया ! युवावस्था तो कट जाती है पर वृद्ध अवस्था अविवाहितों के लिए दुष्कर ही होता है ।

इन गोपियों का क्या होगा ….मैं इन्हें रानी बनाकर रखूँगा ..नही नही मैया, मेरी पटरानी रहेंगी…..

मैया अपने लाला की बातें सुनती हैं ……..

मैया मना मत करना ……तेरे लाला की बहुत इच्छा है ये ।

बहुत बड़ा हो गया है तू कन्हैया ….बड़ी बड़ी बातें करनें लगा है ….मैया कहती हैं – देख ! तेरे बाबा भी ब्रजराज हैं ….वहाँ भी तो इनकी प्रजा है ना …..लाला ! ये तो हमारे ऊपर उपकार किया है वृषभान जी ने कि हमें यहाँ भेज दिया …इस समय ब्रज को वही तो सम्भाल रहे हैं ।

“वृन्दावन को मैं और तेरे बाबा नही छोड़ सकते”……मैया ने स्पष्ट बोल दिया ।

हाँ …ये तेरे सखा चाहें तो ……मैया ने मनसुख की और देखकर कहा था ।

मनसुख ने विनम्रतापूर्वक हाथ जोड़ दिए ….”तेरा माधुर्य हमें प्रिय है कन्हैया ! तेरा ऐश्वर्य हमें तनिक भी आकर्षित नही करता”।

गोपियों ! चलो मेरी महारानी बनो …..श्रीकृष्ण ने गोपियों की और देखकर कहा था ।

हमें दासी ही बने रहने दो प्यारे ! गोपियों की और से वृषभान नन्दिनी आगे आयीं थीं ।

महारानी तो आपकी है ना ….हम महारानी बनने लायक़ भी नही हैं …और हमें नगर नही चाहिए ….हे प्रियतम ! हमें तमाल के कुँज चाहिए , हमें कदम्ब की छाँव चाहिए …हमें गिरिराज पर्वत चाहिए ….हमें बाँसुरी चाहिए …….और इनमें रमा हुआ हमारा श्याम सुन्दर हमें चाहिए ।

भानु दुलारी बोलती गयीं …….मानों आज प्रेम की प्याऊ चला दी थी कीर्तिकिशोरी ने और ओप लगाकर पी रहे थे द्वारकेश श्रीकृष्ण ।

हम प्रेम करती हैं तुमसे ….कितना करती हैं ये तो हम भी नही जानती ….पर कभी आओ हमारे वृन्दावन ….पता है ….वहाँ की भूमि का जल खारा हो गया है ..हम सब रोती रहती हैं ना इसलिए ।

पर ….हम जी लेंगी ….ऐसे ही रो रो कर ……तेरा नाम ले लेकर …..पर “नन्दनन्दन” के बिना हमें “राजाधिराज द्वारिकाधीश” स्वीकार्य नही हैं …श्रीकृष्ण अपनी राधिका को देखते रह गए थे ।

वो आगे बढ़ीं श्रीकृष्ण के कपोल में हाथ रखा …..प्यारे ! हमें लेकर परेशान मत हो हम ठीक हैं ….ये प्रेम की टीस दुःख नही होती ….प्रेम के अश्रु दुःख के अश्रु भी नही होते ……फिर हंसती हैं श्रीराधा ……..”प्रेमावतार को मैं प्रेम की शिक्षा दे रही हूँ”……

श्रीकृष्ण समझ गए थे ….प्रेम की अपनी ठसक होती है …प्रेम दीन हीन नही होता …न वो बनाना चाहता है ….प्रेम दया का पात्र भी नही होता …वो तो महान है ….उससे महानतम और कौन ।

श्रीकृष्ण निकल आए वृन्दावन शिविर से ।

क्या हुआ …..फिर कल चल रहीं हैं द्वारिका ,आपके साथ गोपियाँ ?

महारानी कालिन्दी ने द्वारिका शिविर में पहुँचते श्रीकृष्ण से पूछा था ।

वो वृन्दावन के लोग हैं ….निस्वार्थ लोग हैं …मुझ से कुछ नही चाहते …बस मुझे चाहते हैं ।श्रीकृष्ण का कहना था ।

पर ये कैसा प्रेम है ? रुक्मणी ने पूछा ।

निष्काम प्रेम ……जहां मुझ से कोई भी कामना उनके मन में नही है ।

निष्काम प्रेम ……और ये वृन्दावन के प्रेमियों में ही पाया जाता है ।

श्रीकृष्ण बड़ी ठसक से बोल रहे थे ।

शेष चरित्र कल –

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