श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “श्रीराधेवृन्दावनेश्वरी” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 76 !!
भाग 2
भूमि का अपना प्रभाव होता है ….भूमि की अपनी ऊर्जा होती है ……प्रेम के लिए जो भूमि उपयुक्त है वो वृन्दावन ही है ….विश्व में वृन्दावन जैसी भूमि नही , प्रेम की अद्भुत छटा यहीं बिखरती है ।
प्रेम के पुष्प पल्लवित यहीं होते हैं …..ललिता ! वृन्दावन के मिलन में और कुरुक्षेत्र के मिलन में कोई समानता ही नही है …..।
सिंहनी का पय सुवर्ण के पात्र में ही टिकता है …….ऐसे ही प्रेम साधारण कहाँ है …..प्रेम साधारण घटना भी तो नही है । इसके लिए भी साधारण भूमि कैसे चलेगी …..भूमि ही तो भूमिका तैयार करती है …..फिर उसमें रंग रस बरसता है ….अबीर गुलाल उड़ते हैं । ये सब कुरुक्षेत्र की भूमि में सम्भव नही …..हाँ इस भूमि में शंख बजेगा , पर बाँसुरी तो वृन्दावन में ही बजेगी ।
ललिता ये भी कहती है – स्वामिनी ! आप द्वारिका क्यो नही गयीं ?
प्यारे कितना ज़िद्द कर रहे थे ।
क्या कहूँ ….राजसी जीवन जीने वाले द्वारकेश से राधा प्रेम कर सकती है क्या ?
राधा प्रेम करती है मोर पंख वाले श्याम से …..राधा प्रेम करती है वनमाली से , राधा प्रेम करती है ….मुरली मनोहर से …राधा “कनक पुरी” बसाने वाले श्रीकृष्ण को दूर से ही प्रणाम करती है ।
कैसे आए थे वो मुझे विदा करने …..हमारी बैल गाड़ी जब तक नही चली तब तक वो खड़े रहे ….मैं देख रही थी मैया बाबा अपने सखाओं को विदा करके मेरे पास आए थे वे …..
कुछ बोलना चाह रहे थे पर बोले नही …….
बोलने के लिए उनके पास कुछ था भी नही ऐसा ललिता कहती है …..क्या कहते – वो बस रोते रहे …..अब कब मिलना होगा प्रियतम से पता नही ….पर मिलना तो वृन्दावन का ही है बाहर क्या मिलना ….न प्रेम की वो ऊर्जा रहती है न ऊष्मा । चलो आगयी मैं भी अब वृन्दावन ।
वृन्दावन ……वृन्दावन की हवा में श्रीराधा रानी ने लम्बी स्वाँस ली थी ।
शेष चरित्र कल
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