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November 22, 2024 5:38 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम् – !! “श्रीकृष्णचन्द्र जू की मिथिला यात्रा”- उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 77 !!- भाग 1 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम् – !! “श्रीकृष्णचन्द्र जू की मिथिला यात्रा”- उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 77 !!- भाग 1 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! “श्रीकृष्णचन्द्र जू की मिथिला यात्रा”- उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 77 !!

भाग 1

मिथिला की भूमि धन्य है …..ज्ञान का क्षेत्र और जब से श्री भगवती सिया जू ने इस भूमि से अवतार लिया तब से तो ये भूमि शिव ब्रह्मादि की भी पूज्य हो गयी थी ।

इस मिथिला के सिंहासन में जो भी बैठा वो “विदेह” ही था ….ज्ञान विरासत में प्राप्त होती रही है यहाँ के राजाओं को …..विदेह उपाधि से यहाँ के सब राजा अलंकृत रहे थे ।

विदेह महाराज शीलध्वज ने जब से अपनी धिया सिया जू का कन्यादान भगवत् श्रीराघवेंद्र सरकार को किया उस समय का वो अद्भुत वर्णन स्वयं सृष्टिकर्ता ब्रह्मा भी नही कर सके थे ….सुधि ब्रह्मा की भी , सुधि खो गयी थी ।

“हम मिथिला की यात्रा में जाएँगे”……कुरुक्षेत्र से द्वारिका लौटने के बाद आज अपनी सभा में श्रीकृष्णचन्द्र जू ने ये घोषणा कर दी ।

“हम सब जाएँगे” ……श्रीकृष्ण पुत्रों ने उत्साह दिखाया ।

पर नही …..श्रीकृष्ण ने कहा “मेरे साथ विरक्त ही चलेंगे”…
मेरे साथ मिथिला में वही जाएगा जो वितराग हो ….देहाभिमान जिनका गलित हो चुका हो ।

ऐसे कौन हैं यहाँ ……..अनिरुद्ध ने सभा की और देखकर अपने दादा श्रीकृष्ण से पूछा था ।

देवर्षी नारद…..श्रीकृष्ण ने जैसे ही नाम लिया नभ से देवर्षी उतर आए थे ….

उनका आदर किया श्रीकृष्ण ने, उन्हें बिठाया ……

सनकादि ऋषि …..देवल, असित , शुकदेव, अंगिरा , व्यास ……..

चकित होकर सभासद देख रहे हैं नभ की ओर …और नभ से ही ये सब ऋषि पधार रहे थे ।

इन सबका आदर सत्कार करते हुये श्रीकृष्णचन्द्र ने चरण वन्दन किया और कहा …..मैं मिथिला की यात्रा करना चाहता हूँ और भगवन् ! आपका सान्निध्य इस यात्रा में मुझे प्राप्त हो यही मेरी प्रार्थना है ।

श्रीकृष्ण की प्रार्थना सुनकर ऋषि आनंदित हो उठे थे ।

हे श्रीकृष्ण ! आपकी जय हो , आपका सुसंग हमें मिलेगा ये हमारा सौभाग्य है …..और मिथिला की भूमि तो ज्ञान की भूमि है ….भक्ति के अवतार से वो भूमि और सरस हो गयी है ….इसलिए हम भी आपके साथ इस यात्रा में चलने को उत्सुक हैं ….आपकी जय हो , जय हो ।
ऋषियों के इतना कहते ही श्रीकृष्ण चन्द्र जू ने उसी समय दो रथ मंगाये …एक में देवर्षी नारद जी को साथ में लिया और दूसरे में समस्त ऋषियों को बैठाकर यात्रा शुरू कर दी थी ।


द्वारिका से निकट तो है नही मिथिला …समय लगा …पर श्रीकृष्ण जहां जहां से होकर गुजरते थे …वहाँ के राजा महाराजा सब आकर स्वागत करते, वहाँ सत्संग होता , ऋषियों के द्वारा ज्ञान का विस्तार करते हुये मिथिला में पहुँचे ।

इन दिनों मिथिला के सिंहासन में विदेह राज बहुलाश्व विराजमान थे ।

भगवान श्रीकृष्ण पधारे हैं ? ये सुनते ही विदेह दौड़ पड़े थे स्वागत के लिए ।

मिथिलावासी के आनन्द का आज कोई ठिकाना नही था …वैसा ही सुंदरतम दृश्य उपस्थित हो गया था जैसा त्रेतायुग में भगवान रामभद्र और विदेहनन्दिनी के विवाह समय में था ।

चारों और आनन्द की हिलोरें चल रहीं थीं मिथिला में ……….राजा बहुलाश्व ने सब कुछ न्योछावर कर दिया था भगवान वासुदेव के चरणों में ……और प्रेमपूवर्क भगवान को और उनके साथ आए समस्त ऋषियों को विदेह अपनी राजधानी जनकपुर ले आए थे ।

क्रमशः….
शेष चरित्र कल

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