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November 21, 2024 9:36 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! “उद्धव गीता – हंसावतार” उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 87 !!-भाग 1 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! “उद्धव गीता – हंसावतार” उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 87 !!-भाग 1 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! “उद्धव गीता – हंसावतार” उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 87 !!

भाग 1

“नाथ ! एक प्रश्न है” ……..तात ! मैं भगवान से सब कुछ पूछ लेना चाहता था ।
विदुर जी से उद्धव ने कहा ।

“चित्त हमारा संसार के गुणों में आसक्त हुआ बैठा है ….संसार के गुण चित्त में प्रवेश कर गए हैं …..नाथ ! चित्त से संसार के गुण अलग हों ….ये कैसे सम्भव हो पाएगा “।

हे भगवन् ! चित्त में अगर संसार के ही गुण भरे रहेंगे , तो वो कर्म संस्कार को ही बढ़ाएगा ! और कर्म संस्कार बढ़ते रहेंगे तो जन्म मृत्यु का चक्र चलता ही रहने वाला है ……फिर ऐसे में हमें मोक्ष कैसे मिले ? उद्धव का ये प्रश्न था ।

हे उद्धव ! एक बार की बात है …..भगवान श्रीकृष्ण फिर एक प्रसंग सुनाने लगे थे ।

ब्रह्मा जी के पास उनके पुत्र सनकादी कुमार एक दिन गए …चरणों में वन्दन करके उनसे यही प्रश्न किया उद्धव ! जो प्रश्न तुम मुझ से कर रहे हो ।

मुक्त होने के लिए चित्त का गुणातीत होना आवश्यक है …किन्तु हमारा चित्त तो संसार के गुणों में आसक्त है …..और संसार के गुण चित्त में प्रविष्ट हैं ऐसे में मोक्ष की कामना वाला साधक कैसे मुक्त हो सकता है ।

ब्रह्मा जी इस प्रश्न को सुनकर अपने पुत्रों सनकादि कुमारों को देखने लगे ……उनसे उत्तर देते बना नही ……क्यो कि सृष्टि कार्य में व्यस्त थे ब्रह्मा । कर्म में ही उनकी बुद्धि थी ….इसलिए ब्रह्मा जी ने मुझे याद किया …और देखते ही देखते मैं वहाँ हंस के रूप में प्रकट हो गया था ।

उद्धव आनंदित होकर भगवान के हंसावतार की कथा सुन रहे थे ।

मुझे हंस के रूप में देखकर वो सनकादि ऋषि पहचान न पाए …..अपने पिता ब्रह्मा जी को आगे करके ….मुझ से उन चारों कुमारों ने पूछा – आप कौन हैं ?

मैं हंसा …..फिर मैंने उनसे प्रतिप्रश्न किया कि हे ऋषियों ! ये प्रश्न किसको लेकर तुम कर रहे हो ….शरीर को लेकर या आत्मा को लेकर ?

मेरे प्रतिप्रश्न ने उन्हें विचलित किया ……वो कुछ बोल नही पाए ।

तो मैंने ही उन चारों सनकादी कुमारों से कहा …..अगर तुम शरीर को लेकर प्रश्न पूछ रहे हो …तो शरीर नाशवान है …….नाशवान का क्या परिचय !

और तुम कहो कि ….मैंने तो आत्मा को लेकर प्रश्न किया है तो आत्मा तो सबकी एक ही है ….जो तुम्हारी वो मेरी ….फिर उसका क्या परिचय ।

उद्धव ! प्रश्न सब व्यर्थ ही होते हैं । इसलिए मैंने हंस के रूप में प्रथम , प्रश्न को ही निरर्थक सिद्ध कर दिया था ।

क्रमशः …
शेष चरित्र कल

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