श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “उद्धव बद्रीनाथ जाओ” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 89 !!
भाग 2
इसलिए सतंसग करते रहना चाहिए …बड़े बड़े सिद्ध भी अन्य साधना को छोड देते हैं पर सत्संग वो भी नही छोड़ते ….मन का कभी भरोसा मत करना ….उद्धव ! इसलिए मैं कह रहा हूँ सत्संग करो …सत्संग मत छोड़ो । भगवान इतना ही अंतिम में बोल कर मौन हो गए थे ……..
मैं भी मौन हो गया …….अब मुझे भी कुछ बोलना अच्छा नही लग रहा था ।
उद्धव ! मेरे प्रिय उद्धव !
अपने लिए ऐसा सम्बोधन सुनकर हिलकियाँ फूट पड़ी थीं मेरी ।
तुम बद्रीनाथ जाओ उद्धव !
क्यो , मैं क्यो जाऊँ बद्रीनाथ ? आपके परमधाम जाते ही मैं भी अपने इस देह को त्याग दूँगा ।
मेरी आज्ञा नही मानोगे ?
ये क्या कह रहे हैं आप …इतने कठोर क्यो बन रहे हो नाथ ! मेरे अश्रु रुक नही रहे थे ।
“तुम बद्रीनाथ जाओ” ….ये आज्ञा फिर मिली मुझे ….पर इस बार स्वयं भगवान के नेत्र सजल हो गए थे ………तुम उद्धव ! बद्रीनाथ जाते समय मेरे वृन्दावन भी चले जाना । वैसे वहाँ कोई नही होगा….क्यो कि मेरे परिकर मेरे साथ ही धाम जाएँगे ……मैं जब तक इस धरा पर हूँ तभी तक वो भी हैं ……किन्तु ….मेरी प्राणों से प्यारी भूमि श्रीधाम वृन्दावन को देखना …….तुम देखोगे तो मुझे लगेगा मैंने ही देख लिया ….तुम जाओगे ना उद्धव ! अश्रु बह चले थे ये कहते हुए मेरे नाथ के ।
मैं भी उनकी ये दशा देखकर और रोने लगा था …….ओह ।
शेष चरित्र कल-


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