श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “प्रभास क्षेत्र की ओर”- उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 90 !!
भाग 1
तात ! मैं नेत्रों में अश्रु भरकर खड़ा हो गया था …क्या करता मेरे नाथ ने मुझे आज्ञा दे दी थी अभी जाओ बद्रीधाम के लिए ….तभी अनिरुद्ध आगये थे उन्होंने आते ही कहा था – द्वारिका में हाहाकार मच गया है ।
उद्धव कहते हैं …मैं काँप गया अनिरुद्ध की बातें सुनकर …हे तात विदुर जी ! मैं रुक ही गया …..मैं समझ गया था कि ऋषियों के शाप का परिणाम आ रहा है ।
क्या हुआ वत्स ?
अविचल रहे भगवान श्रीकृष्ण अनिरुद्ध की बातों से वो तनिक भी विचलित नही हुए थे ।
गायों के स्तन से रक्त बहने लगा है ….ये स्थिति पूरे द्वारिका की है ।
देवालयों की मूर्तियों को देखो तो लगता है कि वो मूर्तियां रो रही हैं ।
स्वान बस जब देखो तब रोते ही रहते हैं ….इतना ही नही ….लोगों के मन में अब एक दूसरे के प्रति द्वेष भर रहा है ……अपशकुन मानों पूर्ण रूप से द्वारिका में ही आगये हैं ।
अनिरुद्ध घबड़ाए हुए हैं ….वो बोलते हुए भी आज हकलाने लगे थे ।
भगवान श्रीकृष्ण ने अनिरुद्ध के कन्धे में अपने कर रखे फिर शांत भाव से बोले ….चलो सुधर्मा सभा …..और शीघ्र समस्त मेरे यादव कुल के परिकरों को वहाँ बुलवाओ ।
भगवान श्रीकृष्ण वहीं से सुधर्मा सभा की ओर ही चल दिए थे ।
नाथ ! नाथ ! ये क्या हो रहा है ?
सामने से दारुक सारथी रोता हुआ आया और भगवान के श्रीचरणों में गिर गया ।
तुम शोक क्यो कर रहे हो …..शान्त हो और रथ लेकर आओ ….मुझे आज सभा में जाना है ।
अनिरुद्ध को भेज दिया भगवान ने , यादवों को सभा में बुलाने के लिए …..रथ शीघ्र आगया …मैं दूर खड़ा था …..मेरी और भगवान ने देखा ….फिर नयनों के संकेत से कहा …आओ , अभी मेरे साथ चलो ।
मैं दौड़ कर भगवान के साथ रथ में बैठ गया था …दारुक ! ये जो हो रहा है ….ये होगा । और और बढ़ेगा ….ये द्वारिका समुद्र में डूब जाएगी …..भगवान कितने शान्त भाव से अपने सारथी से बातें कर रहे थे …..दारुक रोते रोते रथ चला रहा था ….उसका मुख अश्रुओं से भर गया था ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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