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June 4, 2025 1:38 pm

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KNOW ABOUT DEATH.. PURPOSE OF GOAL : Niru Ashra

KNOW ABOUT DEATH.. PURPOSE OF GOAL : Niru Ashra

KNOW ABOUT DEATH.. PURPOSE OF GOAL

यदि हम आत्मा की सत्यता पर विश्वास करते है तो प्रश्न यह उठता है कि मृत्यु के बाद आखिर आत्मा कहां जाती है।

मानव स्वभाव के अनुसार उसकी जिज्ञासा सहज ही उस दुनियां को जानने की हो उठती कि जिसमें आत्मा मृत्योपरांत भौतिक जगत को छोड़कर जाती है।

मृत्यु दो प्रकार की होती है -प्राकृतिक और अप्राकृतिक।

प्राकृतिक मृत्यु का आभास मनुष्य को पहले ही हो जाता है और आभास होते ही उसके मानस में जीवन की वह तमाम घटनायें सजीव हो उठती हैं, जिनका भारी मूल्य रहा है। सारे पाप पुण्य, अच्छाई बुराई सब याद आने लगती है। एक प्रकार की घबराहट होने लगती है। सारा शरीर फटने लगता है। खून की गति कम होने लगती है। सांस उखड़ने लगती है। मंद मंद बाहरी चेतना लुप्त होने लगती है, जो बाद में एक गहरी मूर्च्छा में बदल जाती है। इसी मूर्च्छा की दशा में खुले हुये किसी भी इन्द्रियमार्ग से एक झटके के साथ आत्मा शरीर छोड़कर बाहर निकल जाती है।

अप्राकृतिक मृत्यु में चेतना शून्यता और मूर्च्छा प्रायः एक ही समय होती है और उसी स्थिति में आत्मा शरीर से अलग हो जाती है। चेतना में शून्यता और मूर्च्छा दो भिन्न-भिन्न स्थितियां हैं। चेतना शून्यता के बाद और मूर्च्छा से पहले की स्थिति में मनुष्य को उपचार के द्वारा बचाया भी जा सकता है। दोनों स्थितियों के बीच दो घंटे से बारह घंटे का अंतराल समझना चाहिये। इस अंतराल में मनुष्य को अपना जीवन उसके साथ घटित घटनायें और उसके द्वारा किये गए सारे कर्म स्वप्न की तरह अनुभव होते हैं। जो लोग मरकर पुनः जीवित हो उठते हैं, वह इसी अंतराल से निकलकर बाहर आते है। ऐसे लोग मृत्यु के बाद हुये अनुभव का वर्णन उसी प्रकार करते हैं -जैसे जागने पर लोग सपने का वर्णन करते हैं। अज्ञानीजन इसी अंतराल में पड़े हुये मनुष्य को मरा हुआ मानकर उसका अंतिम संस्कार कर डालते हैं। यह भारी भूल होती है। दूसरी स्थिति को मूर्च्छा कहते हैं। साधारण मूर्च्छा में चेहरा विकृत नहीं होता है। मृत्यु की मूर्च्छा में उसका चेहरा विकृत हो जाता है, यही मूर्छा की पहचान है। जबतक चेहरा विकृत न होकर शांत निर्विकार रहता है, तबतक मृत्यु की मूर्च्छा नहीं समझनी चाहिये और ऐसी स्थित में व्यक्ति को उपचार के द्वारा बचाया जा सकता है, लेकिन वह तभी संभव है, जब उसकी मृत्यु नहीं आई हो।

मनुष्य जन्म में, परमात्मा ने,जन्मों जन्मांतर की मैल छुड़ाने का मोका दिया है।
पर वो जब संसार में आता है तो वो खुद नहीं नहा पाता उसे नहलाना पड़ता है।शरीर की बाहरी गंदगी तो साफ हो जाती है,पर मन के भीतर की गंदगी तो वेसी की वेसी गंदी पड़ी रहती है।जब तक मनुष्य संसार में जीता है, परिवारिक जिम्मेदारियों के चक्कर में उसे मन के भीतर की सफाई करने का मौक़ा नहीं मिलता।ओर बाहर की ,घर की, कपड़ों की,बर्तनों की सफाई में लगा रहता है।
पर मन की सफाई करने का मौका नहीं मिलता ओर संसार से जाने का समय आ जाता है तब,उस वक्त भी ये खुद नहीं नहा सकता।बैगर नहाए मन की गंदगी को लेकर वापस चला जाता है। आखिर किस बात का गुरूर है इसे इसका जन्म मन की गंदगी साफ करने के लिए हुआ था। पर ये शरीर की बाहरी सफाई में लगा रहा इसे फिर दुबारा जन्म के लिए वापस आना पड़ता है।
Niranjana………..

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