श्रीराधाचरितामृतम् – 1
वज्रनाभ और महर्षि शाण्डिल्य
भाग 3
नेत्रों से झरझर आँसू बह चले थे, वज्रनाभ और परीक्षित के ….।
पर आज बृज की ये स्थिति ?
ऐसा वीरान क्यों हो गया ये बृज मण्डल ?
उठे महर्षि शाण्डिल्य …………कुटिया से बाहर आये …………वज्रनाभ और परीक्षित ने भी उनका अनुसरण किया ।
श्रीकृष्ण …………..पूर्णब्रह्म ……….पूर्ण परात्पर परब्रह्म ……….।
इतना बोलकर मौन हो गए थे महर्षि …………..
फिर कुछ समय बाद ही मौन को तोड़ा था उन्होंने …………
दो प्रकार की लीलाएं होती हैं भगवान की ………………..
महर्षि नें समझाया ।
एक लीला होती है .”व्यवहारिकी”, और दूसरी लीला होती है “नित्य” ।
व्यवहारिकी लीला में विरह दिखाई देता है ………महर्षि प्रेमसे “लीला रहस्य” को समझा रहे थे ।
व्यवहारिकी लीला में वियोग दिखाई देता है …………मिलना दिखाई देता है और बिछुड़ना दिखाई देता है ……..लीला का प्राकट्य दिखाई देता है …..और लीला का संवरण दिखाई देता है …………पर एक लीला चल रही है ………..नित्य निरन्तर चल रही है …….प्रलय में भी उस लीला का विराम नही होता ………..ये नित्य लीला ब्रह्म और उसकी आल्हादिनी के साथ चलती ही रहती है ।
आल्हादिनी ? वज्रनाभ नें पूछना चाहा ।
महर्षि के नेत्र सजल हो उठे …………..भावातिरेक से उनकी वाणी अवरुद्ध हो गयी ………वो काफी देर तक कुछ बोल नही पाये ।
राधा ! राधा ! राधा ! यही नाम गूंजनें लगा महर्षि के रोम रोम से …….आश्चर्य ! पृथ्वी का कण कण बोलने लगा था – राधा ! राधा ! राधा ! …..आकाश भी गुँजित हो उठा …….राधा राधा राधा !
घड़ी दो घड़ी बीतनें पर जब महर्षि को होश आया तब ……..
राधा कौन है ? हस्तिनापुर नरेश परीक्षित नें ये प्रश्न किया था ।
राधा ! आहा ! महर्षि आनन्दसिंधु में डूब रहे थे ।
क्या तुम लोगों नें ब्रह्म का ये नाम “आत्माराम” नही सुना ?
क्या तुम नही जानते कि ब्रह्म को “आत्माराम” कहा जाता है ?
सिर हिलाकर वज्रनाभ नें महर्षि की बात का अनुमोदन किया ।
वत्स ! पता है तुम्हे वो ब्रह्म अपनी ही आत्मा से रमण करता है इसलिये उसे “आत्माराम” कहा गया है ।
महर्षि शाण्डिल्य गाम्भीर्यचर्चा करनें जा रहे थे ।
वत्स ! ब्रह्म की आत्मा का नाम ही है राधा…….महर्षि नें बताया ।
प्रेम है ब्रह्म की राधा ……ब्रह्म के प्रेम नें ही आकार ले लिया है राधा के रूप में……..कृष्ण ब्रह्म हैं……और उनकी आत्मा ही राधा हैं ।
लम्बी साँस ली महर्षि नें ……………फिर बोले …………..
जिस भूमि में मैं बैठा हूँ ……….ये भूमि उन्हीं ब्रजेश्वरी श्रीराधा रानी की है …….ये उन्हीं की जन्म भूमि है …………।
हाँ ……….इसी का नाम है बरसाना ( प्राचीन शास्त्र में इसका नाम “वृहत्सानुपुर” बताया गया है )
इसी बरसानें में उस दिव्य भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को मध्यान्ह के समय श्रीराधारानी का प्राकट्य हुआ था ……….आहा ! क्या दिन था वो ……….मुझे जब जब स्मरण होता है मैं भाव में डूब जाता हूँ ।
यहाँ बरसा था वो प्रेम रस ………..पर नित्य लीला रुकी नही है …………ये व्यवहारिकी लीला ही रुक गयी है ……….बाकी नित्य लीला तो अभी भी चल ही रही है ।
महर्षि की बातों से वज्रनाभ आनन्दित हुए …………रात्रि होनें जा रही थी ……….परीक्षित को लौटना था हस्तिनापुर ……..क्यों की उनको तो प्रजा भी देखनी थी !
परीक्षित नें फिर आनें की बात कहकर ……सौ, दो सौ सैनिक व्यवस्था में छोड़कर ….. चले गए ।
पर वज्रनाभ को तो महर्षि शाण्डिल्य से “श्रीराधा चरित्र” सुनना था ……और सम्पूर्ण सुनना था ……..जिन श्रीराधा के पीछे कृष्ण अपनें आपको मिटाकर दौड़ पड़ता था ……..जिन श्रीराधा के चरणों में अपनें आपको चढ़ा देता था …………उस “श्रीराधा चरित्र” को सुनना चाहता है ये श्रीकृष्ण का पड़पोता वज्रनाभ ………………प्रार्थना की महर्षि शाण्डिल्य के चरणों में ।
क्या ! श्रीराधा चरित्र ?
हाँ ……………आप ही मुझे सुना सकते हैं महर्षि ! मना न करें ।
वज्रनाभ नें प्रार्थना की ।
राधे तू बड़ भागिनी कौन तपस्या किन !
तीन लोक तारन तरन सो तेरे आधीन !!
शेष चरित्र कल …..
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