!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 4 !!
बृजमण्डल देश दिखाओ रसिया !
भाग 1
उस निकुञ्ज वन में बैठे श्याम सुन्दर आज अपनें अश्रु पोंछ रहे थे ।
क्या हुआ ? आप क्यों रो रहे हैं ?
श्रीराधा रानी नें देखा ……….वो दौड़ पडीं और अपनें प्यारे को हृदय से लगाते हुए बोलीं ……….क्या हुआ ?
नही…. कुछ नही ………..अपनें आँसू पोंछ लिए श्याम सुन्दर नें ।
मुझे नही बताओगे ?
कृष्ण के कपोल को चूमते हुए श्रीजी नें फिर पूछा ।
मुझे अब जाना होगा ………..पृथ्वी में अवतार लेनें के लिए, मुझे अब जाना होगा ……….पर मैं भी तो जा रही हूँ ना ? मैं भी तो आपके साथ अवतार ले रही हूँ ?
हाँ …….पर हे राधे ! मैं पहले जाऊँगा …………….
तो क्या हुआ ? पर आप रो क्यों रहे हो ?
तुम्हारा वियोग ! हे राधिके ! इस अवतार में संयोग वियोग की तरंगें निकलती रहेंगी ………….मेरा हृदय अभी से रो रहा है …….कि आपको मेरा वियोग सौ वर्ष का सहन करना पड़ेगा ।
पर प्यारे ! संयोग में तो एक ही स्थान पर प्रियतम दिखाई देता है …..पर वियोग में तो सर्वत्र ……..सभी जगह ……………..
मुझे पता है ……..मेरा एक क्षण का वियोग भी आपको विचलित कर देता है……..पर कोई बात नही ……..लीला ही तो है ये …..हमारा वास्तव में कोई वियोग तो है नही………न होगा …….
इसलिये आप अब ये अश्रु बहाना बन्द करो ……….और हाँ …..
कुछ सोचनें लगीं श्रीराधा ……….फिर बोलीं – हाँ …….मुझे बृज मण्डल नही दिखाओगे ? प्यारे ! मुझे दर्शन करनें हैं उस बृज के …..जहाँ हम लोगों की केलि होगी ……..जहाँ हम लोग विहार करेंगें ।
चलो ! उठो……….श्रीराधा रानी नें अपनें प्राण श्याम सुन्दर को उठाया …………और दोनों “बृज मण्डल” देखनें के लिये चल पड़े थे ।
“श्रीराधाचरित्र” का गान करते हुये इन दिनों महर्षि शाण्डिल्य भाव में ही डूबे रहते हैं …….वज्रनाभ को तो “श्रीराधाचरित्र” के श्रवण नें ही देहातीत बना दिया है ।
हे वज्रनाभ ! ” बृज” का अर्थ होता है व्यापक ………और” ब्रह्म” का अर्थ भी होता है व्यापक ………….यानि ब्रह्म और बृज दोनों पर्याय ही हैं ………इसको ऐसे समझो ……..जैसे ब्रह्म ही बृज के रूप में पहले ही पृथ्वी में अवतार ले चुका है ।
गलवैयाँ दिए “युगल सरकार” बृज मण्डल देखनें के लिये अंतरिक्ष में घूम रहे हैं ……..देवताओं नें जब “युगल सरकार” के दर्शन किये ……..तो उनके आनन्द का ठिकाना नही रहा ………….
हमें भी बृज मण्डल में जन्म लेनें का सौभाग्य मिलना चाहिए ……..समस्त देवों की यही प्रार्थना चलनी शुरू हो गयी थी ……..
हे वज्रनाभ ! इतना ही नही …….ब्रह्मा शंकर और स्वयं विष्णु भी यही प्रार्थना कर रहे थे ………….।
देवियों नें बड़े प्रेम से “युगल मन्त्र” का गान करना शुरू कर दिया था ।
इनकी भी अभिलाषा थी कि हम अष्ट सखियों की भी सखी बनकर बरसानें में रहेंगी ………पर हमें भी सौभाग्य मिलना चाहिए ।
इतना ही नही ……दूसरी तरफ श्रीराधिका जी नें देखा तो एक लम्बी लाइन लगी है ……….।
प्यारे ! ये क्या है ? इतनी लम्बी लाइन ? और ये लोग कौन हैं ?
हे प्रिये ! ये समस्त तीर्थ हैं ……….ये बद्रीनाथ हैं ……ये केदार नाथ हैं …..ये रामेश्वरम् हैं ……….ये अयोध्या हैं ………..ये हरिद्वार हैं ……ये जगन्नाथ पुरी हैं ……ये अनन्त तीर्थ आपसे प्रार्थना करनें आये हैं ।
और इनकी प्रार्थना है कि बृहत्सानुपुर ( बरसाना ) के आस पास ही हमें स्थान दिया जाए………तभी हमें भी आल्हादिनी का कृपा प्रसाद प्राप्त होता रहेगा …….नही तो पापियों के पापों को धोते धोते ही हम उस प्रेमानन्द से भी वंचित ही रहेंगें …..जो अब बृज की गलियों में बहनें वाला है ।
उच्च स्वर से , जगत का मंगल करनें वाली ……….युगल महामन्त्र का सब गान करनें लगे थे ।
मुस्कुराते हुए चारों और दृष्टिपात कर रही हैं आल्हादिनी श्रीराधा रानी ।
और जिस ओर ये देख लेतीं हैं……वो देवता या कोई तीर्थ भी, धन्य हो जाता है ……और “जय हो जय हो” का उदघोष करनें लग जाता है ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877