!! “श्रीराधाचरितामृतम् 3 !!
“भानु” की लली – श्रीराधारानी
भाग 3
कुछ शान्ति मिली श्रीराधा रानी को …….श्याम सुन्दर की बातों से ।
पर मेरा जन्म पृथ्वी में किस स्थान पर होगा ? और आपका ?
हम आस पास में ही प्रकट होंगें …….भारत वर्ष के बृज क्षेत्र में ……।
हमारे पिता कौन होंगें ? श्रीराधा रानी नें पूछा ।
चलो ! हे प्यारी ! मैं आपके अवतार की पूरी भूमिका बताता हूँ ।
इतना कहकर गलवैया दिए श्याम सुन्दर और राधा रानी चल दिए थे उस स्थान पर …….जहाँ हजारों वर्षों से कोई तप कर रहा था ।
हे सूर्यदेव ! हे भानु ! आप अपनें नेत्रों को खोलिए !
श्याम सुन्दर नें प्रकट होकर कहा ।
सूर्य नें अपनें नेत्रों को खोला ………..पर मात्र श्याम सुन्दर को देखकर फिर अपनें नेत्रों को बन्द कर लिया ।
हे भगवन् ! मुझे मात्र आपके दर्शन नही करनें …………..मेरे सूर्यवंश में तो आपनें अवतार लिया ही था …………पर एक जो कलंक आपनें लगाया ……….वो मैं अभी तक मिटा नही पाया हूँ ।
मुस्कुराये श्याम सुन्दर ………..”सीता त्याग की घटना” से अभी तक व्यथित हो ……हे सूर्य देव !
क्यों न होऊं ? आपकी विमल कीर्ति में ये सीता त्याग एक धब्बा ही तो था ……………इसलिये !
क्या इसलिये ? मैं तभी अपनें नेत्रों को खोलूंगा जब मेरे सामनें श्रीकिशोरी जी प्रकट होंगीं …………..स्पष्टतः सूर्य नें कहा ।
तो देखो हे सूर्यदेव ! ये हैं मेरी आत्मा श्रीकिशोरी जी ।
यही सब शक्तियों के रूप में विराजित हैं ……..यही सीता, यही लक्ष्मी ….यही काली …….सबमें इन्हीं का ही अंश है …………।
हे वज्रनाभ ! सूर्यदेव नें जैसे ही अपनें नेत्रों को खोला ……….सामनें दिव्य तेज वाली तपते हुए सुवर्ण की तरह जिनका अंग है ……….ऐसी श्रीराधिका जी प्रकट हुयीं …………..
सूर्य नें स्तुति की ………………जयजयकार किया ………।
आप क्या चाहते हैं ? आपकी कोई कामना , हे सूर्यदेव !
अमृत से भी मीठी वाणी में श्रीराधा रानी नें सूर्य देव से पूछा ।
आनन्दित होते हुए सूर्य नें ………हाथ जोड़कर कहा ………मेरे वंश में श्रीराम नें अवतार लिया था …….पर आप का अपमान हुआ ……ये मुझे सह्य नही था ……….श्रीराम तो अवतार पूरा करके साकेत चले गए……..पर मेरा हृदय अत्यन्त दुःखी ही रहता था ……कोमलांगी भोरी सरला मेरी बहू किशोरी को बहुत दुःख दिया मेरे वंश नें ।
तभी से मैं तपस्या कर रहा हूँ ……….सूर्य देव नें अपनी बात कही ।
पर आप क्या चाहते हैं ? राधा रानी नें कहा ।
इस बार आप मेरी पुत्री बनकर आओ !
सूर्यदेव नें हाथ जोड़कर और श्रीराधिका जू के चरणों की ओर देखते हुए ये प्रार्थना की ।
हाँ ………मैं आऊँगी ………मैं आपकी ही पुत्री बनकर आऊँगी ।
.हे सूर्यदेव ! आप बृज के राजा होंगें……वृहत्सानुपुर ( बरसाना ) आपकी राजधानी होगी…….और आपका नाम होगा …….बृषभानु …….आप की पत्नी का नाम होगा …….कीर्तिदा !
सूर्यदेव को ये वरदान मिला ………सूर्यदेव नें श्रीराधिकाष्टक का गान किया ….युगल सरकार अंतर्ध्यान हुए ।
पर प्यारे ! आपका अवतार ?
निकुञ्ज में प्रवेश करते ही श्री राधा रानी नें कृष्ण से पूछा था ।
मैं ? मुस्कुराये कृष्ण ……….मैं तो एक रूप से वसुदेव का पुत्र भी बनूंगा और गोकुल में नन्द राय का भी ……..देवकी नन्दन भी और यशोदानन्दन भी ………..गोकुल से बरसाना दूर नही हैं ………फिर हम लोग गोकुल भी तो छोड़ देंगें और आजायेंगे तुम्हारे राज्य में ही …..यानि बरसानें में ही ।
हम यहाँ नही रहेंगी …….हम सब भी जाएँगी ……….
श्रीराधा रानी की अष्ट सखियों नें प्रार्थना की ……और मात्र अष्ट सखियों नें ही नही ……..उन अष्ट की अष्ट सखियों नें भी …….निकुञ्ज के मोरों नें भी ……..निकुञ्ज के पक्षियों नें भी ……………लता पत्रों नें भी ।
श्रीराधा रानी नें कहा ……… ये सब भी जायेंगें ………….ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी ….निकुञ्ज में ।
हे वज्रनाभ ! आस्तित्व प्रसन्न है ………….आस्तित्व अब प्रतीक्षा कर था है उस दिन की …..जब प्रेम की स्वामिनी आल्हादिनी ब्रह्म रस प्रदायिनी …….श्रीराधा रानी का प्राकट्य हो ।
वज्रनाभ के आनन्द का ठिकाना नही है…….इनको न भूख लग रही है न प्यास…..श्रीराधाचरित्र को सुनते हुए ये देहातीत होते जा रहे थे ।
भानु की लली ! या सावरिया सों नेहा , लगाय के चली ….!
शेष चरित्र कल –
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