!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 4 !!
बृजमण्डल देश दिखाओ रसिया !
भाग 3
पर आपके पिता तो वसुदेव जी ?
……पिता जन्म देनें मात्र से नही बनते ……जब तक उनका वात्सल्य पूर्ण रूप से पुत्र में बरस न जाए ……तब तक पिता , पिता नही …माता माता नही ।
नन्दबाबा ……..इनका वात्सल्य मेरे ऊपर बरसा ।
श्रीराधारानी नें तुरन्त अपना घूँघट खींच लिया था…..ससुर जी जो हैं ।
और ये देखो ! हे राधे ! ये है आपका गाँव बरसाना ……श्याम सुन्दर नें दिखाया ।
अपनी होनें वाली जन्म भूमि को श्रीराधिका जू नें प्रणाम किया ।
पर प्यारे ! यहाँ भी उत्सव चल रहा है !……..बधाई गाई जा रही हैं !
कितनें प्रेमपूर्ण लोग हैं यहाँ के ……….लगता है यहाँ भी किसी का जन्म हो रहा है …………….
श्रीराधा के गले में हाथ डाले श्याम सुन्दर नें कहा ……..आपके पिता जी का जन्म हो रहा है ……..मेरे पिता जी का ? हँसी श्रीराधारानी ।
हाँ ….आपके पिता जी …..।
देखो ! मेरी प्रिये ! वो जो भीड़ में बैठे हैं ना ….पगड़ी बाँधे ……..मूंछो में ताव दे रहे हैं ……..इनका नाम है “महिभान” …….ये बहुत बड़े श्रीमन्त हैं ……….और शक्तिशाली भी बहुत हैं …….इनके यहाँ ही आज पुत्र जन्मा है ………आपके पिता जी “बृषभान” ।
सूर्यदेव के अवतार हैं ये …………..श्रीकृष्ण नें कहा ।
इस बार दोनों युगलवर नें ही “बरसानें धाम” को प्रणाम किया था ।
“हमें इसी बरसाना धाम के पास ही स्थान दिया जाए”.
बद्रीनाथ के “अधिदैव” आगे आये…..उनके पीछे केदारनाथ भी थे……श्रीराधा रानी मुस्कुराईं ….अच्छा ! ठीक है …….बरसानें के उत्तर दिशा की ओर बद्रीनाथ आप का निवास रहेगा……केदार नाथ को उनके पास में ही स्थान दे दिया था …..।
बरसानें की रेणु ( रज कण ) में रामेश्वर धाम को स्थान मिला ।
यहाँ की गोपियाँ जहाँ चरण रखें …. हरिद्वार वहीं बहे ।
श्रीराधारानी नें समस्त तीर्थों को प्रसन्न किया ………..फिर देवताओं की ओर देखते हुए बोलीं …………हे देवों ! तुम मथुरा में जन्म लोगे ……..फिर द्वारिका तक तुम्हीं श्रीकृष्ण के साथ जाओगे ।
और देवियों ! इन सब देवों की पत्नियाँ तुम ही बनकर जाओ ।
“जय राधे जय राधे राधे , जय राधे जय श्रीराधे”
यही युगल संकीर्तन करते हुए सब देवता चले गए थे अपनें अपनें लोकों की ओर ।
हे आल्हादिनी ! हे हरिप्रिये ! हे कृष्णाकर्षिणी ! हम तीनों देवों को भी कुछ स्थान मिले बृज में ………हाथ जोड़कर ब्रह्मा , विष्णु , महेश नें प्रार्थना की ………….तब मुस्कुराते हुए श्रीराधा रानी बोलीं –
हे विष्णु ! आप “गोवर्धन पर्वत” के रूप में बृज में रहोगे …………और हे ब्रह्मा ! आप मेरे बरसानें धाम में “ब्रह्माचल पर्वत” के रूप में यहाँ वास करोगे ………और हे शिव ! आप नन्द गाँव में “रुद्राचल पर्वत” के रूप में आपका वास रहेगा ।
दिव्यातिदिव्य स्वरूपिणी श्रीराधा रानी के माधुर्यपूर्ण वचन सुनकर तीनों देव आनन्दित हुए …….और प्रार्थना करते हुए अपनें अपनें धाम चले गए थे ।
राधे ! देखो ! वो ग्वाला !
…..श्याम सुन्दर नें दिखाया……वो बृज का ग्वाला……..बड़े प्रेम से गौ चराते हुए …..बड़ी मस्ती में गाता जा रहा था
“बृज मण्डल देश दिखाओ रसिया ! बृज मण्डल”
महर्षि शाण्डिल्य नें कहा …..बृज की महिमा अपार है …….हे वज्रनाभ ! तुम्ही विचार करो……..जिस बृज की रज को स्वयं ब्रह्म चख रहा हो …..उस बृज की महिमा कौन गा सकता है ।
मुझे जाना पड़ेगा अब राधे ! अवतार का समय आगया !
अपनें हृदय से लगाया श्याम सुन्दर नें श्रीराधा रानी को ………नेत्रों से अश्रु बह चले थे दोनों के ।
शेष चरित्र कल –


Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877