!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 91 !!
उद्धव गीत
भाग 2
क्यों न करे ?
बिना पादत्राण के चले हैं यहाँ वे .......उन्हीं कोमल चरणों के स्पर्श का अनुभव करते हुए ......धरती को रोमांच हो रहा है ।
बीच बीच में मतवारे मयूर कुहुक उठते हैं !
सम्पूर्ण वृन्दावन मुखरित हो उठता है उनके मादक रव से ।
और उस समय हृदय हठात् पुकार उठता है –
जय हो प्यारे !
मैं धन्य हो गयी ………हो गयी ?
क्या मैं पुरुष नही ? क्या मैं गोपी ?
प्रेम में बिना गोपी बने ………प्रेम पूर्ण होगा कैसे ?
“पुरुष तो एक मात्र कृष्ण है”…….ये रहस्य भी यहीं उजागर होता है ।
जय हो मेरे प्यारे की !
मैं धन्य हो गयी ………..
क्यों की मैं तुम्हारे लीला निकेत में हूँ ।
पर तुम दीखे नही ! क्यों ?
आखिर कब तक छुपोगे ?
कब तक चलेगी ये आँखमिचौनी ?
देखना ! मैं तुम्हे ढूंढ कर ही रहूँगी ।
मेरे मन अधीर मत हो …….वे यहीं कहीं होंगें ।
आहा ! ये श्रीधाम वृन्दावन है ………
देखो देखो ! ये श्रीधाम वृन्दावन है………यहाँ प्रतिक्षण, नवीन नवीन प्रेम लीलाएं अनुष्ठान के रूप में की जाती हैं …………
यहाँ हरियाली जो दीख रही है ना…..यही तो है गौर श्याम का मिलन !
यह वृन्दावन की हरियाली………हरा रँग …….उफ़ ! मानों पीला और काला रँग मिल गया हो……..पीत रँग श्रीराधा रानी का ……और काला रँग श्रीकृष्ण का…….तो दोनों रँग को मिला दो…….हो जाता है हरा ! ये हरियाली “युगल” के मिलन का प्रमाण है ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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