!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 5 !!
गोकुल में प्रकटे श्यामसुन्दर
भाग 2
नौ पुत्र थे “पर्जन्य गोप” के…………..पर सबसे छोटे पुत्र थे पर्जन्य के ………”नन्द” ।
मैने उन्हें ही देखा ……………पाँच वर्ष के थे वो ………पर सबसे तेजवान …………..मुस्कुराहट बहुत अच्छी थी …..
सबनें मेरे पद छूये ।
…………गोकुल गाँव के लोग कितनें भोले भाले थे !……….ओह ! सब मेरा ही ख्याल रखते थे ।
समय बीतनें में क्या देरी लगती है ! वो तो दीर्घजीवी होनें का वरदान मुझे मिला है ……..नही तो सब अपनें समयानुसार वृद्ध और मृत्यु को प्राप्त हो ही रहे थे ।
वृद्ध हो चले थे पर्जन्य गोप अब………….मुझे बुलाया था कुछ मन्त्रणा करनें के लिए …………मैं जब गया ……….तो मुझे देखकर वहाँ बैठे बड़े बड़े सभ्य पुरुष खड़े हो गए ।
ये हमारे प्रिय मित्र हैं “महिभान”…..पर्जन्य नें परिचय कराया ………ये बरसानें के अधिपति हैं ……………….और ये मेरा पुत्र “बृषभान” ……..महिभान कितनें सरल और मृदु थे ………..और ये इनके पुत्र ! ……मैने देखा ………….तेज़ इतना था “बृषभान” के मुख मण्डल में कि मुझ से भी देखा नही गया ………….मैं स्तब्ध था उस बालक को देखते हुये ……………।
हे महर्षि ! आपको कष्ट देनें का कारण ये है कि मैं अब चाहता हूँ ……..मेरे छोटे पुत्र जो नन्द हैं …….इनको मैं अपनी पगड़ी दे दूँ ।
और आप ? मैने पूछा था ।
हम तो जा रहे हैं भजन करनें बद्रीनाथ …………..हम दोनों मित्र जा रहे हैं ……..और ये भी अपनें पुत्र “बृषभान” को बरसानें का भार सौंप रहे हैं ……कन्धे में हाथ रखते हुए महिभान के, पर्जन्य नें कहा था ।
कुशलता से जो कार्यभार को सम्भाल सके उसे ही गद्दी दी जानी चाहिए ………ये अच्छी सोच थी पर्जन्य की ………..”नन्द गोप” कुशल थे ….गांव वाले भी इनकी बात का आदर करते थे …….नेतृत्व क्षमता थी नन्द गोप में …….इनका विवाह हुआ ….यशोदा नामक कन्या से ……जो बहुत भोली थीं ……और निरन्तर अतिथि सेवा में ही लगी रहती थीं ।
उस दिन पर्जन्य गोप नें अपनी पगड़ी पहनाई गयी थी “नन्द” को ………सब आये थे …..राजा.सूरसेन के साथ वसुदेव भी आये थे…….महिभान के साथ बृषभान भी बरसानें से विशेष मणि माणिक्य से सजी हुयी मोर पंख की कलँगी लगी हुयी ……..पगड़ी लेकर आये थे …..और अपनें ही हाथों ……..अपनें प्रिय मित्र नन्द को पहनाया था बृषभान नें ।
“ब्रजपति” बन गए आप मेरे मित्र” ……….बृषभान नें अपनें हृदय से लगा लिया था नन्द को …………आप “बृजरानी” होगयीं ……….बृषभान आज अपनी पत्नी को भी ले आये थे “कीर्ति” रानी को …….वही यशोदा के गले लगते हुए बोलीं थीं ……”आप भी कुछ भी कहती हो” ………भोली बहुत हैं बृजरानी यशोदा ।
काल की गति तो चलती ही रहती है ………..हे वज्रनाभ ! मैं निष्काम भक्ति का आचार्य हूँ ………..”निष्काम भक्ति ही सर्वोपरि है”………यही मेरा सिद्धान्त है……..मैं इसी सिद्धान्त का प्रचारक हूँ ।
पर क्या होगया था मुझे उन दिनों ……….मैं भी कामना कर उठा था भगवान नारायण से……”नन्द गोप के पुत्र हो” ।
मुझे अब हँसी आती है ……..सन्तान गोपालमन्त्र के , मैने कितनें अनुष्ठान स्वयं किये थे ……….मेरी हर समय यही प्रार्थना होती थी भगवान नारायण से की “नन्द के पुत्र हो” ।
मेरे साथ सम्पूर्ण गोकुल वासी भी इसी अनुष्ठान में लगे रहते थे ……कि उनके नन्दराय को पुत्र हो …………।
जिस कामना के करनें से …….”श्याम सुन्दर पधारें”……….वो कामना तो निष्कामना से भी श्रेष्ठ है , है ना वज्रनाभ !
पर नन्द राय और यशोदा बहुत प्रसन्न थे उस दिन ………..मुझे प्रणाम किया ………..जब मैनें उनकी प्रसन्नता का कारण पूछा तो उन्होंने बताया की ……….बरसानें के अधिपति बृषभान के यहाँ एक सुन्दर बालक का जन्म हुआ है ……हम वहीं जा रहे थे ………।
दूसरों के सुख में सुखी होना ही सबसे बड़ी बात है वज्रनाभ ! मैं देखता रहा था इन दोनों दम्पतियों को …..बरसानें चले गए ……वहाँ जाकर खूब नाचे कूदे …और बालक का नाम भी रख दिया…..”श्रीदामा ।
हे यदुवीर वज्रनाभ ! मैं ज्योतिष का कोई विद्वान नही हूँ ……पर “ब्रजपति नन्द राय के पुत्र हो” इसलिये मै रात रात भर ज्योतिष की गणना को खंगालता था ……..पर ज्योतिष नें भी मेरा कोई समाधान नही किया ……………।
पर एक दिन वो समय भी आया ………..जब मुझे ये सूचना मिली कि यशोदा गर्भवती हैं ……….मैं एक विरक्त वैष्णव ……..मुझे क्या ? पर पता नही क्यों मुझे इतनी प्रसन्नता हुयी कि …..मैं उसका वर्णन नही कर सकता ……….ओह ! देखो ! वज्रनाभ ! अभी भी मुझे रोमांच हो रहा है …..वो दृश्य अभी भी मेरी आँखों के सामनें नाच रहा है ।
हाँ ………..ये सूचना देनें वाले स्वयं बृजपति नन्द ही थे ……..मुझे पता नही क्या हुआ …………ये सुनते ही मैं तो नन्दराय का हाथ पकड़ कर नाच उठा ।
आश्चर्य ! प्रकृति प्रसन्न ….अति प्रसन्न हो रही थी ……….यमुना का जल अमृत के समान हो गया था ………..सुगन्धित जल प्रवाहित होनें लगा था यमुना में …………मोरों की संख्या बढ़ रही थी …….तोता कोयल …… ये सब गान करते थे ……….।
किसी को पता नही क्या होनें वाला है ……….”पुत्र ही होगा” मेरे मुख से बारबार यही निकलता था ……पर ज्योतिषीय गणना कह रही थी कि “पुत्री” होगी …….पर मेरा मन नही मान रहा था ……..।
ब्राह्मणों को बुलवाया………मेरे ही कहनें पर नंदराय नें बुलवाया…. …..मैने विप्रों से मन्त्र जाप करनें की प्रार्थना की ……….नित्य सन्तान गोपाल मन्त्र से सहस्त्र आहुति दी जाती थीं ………..पूरा गोकुल गाँव आकर बैठता था ……..बेचारे मन्त्र को तो समझते नही थे ………बस हाथ जोड़कर आँखें बन्दकर के यही कहते ……”नन्द के पुत्र हो” ।
अब हँसी आती है मुझे ……मेरे मन्त्र या यज्ञ अनुष्ठान से “श्याम सुन्दर” थोड़े ही आते ……….वो तो आये इन भोले भाले बृजवासियों की भोली प्रार्थना से ……….प्रेम की पुकार से ।
वो दिन भी आया …………….भादौं कृष्ण अष्टमी की रात्रि……….वार बुधवार …….नक्षत्र रोहिणी ………………..
किसी को पता नही चला कि कब क्या हो गया ?
मेरे पास में ब्रह्ममुहूर्त के समय आये थे नंदराय !
गुरुदेव ! गुरुदेव ! बाहर जोर जोर से बोले जा रहे थे ।
मैं अपनें भजन में लीन था ………पर मेरा मन आज शान्त नही था …..उत्साह और उत्सव से भर गया था …………।
मैं उठा …….अपनी माला झोली रख दी मैने ……बाहर आया …….
क्या हुआ ? मैने नन्द राय से पूछा ।
गुरुदेव ! आपका अनुष्ठान पूरा हो गया ! आपकी कृपा बरस गयी ।
आपनें हम सब को धन्य कर दिया ………बोले जा रहे थे नन्द ।
पर हुआ क्या ? मैं हँसा ।
…….साथ में कई ग्वाले थे ……..वो बतानें जा रहे थे पर नंदराय नें रोक दिया …….”ये सूचना मैं ही दूँगा गुरुदेव को”
हाँ हाँ आप ही दो …….पर शीघ्र बताओ बृजराज ! मैने कहा ।
गुरुदेव !
गिर गए मेरे पग में नन्द ।
मेरे यहाँ एक नीलमणी सा सुन्दर, अत्यन्त सुन्दर बालक का जन्म हुआ है ……………नन्द राय इससे आगे बोल न सके ……आनन्द के कारण उनकी वाणी अवरुद्ध हो गयी ………….उनके आनन्दाश्रु बह चले थे नेत्रों से …………।
क्या !
मैने उछलते हुए बृजराज को पकड़ा ……………..
वो बार बार मेरे पैरों में गिर रहे थे ……मैने जबरदस्ती उन्हें उठाया और उनके हाथों को पकड़, मैं स्वयं नाच उठा …….हम दोनों नाच रहे थे ….।
ऊपर से देवों नें पुष्प बरसानें शुरू किये …………हमारे ऊपर फूल बरस रहे थे ……..हमारे आस पास सब ग्वाले इकठ्ठे हो गए ।
और सब बड़े जोर जोर से गा रहे थे ……………..
“नन्द के आनन्द भयो , जय कन्हैया लाल की”
हे वज्रनाभ ! मैं उस उत्सव का वर्णन नही कर सकता ………..
वो आनन्द शब्दातीत है ……….इतना कहकर महर्षि शाण्डिल्य प्रेम समाधि में चले गए थे ।
शेष चरित्र कल –


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