!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 6 !!
बरसानें ते टीको आयो…..
भाग 2
और हाँ ……….जब श्रीदामा का जन्म हुआ था ना ……तब मैने कहा भी था मित्र नन्द से ……….”मेरे पुत्र को ले जाओ “………..क्यों की मेरे यहाँ तो अब पुत्री का जन्म होनें वाला है ।
“तुम्हारी भाभी भी गर्भवती हैं”………..उसी समय ये शुभ समाचार दे दिया था मुझे मित्र नन्द नें ………तुम्हे तो पता है ना कीर्ति !
हाँ मुझे पता है …….मैने उन भोली बृजरानी यशोदा भाभी को छेड़ा भी था ……..वो कितना शर्मा रही थीं !
तुम्हे पता नही है कीर्ति ! ………..मैं जब विदा करनें बाहर तक आया था तो मित्र नन्द और भाभी बृजरानी को …….तब मैने मित्र नन्द को गले लगाते हुए कहा था …..”अब मेरी पुत्री होगी….आपके पुत्र” ।
“तिहारे मुख में माखन को लौंदा” उन्मुक्त हँसते हुए नन्द राय नें मुझे कहा था …..और पता है मैने एक वचन भी दे दिया है मित्र को ।
चौंक गयीं थीं कीर्तिरानी ……..क्या वचन दिया आपनें ?
मैने वचन दिया कि …..आपके पुत्र होगा …..और मेरी पुत्री होगी …..तो उसी समय “टीको ( सगाई ) होयगो” ।
“श्रीमान् ! बृहत्सानुपुर के अधिपति बृषभान की जय हो ! “
चार ग्वाले आगये थे दूसरे गांव के, उन्होंने ही प्रणाम करते हुए कहा ।
हाँ कहो ………….पर आप लोग तो गोकुल के लगते हो ?
बृषभान नें पूछा ।
जी ! हम लोग गोकुल के हैं …….और श्रीश्री बृजपति नन्द राय के यहाँ से आये हैं…………..
ओह ! आप लोग बैठिये ………बृषभान नें प्रसन्नता व्यक्त की ।
नही हम अभी बैठ नही सकते ………..बस सूचना देकर हम वापस जा रहे हैं…….. गोकुल के उन सभ्य ग्वालों नें कहा ।
पर सूचना क्या है ?
बृजपति श्री नन्द राय स्वयं आते ………….पर वो अत्यन्त व्यस्त हो गए हैं ………इसलिये हमें उन्होंने भेजा है ।
ऐसा क्या हुआ , जिसके कारण व्यस्त हो गए बृजराज ?
“उनके पुत्र हुआ है ” गोकुल के ग्वालों नें बताया ।
जैसे ही ये सुना बृषभान नें ……….उनके आनन्द का तो कोई ठिकाना ही नही रहा था………सबसे पहले तो अपनें ही गले का हार उतार कर उन दूत का कार्य कर रहे , गोकुल के लोगों को दिया ।
कीर्तिरानी ! सुना तुमनें ? उछल पड़े थे आनन्द से बृषभान ।
आप तो ऐसे खुश हो रहे हैं …..जैसे आपके जमाई नें ही जन्म लिया है ।
कीर्तिरानी नें छेड़ा ।
और क्या ? देखना हमारी पुत्री और उनके पुत्र का विवाह होगा ……..और ये ऐसे दम्पति होंगें ……..जो सबसे अनूठे होंगें ……अद्भुत होंगें । बृषभान के हृदय का आनन्द अपनी सीमा पार कर रहा था ।
पर उनके तो पुत्र हो गया …….आपकी पुत्री ?
होगी ………अवश्य होगी ………….मेरी प्रार्थना व्यर्थ नही जायेगी …….मैने समस्त देवों को मनाया है ………वो सब मेरी सुनेंगे ।
पर आप नें ये नही पूछा कि मैं खिरक में आज क्यों आयी ?
कीर्तिरानी नें कुछ शर्माते हुए ये बात कही थी ।
क्यों ? मुझे नही पता ………हाँ वैसे तुम खिरक में कभी आयी नहीं …..पहली बार ही आयी हो ……………
“मैं गर्भवती हूँ “……..और दाई कह रही हैं कि मेरे गर्भ में कन्या है ।
ओह !
इतना सुनते ही गोद में उठा लिया था बृषभान नें कीर्ति रानी को ……और घुमानें लगे थे …………..
उनके नेत्रों से आनन्दाश्रु बह चले थे …………गोद में शिशु श्रीदामा भी मुस्कुरा रहे थे ……..वो भी सोच रहे थे चलो ! मेरा सखा या बहनोई आगया …..अब मेरी बहन श्रीकिशोरी भी आनें वाली हैं ।
अरे ! क्या देख रहे हो ……..जाओ ! पूरे बरसानें में ये बात फैला दो कि ……..हम सब “टीका” लेकर जा रहे हैं गोकुल …….बृषभान नें आनन्द की अतिरेकता में ये बात कही ।
टीका लेकर ? यानि सगाई ?
गांव वालों नें पूछना शुरू किया ।
हाँ अभी से मैं कह रहा हूँ …….नन्द राय के पुत्र हुआ है ……अब मेरी पुत्री होगी……ये पक्का है……इसलिये टीका अभी ही जाना चाहिये हमारी तरफ से…..हम लड़की वाले हैं । बृषभान के आनन्द की कोई थाह नही है आज ।
हाँ ……सब सजो ……..सब बरसानें की सखियाँ सजें ………और टीका लेकर हम सब बरसानें से नाचते गाते हुए गोकुल में चलें ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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