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October 30, 2025 8:15 am

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 25 !!-कृष्ण को भी पावन किया श्रीराधा नें … भाग 1 & 2 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 25 !!-कृष्ण को भी पावन किया श्रीराधा नें … भाग 1 & 2 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 25 !!

कृष्ण

को भी पावन किया श्रीराधा नें …
भाग 1

प्रेम से पवित्र और क्या है ? पापी से पापी को भी पावन बना दे प्रेम ।

अरे! अच्छे अच्छे पतितों को भी पावन बनानें की हिम्मत रखता है – प्रेम ।

फिर हँसे महर्षि शाण्डिल्य ……

“पतित पावन” को भी पावन बना देती है ये प्रेम ।

और क्या ! पतितपावन कृष्ण हैं ………पर उस कृष्ण को भी पावन बनानें की शक्ति श्रीराधारानी में ही है ।

जैसे गंगा भी पापियों के पाप धोते गन्दी होजाये तो ?

हो ही जाती है ……..और वज्रनाभ ! ये प्रश्न गंगा नें किया भी था जब भागीरथ तप कर रहे थे …….और बारम्बार विनती कर रहे थे कि गंगा ! आप उतरो इस धरा धाम में ……तब गंगा नें इसका समाधान चाहा था भागीरथ से ………कि मैं आ तो जाऊँगी ………पर पृथ्वी में नाना प्रकार के पापी मेरे ऊपर नहायेंगे ………और अपना पाप छोड़ कर जायेंगें …..तब मेरा क्या होगा ? मैं तो पापों का ढ़ेर लिए धीरे धीरे सिकुड़ जाऊँगी ना !

इसके उत्तर में भागीरथ नें कहा था …..गंगा ! आप उतरो पृथ्वी में …..पापी नहायेंगें तो पाप छोड़ जायेंगें पर आपमें जब कोई प्रेमी महात्मा नहायेंगें तो वो तुम्हारे में छोड़े गए पापों को नंष्ट करते हुये …..अपनी भजन की ऊर्जा तुम्हे प्रदान करके चले जायेंगें ।

हे वज्रनाभ ! ईश्वर भी अपनी ईश्वरता से थक जाता होगा ना !

पतितों को पावन करते करते …….तब अपनें में से ही वो आल्हादिनी के माध्यम से ……अपनें को पावन बनाता है ।

ये बात फिर स्पष्टतः समझते चलो …..”कि आल्हादिनी कहो …या प्रेम कहो ….या राधा कहो ……ये सब ब्रह्म के ही तो रूप हैं…..या इस तरह से समझो कि …….ब्रह्म के ही हृदय का प्रेम आकार लेकर प्रकट होता है श्रीराधा के रूप में ………तब वह ब्रह्म भी पावन, आल्हादपूर्ण , और विश्राम को उपलब्ध होता है ।

नही नही ……बुद्धि न लगाओ …………ये मत सोचो …..कि मैं कृष्ण रूपी ब्रह्म को छोटा बता रहा हूँ …..और “राधा” को ही बड़ा बता रहा हूँ …….ये सब उसी ब्रह्म का ही विलास है …….आल्हाद है ……रास है लास्य है ।

दोनों एक ही हैं वज्रनाभ !…….इस बात को समझो ……………..

बस लीला है ………..ये सब लीला है ………….

अब तुम ये मत पूछना की लीला क्यों है ? लीला किस लिए है ?

इसका उत्तर मैं कई बार दे चुका हूँ ……लीला का कोई उद्देश्य नही होता ….बस “अपनें आनन्द को प्रकट करना” यही है लीला का उद्देश्य ।

श्रीराधा कुण्ड में बैठे हैं …….कुण्ड की शीतल और प्रेमपूर्ण हवा में प्रसन्न हैं दोनों ही “श्रीराधाचरित्र” के वक्ता और श्रोता ……….


हे वज्रनाभ ! मुझे पता है परम भागवत श्रीउद्धव जी आये थे और उन्होंने तुम्हे इस दिव्य श्रीराधा कुण्ड के बारे में बताया था ।

उद्धव जी बद्रीनाथ गए तो पर उनका वहाँ मन नही लगा……वापस यहीं आगये …..और इस श्रीराधा कुण्ड के निकट ही वो वास करते हैं ।

ये राधा कुण्ड दिव्य है ………..श्रीराधा रानी नें इसको प्रकट किया है ।

इतना कहकर महर्षि इस कुण्ड की कथा का गान करनें लगे …….कि कैसे इस श्रीराधा कुण्ड का प्राकट्य हुआ ।


वो भयानक राक्षस था………”अरिष्ट” उसका नाम था…….उसके जैसा शक्तिशाली कोई नही था…….वो अरिष्ट अपना रूप कैसा भी बना लेता था ।

एक बार मथुरा में आया कंस के पास …….हे वज्रनाभ ! कंस को राक्षसों से मित्रता रखनें की एक सनक थी ……..उसके बड़े से बड़े राक्षस मित्र थे…..”अरिष्ट” कंस का नाम सुनकर ही मथुरा में आया था ।

कंस नें खूब स्वागत किया उसका………और बातों ही बातों में “कृष्ण को मार दो …मैं उससे दुःखी हूँ “……..अपना दुखड़ा भी सुना दिया ।

मित्र ! कौन कृष्ण ? कहाँ रहता है ? उसका वर्णन करके सुनाओ ….मेरे रहते तुम दुःखी हो ?

“नन्दगाँव” ……कह दिया….”साँवरा रँग है” …..कृष्ण नाम है …और ग्वाला है …मोर मुकुट पहनाता है ……उस गांव के मुखिया का बेटा है ।

इतना काफी था उस असुर अरिष्ट के लिये ये परिचय ……..

पर तुम किस रूप में जाओगे वहाँ ? कंस नें पूछा ।

तुमनें कहा ना ….वो ग्वाला है ……….तो मुझे देखो !

बस इतना कहते ही ……वो अरिष्ट तो बृषभ बन गया ।

बैल ………..बहुत बड़ा और शक्तिशाली – बैल ……………

उसे देखते ही कंस भी एक बार के लिये तो डर गया ……..वो जब अपनें नथूनें से साँस फेंक रहा था ………तब ऐसा लगता था कि ……आँधी चल रही है ……..कंस उसे देख कर खुश हुआ ……

जाओ मित्र ! जाओ …….मेरे उस काल कृष्ण को मारकर ही आना ।

बस वो अरिष्ट बैल के रूप में भागा ……नन्द गाँव की ओर ।

क्रमशः ….
शेष चरित्र कल …

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 25 !!

कृष्ण को भी पावन किया श्रीराधा नें …
भाग 2

बस इतना कहते ही ……वो अरिष्ट तो बृषभ बन गया ।

बैल ………..बहुत बड़ा और शक्तिशाली – बैल ……………

उसे देखते ही कंस भी एक बार के लिये तो डर गया ……..वो जब अपनें नथूनें से साँस फेंक रहा था ………तब ऐसा लगता था कि ……आँधी चल रही है ……..कंस उसे देख कर खुश हुआ ……

जाओ मित्र ! जाओ …….मेरे उस काल कृष्ण को मारकर ही आना ।

बस वो अरिष्ट बैल के रूप में भागा ……नन्द गाँव की ओर ।


गौ चारण करके लौट रहे हैं श्याम सुन्दर……सन्ध्या की वेला है …..

कोई कृष्ण से ठिठोली कर रहा है ……..कोई हँसा रहा है ……….

आगये हैं कृष्ण अपनें महल में …..गायों को बांध दिया है गौशाळा में ।

मैया ! भूख लगी है ….कुछ दे ……थकना स्वाभाविक है ……सुबह के गए अब आये हैं ……..बालक ही तो हैं …………

मैया नें लाकर माखन ……मलाई …….और रोटी रख दी है …..

पर खानें के लिए अब पहले की तरह नही.. ……मैया की गोद में ही अपना सिर रखकर लेट गए कृष्ण……आँखें मूंद ली हैं ।

मेरा लाला ! कितना थक जाता है ना……….मैया पैर दवा रही हैं …….कृष्ण को अच्छा लग रहा है …………. .तभी –

कन्हैया !

  दूर से  एक आवाज आयी ..........पुकारनें वाले नें भयाक्रांत होकर पुकारा था   ।

कृष्ण नें सुनी ………और तुरन्त उठकर बैठ गए ।

लेट जा …….इन ग्वालों को भी चैन नही है …..जब देखो …..कन्हैया कन्हैया …..सुबह से शाम तक साथ में ही तो रहते हैं ये सब तेरे सखा !

तू लेट जा …………थक गया है ।

पर फिर आवाज आयी ..

………कन्हैया ! सांड आगया है हमारे नन्द गांव में ….।

जोर से मनसुख चिल्लाया था ……………..कृष्ण फुर्ती से उठे ….और भागे बाहर ………।

अरे ! रोटी तो खा ले ……………ये भी ना !

मैया परेशान हो उठीं थीं ……बाहर गयीं देखनें ……..तो …..

एक बड़ा भीषण विशाल देह का ……बैल ……….जिसनें नन्दगाँव के परिखा को तोड़ दिया था …………बड़े बड़े भवनों को अपनें सींग से ….उखाड़ फेंक रहा था ………..

गाय तो उसे देखते ही भाग रही थी ………बालकों को …..बूढों को …..जो सामनें आये ………उन्हें बस मार ही रहा था ।

कृष्ण से देखा नही गया…..वो उछलते हुए एक पेड़ पर चढ़ गए …….

और वहाँ से उस “अरिष्ट” को देखनें लगे ……………

अरिष्ट नें भी देख लिया था ……यही है …….यही है कृष्ण …….

वो दौड़ा ……….उसके दौड़नें से आँधी सी उड़नें लगी…..कोई देख नही पा रहा था कि अब क्या होगा ……कन्हैया ! बच ! सब चिल्लाये ।

उस अरिष्ट नें ये सोचा था कि ………..मैं पेड़ को ही उठाकर फेंक दूँगा ……तो कृष्ण मर जाएगा ………..

उसनें उसनें सींग से पेड़ को उखाड़ दिया …..और दूर फेंक दिया ……

पर ये क्या ! कृष्ण तो उसके ऊपर ही चढ़ गए थे …….पर कैसे ये वो असुर भी नही समझ पाया था ……….उसके दोनों सींगों को जोर से पकड़ लिया था ……………

अरिष्ट इतना तो समझ गया ……कि ये कोई साधारण नही है………

वो दौड़ा ………..पर कृष्ण नें उसकी सींगें छोड़ी नहीं ……….हाँ …….बस थोडी ही देर में ………..उस बैल के सीगों को उखाड़ कर …और धरती में गिरा दिया……और उसके ऊपर चढ़ गए कृष्ण …………

क्रमशः …
शेष चरित्र कल …

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 25 !!

कृष्ण को भी पावन किया श्रीराधा नें …
भाग 1

प्रेम से पवित्र और क्या है ? पापी से पापी को भी पावन बना दे प्रेम ।

अरे! अच्छे अच्छे पतितों को भी पावन बनानें की हिम्मत रखता है – प्रेम ।

फिर हँसे महर्षि शाण्डिल्य ……

“पतित पावन” को भी पावन बना देती है ये प्रेम ।

और क्या ! पतितपावन कृष्ण हैं ………पर उस कृष्ण को भी पावन बनानें की शक्ति श्रीराधारानी में ही है ।

जैसे गंगा भी पापियों के पाप धोते गन्दी होजाये तो ?

हो ही जाती है ……..और वज्रनाभ ! ये प्रश्न गंगा नें किया भी था जब भागीरथ तप कर रहे थे …….और बारम्बार विनती कर रहे थे कि गंगा ! आप उतरो इस धरा धाम में ……तब गंगा नें इसका समाधान चाहा था भागीरथ से ………कि मैं आ तो जाऊँगी ………पर पृथ्वी में नाना प्रकार के पापी मेरे ऊपर नहायेंगे ………और अपना पाप छोड़ कर जायेंगें …..तब मेरा क्या होगा ? मैं तो पापों का ढ़ेर लिए धीरे धीरे सिकुड़ जाऊँगी ना !

इसके उत्तर में भागीरथ नें कहा था …..गंगा ! आप उतरो पृथ्वी में …..पापी नहायेंगें तो पाप छोड़ जायेंगें पर आपमें जब कोई प्रेमी महात्मा नहायेंगें तो वो तुम्हारे में छोड़े गए पापों को नंष्ट करते हुये …..अपनी भजन की ऊर्जा तुम्हे प्रदान करके चले जायेंगें ।

हे वज्रनाभ ! ईश्वर भी अपनी ईश्वरता से थक जाता होगा ना !

पतितों को पावन करते करते …….तब अपनें में से ही वो आल्हादिनी के माध्यम से ……अपनें को पावन बनाता है ।

ये बात फिर स्पष्टतः समझते चलो …..”कि आल्हादिनी कहो …या प्रेम कहो ….या राधा कहो ……ये सब ब्रह्म के ही तो रूप हैं…..या इस तरह से समझो कि …….ब्रह्म के ही हृदय का प्रेम आकार लेकर प्रकट होता है श्रीराधा के रूप में ………तब वह ब्रह्म भी पावन, आल्हादपूर्ण , और विश्राम को उपलब्ध होता है ।

नही नही ……बुद्धि न लगाओ …………ये मत सोचो …..कि मैं कृष्ण रूपी ब्रह्म को छोटा बता रहा हूँ …..और “राधा” को ही बड़ा बता रहा हूँ …….ये सब उसी ब्रह्म का ही विलास है …….आल्हाद है ……रास है लास्य है ।

दोनों एक ही हैं वज्रनाभ !…….इस बात को समझो ……………..

बस लीला है ………..ये सब लीला है ………….

अब तुम ये मत पूछना की लीला क्यों है ? लीला किस लिए है ?

इसका उत्तर मैं कई बार दे चुका हूँ ……लीला का कोई उद्देश्य नही होता ….बस “अपनें आनन्द को प्रकट करना” यही है लीला का उद्देश्य ।

श्रीराधा कुण्ड में बैठे हैं …….कुण्ड की शीतल और प्रेमपूर्ण हवा में प्रसन्न हैं दोनों ही “श्रीराधाचरित्र” के वक्ता और श्रोता ……….


हे वज्रनाभ ! मुझे पता है परम भागवत श्रीउद्धव जी आये थे और उन्होंने तुम्हे इस दिव्य श्रीराधा कुण्ड के बारे में बताया था ।

उद्धव जी बद्रीनाथ गए तो पर उनका वहाँ मन नही लगा……वापस यहीं आगये …..और इस श्रीराधा कुण्ड के निकट ही वो वास करते हैं ।

ये राधा कुण्ड दिव्य है ………..श्रीराधा रानी नें इसको प्रकट किया है ।

इतना कहकर महर्षि इस कुण्ड की कथा का गान करनें लगे …….कि कैसे इस श्रीराधा कुण्ड का प्राकट्य हुआ ।


वो भयानक राक्षस था………”अरिष्ट” उसका नाम था…….उसके जैसा शक्तिशाली कोई नही था…….वो अरिष्ट अपना रूप कैसा भी बना लेता था ।

एक बार मथुरा में आया कंस के पास …….हे वज्रनाभ ! कंस को राक्षसों से मित्रता रखनें की एक सनक थी ……..उसके बड़े से बड़े राक्षस मित्र थे…..”अरिष्ट” कंस का नाम सुनकर ही मथुरा में आया था ।

कंस नें खूब स्वागत किया उसका………और बातों ही बातों में “कृष्ण को मार दो …मैं उससे दुःखी हूँ “……..अपना दुखड़ा भी सुना दिया ।

मित्र ! कौन कृष्ण ? कहाँ रहता है ? उसका वर्णन करके सुनाओ ….मेरे रहते तुम दुःखी हो ?

“नन्दगाँव” ……कह दिया….”साँवरा रँग है” …..कृष्ण नाम है …और ग्वाला है …मोर मुकुट पहनाता है ……उस गांव के मुखिया का बेटा है ।

इतना काफी था उस असुर अरिष्ट के लिये ये परिचय ……..

पर तुम किस रूप में जाओगे वहाँ ? कंस नें पूछा ।

तुमनें कहा ना ….वो ग्वाला है ……….तो मुझे देखो !

बस इतना कहते ही ……वो अरिष्ट तो बृषभ बन गया ।

बैल ………..बहुत बड़ा और शक्तिशाली – बैल ……………

उसे देखते ही कंस भी एक बार के लिये तो डर गया ……..वो जब अपनें नथूनें से साँस फेंक रहा था ………तब ऐसा लगता था कि ……आँधी चल रही है ……..कंस उसे देख कर खुश हुआ ……

जाओ मित्र ! जाओ …….मेरे उस काल कृष्ण को मारकर ही आना ।

बस वो अरिष्ट बैल के रूप में भागा ……नन्द गाँव की ओर ।

क्रमशः ….
शेष चरित्र कल …
[3/7, 7:15 PM] Niru Ashra: !! “श्रीराधाचरितामृतम्” 25 !!

कृष्ण को भी पावन किया श्रीराधा नें …
भाग 2

बस इतना कहते ही ……वो अरिष्ट तो बृषभ बन गया ।

बैल ………..बहुत बड़ा और शक्तिशाली – बैल ……………

उसे देखते ही कंस भी एक बार के लिये तो डर गया ……..वो जब अपनें नथूनें से साँस फेंक रहा था ………तब ऐसा लगता था कि ……आँधी चल रही है ……..कंस उसे देख कर खुश हुआ ……

जाओ मित्र ! जाओ …….मेरे उस काल कृष्ण को मारकर ही आना ।

बस वो अरिष्ट बैल के रूप में भागा ……नन्द गाँव की ओर ।


गौ चारण करके लौट रहे हैं श्याम सुन्दर……सन्ध्या की वेला है …..

कोई कृष्ण से ठिठोली कर रहा है ……..कोई हँसा रहा है ……….

आगये हैं कृष्ण अपनें महल में …..गायों को बांध दिया है गौशाळा में ।

मैया ! भूख लगी है ….कुछ दे ……थकना स्वाभाविक है ……सुबह के गए अब आये हैं ……..बालक ही तो हैं …………

मैया नें लाकर माखन ……मलाई …….और रोटी रख दी है …..

पर खानें के लिए अब पहले की तरह नही.. ……मैया की गोद में ही अपना सिर रखकर लेट गए कृष्ण……आँखें मूंद ली हैं ।

मेरा लाला ! कितना थक जाता है ना……….मैया पैर दवा रही हैं …….कृष्ण को अच्छा लग रहा है …………. .तभी –

कन्हैया !

  दूर से  एक आवाज आयी ..........पुकारनें वाले नें भयाक्रांत होकर पुकारा था   ।

कृष्ण नें सुनी ………और तुरन्त उठकर बैठ गए ।

लेट जा …….इन ग्वालों को भी चैन नही है …..जब देखो …..कन्हैया कन्हैया …..सुबह से शाम तक साथ में ही तो रहते हैं ये सब तेरे सखा !

तू लेट जा …………थक गया है ।

पर फिर आवाज आयी ..

………कन्हैया ! सांड आगया है हमारे नन्द गांव में ….।

जोर से मनसुख चिल्लाया था ……………..कृष्ण फुर्ती से उठे ….और भागे बाहर ………।

अरे ! रोटी तो खा ले ……………ये भी ना !

मैया परेशान हो उठीं थीं ……बाहर गयीं देखनें ……..तो …..

एक बड़ा भीषण विशाल देह का ……बैल ……….जिसनें नन्दगाँव के परिखा को तोड़ दिया था …………बड़े बड़े भवनों को अपनें सींग से ….उखाड़ फेंक रहा था ………..

गाय तो उसे देखते ही भाग रही थी ………बालकों को …..बूढों को …..जो सामनें आये ………उन्हें बस मार ही रहा था ।

कृष्ण से देखा नही गया…..वो उछलते हुए एक पेड़ पर चढ़ गए …….

और वहाँ से उस “अरिष्ट” को देखनें लगे ……………

अरिष्ट नें भी देख लिया था ……यही है …….यही है कृष्ण …….

वो दौड़ा ……….उसके दौड़नें से आँधी सी उड़नें लगी…..कोई देख नही पा रहा था कि अब क्या होगा ……कन्हैया ! बच ! सब चिल्लाये ।

उस अरिष्ट नें ये सोचा था कि ………..मैं पेड़ को ही उठाकर फेंक दूँगा ……तो कृष्ण मर जाएगा ………..

उसनें उसनें सींग से पेड़ को उखाड़ दिया …..और दूर फेंक दिया ……

पर ये क्या ! कृष्ण तो उसके ऊपर ही चढ़ गए थे …….पर कैसे ये वो असुर भी नही समझ पाया था ……….उसके दोनों सींगों को जोर से पकड़ लिया था ……………

अरिष्ट इतना तो समझ गया ……कि ये कोई साधारण नही है………

वो दौड़ा ………..पर कृष्ण नें उसकी सींगें छोड़ी नहीं ……….हाँ …….बस थोडी ही देर में ………..उस बैल के सीगों को उखाड़ कर …और धरती में गिरा दिया……और उसके ऊपर चढ़ गए कृष्ण …………

क्रमशः …
शेष चरित्र कल …

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Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877

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