!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 26 !!
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“कृष्ण श्रीराधा और अयान” – एक प्रेम कथा
भाग 1
प्रेमी के बराबर त्याग किसका ? प्रेमी के बराबर तप किसका ?
प्रेमी हर समय पंचाग्नि तापता है ……प्रेमी हर दिन काँटों में चलता है ।
प्रेमी की हर पल परीक्षा होती है ……..प्रेमी अपनें ही सिर को काटकर गेंद बनाकर उससे खेलता है …….।
प्रेमी के बराबर कौन सहता है ,
प्रेमी के बराबर पल पल कौन मरता और जीता है ।
फिर भी प्रेमी हँसता है …….ठहाके लगाकर हँसता है ………क्यों की ये सब वो अपनें लिये नही ……अपनें प्रियतम के लिए ही करता है ।
उसकी हर क्रिया का एक ही उद्देश्य तो है …….कि “मेरे प्रियतम तुम खुश रहो …….मेरा “मैं” तो मिथ्या है ………सत्य तो “तू” है प्यारे ” !
उफ़ ! ये प्रेम पन्थ अति ही कठिन !
हे वज्रनाभ ! श्रीराधा रानी जैसा त्याग किसका है ?
श्रीराधा नें अपनें आपको फूँक दिया है …………मिटा दिया है अपनें साँवरे में …………सब कुछ जलाकर ये उस प्रकाश में अपनें प्यारे को देखती है ……..और नाचती है ………………
सुनो ! एक श्रीराधा रानी के त्याग की कहानी ………..
महर्षि शाण्डिल्य सुनानें लगे थे उस कथा को ………….जो प्रेम के इतिहास की सबसे बड़ी घटना थी …………….
मधुमंगल , मनसुख, तोक, श्रीदामा, सुबल, ऐसे अनेक सखा थे कृष्ण के ……जो निरन्तर साथ ही रहते थे …………सबके साथ प्रेम था कृष्ण का ……सब कृष्ण को प्राणों से भी ज्यादा मानते थे ।
पर एक सखा और था …………हे वज्रनाभ ! उस सखा का नाम था “अयान गोप”……शान्त था ये सखा …………बस कृष्ण के चरणों को ही देखता रहता था ………जब जब अकेले में कृष्ण को पाता ……..उनके चरणों को अपनी गोद में रखकर चरण दवाता ………चरण चिन्हों को देखता ……..उसे उस समय रोमांच हो जाता था ……..आहा ! कृष्ण के ये चरण !………..उसकी समाधि लग जाती थी ।
ऊँगली से एक एक चरण चिन्ह को छूता….ये चक्र, ये शंख, ये कमल, ये वज्र…ये गदा…..ये त्रिकोण …….
अच्छे घर का था ये “अयान”………समृद्ध थे इसके माता पिता भी ।
पूरे बृज मण्डल में आदर था “अयान” के पिता का ।
पर ये कृष्ण को ही अपना सर्वस्व मानता था ………….
एक दिन ………..अकेले में कृष्ण के चरणों को दवाते हुए रो गया अयान ………….लेटे हुये थे कृष्ण कदम्ब वृक्ष के नीचे …………उठ गए ……..जब अयान के आँसू कृष्ण चरणों में गिरे तब ।
आँसू भले ही शीतल थे …………कोई दुःख या विषाद के आँसू नही थे …..आँसू थे तो अहोभाव के …….पर कृष्ण उठे ।
इतना भाव ! इतना प्रेम करते हो तुम मुझ से अयान !
बड़े प्रेम से कृष्ण नें अयान को पूछा ।
आज कुछ माँगनें का मन कर रहा है …..सखे !
अयान निःश्वार्थ प्रेमी था …….वो क्यों माँगनें लगा ……..पर आज ।
हाँ हाँ ……माँगो …….ये कृष्ण अपनें सखा को , जो माँगोगे आज देगा ।
वचन दे रहे हो !…….अब मन्द मुस्कुराया अयान ।
विश्वास नही है …………..कृष्ण नें गले से लगाते हुए कहा ।
विश्वास तो अपनें से भी ज्यादा है तुम पर ………….
तो माँगो ……..क्या माँगते हो………मैं वचन देता हूँ ……कृष्ण भी देंनें पर उतारू थे ।
चरणों में गिर गया…….अयान……और भावातिरेक में बोला …….
“जो आपको प्राणों से प्रिय हो ……..वो दे दो “
क्या ! स्तब्ध रह गए कृष्ण अयान के मुख से ये सुनकर ……..
कृष्ण के तन मन में .......चित्त और आत्मा में बस एक ही नाम छाया हुआ है......श्रीराधा ....... कृष्ण को प्राणों से प्रिय और कौन हुआ ......श्रीराधा के सिवाय ?
ये क्या माँग लिया अयान ! गम्भीर हो गए कृष्ण ।
देखो ! गम्भीर होनें से नही होगा ………..अपनें सखा को वचन दिया है तुमनें ……जो मांगूंगा दोगे ……..अब देना पड़ेगा ……..अयान भी जिद्द पकड़ कर बैठ गया ………..”मेरी प्राणों से प्रिय तो मेरी राधा है”
मन ही मन में बोलनें लगे थे कृष्ण ।
क्या ! मैं राधा को दे दूँ ? ……….टप् टप् आँसू बह चले कृष्ण के ।
पर वचन का क्या ? इस सखा को मैने वचन दे दिया ………और सखा से मैं झूठ कैसे कहूँ ………सत्य यही है कि मेरे प्राणों से भी प्रिय तो मेरी श्रीराधा रानी हैं ……..ओह !
क्रमशः ….
!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 26 !!
“कृष्ण श्रीराधा और अयान” – एक प्रेम कथा
भाग 2
कृष्ण के तन मन में .......चित्त और आत्मा में बस एक ही नाम छाया हुआ है......श्रीराधा ....... कृष्ण को प्राणों से प्रिय और कौन हुआ ......श्रीराधा के सिवाय ?
ये क्या माँग लिया अयान ! गम्भीर हो गए कृष्ण ।
देखो ! गम्भीर होनें से नही होगा ………..अपनें सखा को वचन दिया है तुमनें ……जो मांगूंगा दोगे ……..अब देना पड़ेगा ……..अयान भी जिद्द पकड़ कर बैठ गया ………..”मेरी प्राणों से प्रिय तो मेरी राधा है”
मन ही मन में बोलनें लगे थे कृष्ण ।
क्या ! मैं राधा को दे दूँ ? ……….टप् टप् आँसू बह चले कृष्ण के ।
पर वचन का क्या ? इस सखा को मैने वचन दे दिया ………और सखा से मैं झूठ कैसे कहूँ ………सत्य यही है कि मेरे प्राणों से भी प्रिय तो मेरी श्रीराधा रानी हैं ……..ओह !
अच्छा ! अच्छा ! मत दो मुझे ………मैं तो ऐसे ही कह रहा था ………आँसू पोंछ दिए अयान नें कृष्ण के ।
नित्य सायंकाल मिलनें आते थे नन्दगाँव और बरसाने की सीमा में ….एक कुण्ड था …….वहीँ बैठ जाते थे ये दोनों प्रेमी ……….और हँसते …बतियाते …..मिलते …………।
आज भी आये ………….कुण्ड में दोनों बैठे …….चरणों को कुण्ड के जल में डुबोकर बैठे ………….
पर आज कृष्ण गम्भीर हैं ……….कुछ बोल नही रहे ………
प्यारे ! क्या हुआ ? तुम बोलते क्यों नही हो ? कृष्ण के कपोलों को छूते हुये श्रीराधा रानी नें कहा ।
तुरन्त चरण पकड़ लिए कृष्ण नें श्रीराधा रानी के …………
ये क्या कर रहे हो ……….उठो ! श्रीराधा नें उठाना चाहा ।
नही …..आज ये कृष्ण तुमसे कुछ माँगना चाहता है…..मना मत करना ।
कृष्ण नें श्रीराधा रानी की ओर देखते हुए कहा ।
क्या ! बस इतनी बात ……..माँगों ! क्या चाहिए मेरे प्राणधन को ……श्रीराधा रानी नें ये कहते हुये फिर उठाना चाहा अपनें चरणों से ।
नही …….वचन दो …….पहले वचन दो ……..मेरी प्यारी राधे ! पहले वचन दो ………कृष्ण नें वचन माँगा ।
क्या कर रहे हो आज ये …….क्या लीला है ये तुम्हारी …….अरे ! प्राण माँग लो …..राधा हँसते हँसते दे देगी…..उफ़ न करेगी …..बोलो ।
नेत्रों से अश्रु प्रवाह चल पड़े ………बह चले आँसू कृष्ण के ।
पर रो क्यों रहे हो ………माँगों प्यारे ! क्या चाहिये ?
“अयान गोप से विवाह कर लो”
कृष्ण के मुँह से निकल गया ।
क्या ? शरीर में कम्पन शुरू हो गया श्रीराधा रानी के ।
हाँ ………..मैने वचन दिया है ……..हे राधे ! मैने वचन दे दिया है अयान को ………..कि ……हिलकियाँ फूट पडीं कृष्ण की ।
हँसी श्रीराधा ………मैं तुम्हारी हूँ ……सिर्फ तुम्हारी …..जिसे चाहे दे दो ………पर तुम रो क्यों रहे हो ………….कृष्ण चौंके ………श्रीराधा रानी के मुख मण्डल की ओर देखा ………….राधे !
हाँ ……मैं तुम्हारी हूँ …सिर्फ तुम्हारी ……….अधिकार है तुम्हारा मुझ पर ….पूर्ण अधिकार है प्यारे ! इस विवाह से अगर मेरा कृष्ण खुश होता है तो ये राधा हँसते हँसते मान जायेगी ………हाँ …….बस तुम खुश रहो …..तुम प्रसन्न रहो ……………..
ये कहते हुए राधा नें आँसू पोंछ दिए कृष्ण के …….”इन आँसुओं पर सिर्फ राधा का अधिकार है …..तुम्हारा नही ……तुम मुस्कुराओ बस “
इतना कहकर उठी राधा …………और चल दी बरसानें की ओर ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल ….

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