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October 30, 2025 8:20 am

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 26 !!-“कृष्ण श्रीराधा और अयान” – एक प्रेम कथा भाग 4 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 26 !!-“कृष्ण श्रीराधा और अयान” – एक प्रेम कथा भाग 4 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 26 !!

“कृष्ण श्रीराधा और अयान” – एक प्रेम कथा
भाग 4

इस विवाह कि तैयारी स्वयं श्रीकृष्ण नें खड़े होकर करवाई थी ……

बरातियों का स्वागत भी स्वयं कृष्ण ही कर रहे थे …………..

श्रीराधा आयीं थीं दुल्हन के रूप में …सज धज के ……..

बारबार अपना मुख प्रक्षालन करते रहे थे कृष्ण ……ताकि उनके आँसुओं को कोई देख न ले ……………

राधा को दुल्हन के रूप में देखकर हिलकियाँ बंध गयीं थी एक बार तो …कृष्ण कि ।

फेरे शुरू हुए ……….एक …दो …तीन ……….पर ये क्या …….चौथे फेरे में श्रीराधा रानी गिर ही गयीं , मूर्छित हो गयीं ……….उस समय भीड़ को हटाते हुए कृष्ण ही भागे और राधा को अपनी गोद में ले लिया था ।

सात फेरे पूरे नही हुए …………अब हो भी नही सकते थे …..क्यों कि राधा मूर्छित हो गयीं थीं ।


सुहाग कि सेज में राधा रानी मूर्छित पड़ी हैं ………अभी तक होश नही आया है श्रीराधा को …………..

अयान आया अपनें कक्ष में …………दीपक जला हुआ है …….उस दीपक के प्रकाश में श्रीराधा रानी का गौर वर्ण चमक रहा है ।

अयान आगे बढ़ा ……..लाल जोड़े में मूर्छित पड़ी हैं श्रीराधारानी ।

अयान नें देखा ………थोड़ी देर देखता ही रहा ………..फिर उसका ध्यान गया ……..श्री राधा के चरणों में ………….

पर वो चौंक गया ………पास गया ……चरणों के पास ।

चरण में चिन्ह बने हुए थे राधा रानी के …………

ओह ! ये चिन्ह तो मेरे कृष्ण के चरण में भी हैं ?

चक्र, शंख, गदा, पदम्, कमल, त्रिकोण …….ध्वजा …यव …….

ये सब बड़े ध्यान से देखता रहा अयान …………….

ओह ! तो इसका मतलब ? वो कुछ समझ नही पा रहा था ।

फिर उसे याद आया ……….मैने ही माँगा था “हे कृष्ण ! तुम्हे जो प्राणों से प्रिय हो ……वो मुझे दे दो” ।

तो ये मेरे कृष्ण की प्राण हैं ?…………..और अपनें प्राण मुझे कृष्ण नें दे दिए ………ओह ! सिर फटनें लगा अयान का ।

वो बैठ गया वहीं उसके नेत्रों से पश्चाताप के अश्रु बहनें लगे थे ………

तो इसका मतलब ? ये श्रीराधा और मेरा कृष्ण ….दोनों एक हैं ?

और ये चरण !……मेरे इष्ट के चरण और ये चरण एक ही तो हैं ।

पाप हो गया तुझसे अयान ! पाप ! ये तुम्हारी इष्ट हैं ………ये कृष्ण कि ही अनादि बल्लभा हैं …..ये कृष्ण प्रिया हैं ……….

चरणों में प्रणाम करके………उसी रात्रि को अयान नें घर छोड़ दिया …….क्यों कि उसे प्रवल वैराग्य चढ़ गया था ।

वो कहाँ गया ………पता नही …..खोजनें कि कोशिश कि ……पर अयान नही मिला ।


कृष्ण नें ही पञ्च बुलवाये ……..और बरसानें में पंचों के सामनें निर्णय हुआ की …..बृषभान अपनी पुत्री राधा को अपनें घर ले जाएँ ।

क्यों की अयान अब नही आएगा ।

और श्रीराधा रानी अपनें बरसानें में आगयीं थीं ।


मुझे क्षमा कर दो राधे ! मुझे क्षमा कर दो …………..

फिर उसी स्थान में ……नन्दगाँव और बरसानें के बीच में पड़नें वाले कुण्ड में आज दोनों मिले हैं …………

रो रहे हैं कृष्ण ………….मेरे कारण तुम्हे इतना कष्ट हुआ ना ?

नही ……..कुछ कष्ट नही हुआ …………..तुम्हारी ख़ुशी के लिए ….तुम्हारी प्रसन्नता के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ ……..

और रही बात विवाह कि ……..तो ऐसे विवाह का क्या महत्व …….मैं तुम्हारी ही हूँ ……….और तुम मेरे हो ………हँसी श्रीराधा रानी ।

हम दोनों एक ही हैं …….हमें कोई अलग नही कर सकता ….ये बात तुम भी जानते हो ……….है ना ? श्रीराधा रानी नें मुस्कुराते हुए पूछा ।

हाँ ….हाँ ……हाँ ……….कृष्ण नें रोते हुये श्रीराधा रानी को अपनें गले से लगा लिया था …………….इस जगत में तुम्हारे जैसा प्रेम किसका हो सकता है …..राधे ! बारबार कृष्ण यही कह रहे थे ।


हे वज्रनाभ ! इस दिव्य प्रेम लीला को तुम क्या कहोगे ?

ये है प्रेम ! पर सामान्य लोग नही समझ पायेंगें इसे ………..

प्रेम कि परिभाषा ही यही है ……..जो श्रीराधा रानी नें इस जगत को दी ……अपनें प्रियतम के सुख में सुखी रहना ……..।

जय जय श्रीराधे ! जय जय श्री राधे ! जय जय श्रीराधे !

शेष चरित्र कल ….

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