!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 27 !!
श्रीराधाकृष्ण के दिव्य विवाह की पूर्व भूमिका…
भाग 3
हे महर्षि !
हाथ जोड़कर मेरे सामनें बोलनें जा रहे थे कृष्ण ……..
“मेरी प्राण बल्लभा …….मेरी सर्वस्व ……जिसके बिना ये कृष्ण अधूरा है ……उन श्रीराधा रानी के साथ विवाह करना चाहता है ये कृष्ण “
ये शब्द नन्दनन्दन के मुख से मैने सुना !……….मेरे आनंद का कोई ठिकाना नही रहा……….वो बोले जा रहे थे ।
कृष्ण में कहाँ प्रेम है ………..जो भी प्रेम दिखाई देता है ……वो सब मेरी आल्हादिनी श्रीराधा रानी के द्वारा ही प्रदत्त है ……हे महर्षि !
वो प्रेम स्वरूपा श्रीराधा… कृपा करती हैं ………तब वही कृपा मुझ में प्रतिफलित होता है …………..मैं क्या हूँ ?
वे वरदायिनी , विनोदिनी मुझे उदारता से अपनाती हैं …….तभी तो वे चारु चरण मुझे मिल पाते हैं ……….नही तो मैं कठोर हृदय का ….और वे कहाँ कोमल हृदय, अत्यन्त कोमल हृदय की स्वामिनी ……..
मैं कहाँ पाप पुण्य के हिसाब द्वारा स्वर्ग नरक में जीवों को भेजनें वाला ……पर वे तो सहज कृपा करके ….पापियों को भी अपनी गोद में स्थान देंनें वाली …………क्यों की समस्त जीवों के ऊपर उनकी ममता बरसती ही रहती हैं ………..मैं तो कठोर हृदय का हूँ ……..
पर मुझ जैसे को भी अपनें हृदय से लगाकर मेरी कठोरता मिटा दी है उन्होंने …………मुझे प्रेम करना सिखाया उन्होंने …………कृष्ण तो कंगाल था महर्षि ! पर आज ये जो भी है वो सब श्रीराधा रानी के कारण ही है ……….नेत्र बरस रहे थे उस समय कृष्ण के ।
मुझे तनिक भी अवसर नही दिया था बोलनें का ……..और मुझे कुछ बोलना भी नही था ……….मेरे कानों में अमृत जा रहा था ………..उस अमृत में भी प्रेमामृत ……..मै तो धन्यातिधन्य हो रहा था ।
कुछ देर रुके कृष्ण ………..अपनें नेत्रों को पीताम्बरी से पोंछा …..फिर बोले ……..महर्षि ! आपकी कुटिया में आनें का कारण है …….
और कारण ये है कि ………मेरी प्राण बल्लभा तो नही चाहतीं कि विवाह जैसी कोई व्यवहारिक बात हमारे प्रेम में हो ।
” तुम निभा न पाओगे प्यारे “
बस, जब जब मैं उनको कहता हूँ …….तब बड़े प्रेम से श्रीराधा मेरे कपोलों को छूते हुए यही कहतीं हैं ………..
मैं फिर भी नही मानता ……तो कहती हैं ……..विवाह के लिये दो चाहिये …..पर यहाँ दूसरा कहाँ हैं ? वो फिर इधर उधर देखनें लग जाती हैं ……हम दोनों का विवाह राधे ! मैं जब फिर कहता हूँ ……तब कहती हैं ……..हम ‘दो” नही है……हम “एक” हैं …….ये तुम भी जानते हो…।
पर हे महर्षि ! मैने जब आज जिद्द की ……..तब मुझे अपनें हृदय से लगाते हुये उन्होंने कहा ……..तुम्हारी इच्छा है तो मेरी भी इच्छा है ….ये राधा कभी अपनें प्राणधन के इच्छा के विपरीत जा सकती है क्या ?
मैं तुम्हारे लिये ही हूँ ………तुम जिसमें प्रसन्न हो …….वही करो ………मुझे उसी में अच्छा लगेगा ।
अब मैं जो कह रहा हूँ …उसे सुनिये महर्षि ! ……..
मैने देखा श्याम सुन्दर के मुख कमल में ।
“हमारा विवाह आप करवाइये “
…क्यों की आप ही हैं हमारे कुल पुरोहित ।
मेरे नेत्र सजल हो गए थे वज्रनाभ !……….मुझे रोमांच होनें लगा था ….पर मैने अपनें आपको सम्भाला …………….
“हे श्याम सुन्दर ! ऐसा सौभाग्य मेरे ललाट में नही लिखा विधाता नें “
क्या मतलब ? कृष्ण नें मेरी ओर देखा ।
हाँ …..ये सौभाग्य मुझ से छीन लिया है…..
भाग्य लिखनें वाले ब्रह्मा जी नें ।
मैने कहा था उनसे ……हे विधाता !…..इन दोनों सनातन प्रेमी युगलों का विवाह मैं कराऊंगा …………पर वो मानें नही ……..बोले …..इस सौभाग्य को मैं कैसे छोड़ सकता हूँ महर्षि !
इसलिये आप दोनों का विवाह तो विधाता ब्रह्मा के द्वारा ही सम्पन्न होगा ।
मुस्कुराये ऊपर देखकर श्याम सुन्दर………..
तभी आकाश में प्रकट होगये थे ब्रह्मा जी……उन्होंने प्रणाम किया ……और वेदमन्त्रों द्वारा श्याम सुन्दर की स्तुति भी की ……..
मुझे प्रणाम करके ……श्याम सुन्दर अब जानें लगे थे ………
तब मैने भी वज्रनाभ ! उनके चरणों में एक निवेदन किया …….
“हे श्याम सुन्दर ! इस विवाह का दर्शन मुझे भी कराना”
उन्होंने मुस्कुरा कर …..हाँ …..कहा ……और चले गए ।
इतना ही बोल पाये महर्षि शाण्डिल्य……….फिर विवाह के उस दृश्य में …..जो उनके हृदय पटल पर अंकित थे उस में खो गए ……।
आहा !
“दुल्हन प्यारी राधिका दूल्हा श्याम सुजान”
शेष चरित्र कल …….

Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877








