!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 30 !!
अनादि दम्पति का ब्याह महोत्सव
भाग 3
पर इस रस में ब्रह्मा का ज्यादा विघ्न देना सखियों को अच्छा नही लगा ………ललिता सखी बोल पडीं ………….पण्डित जी ! मन्त्र पढ़ो तुम तो बस ……..इधर उधर करनें की सोचना भी मत ……..तुम्हे मन्त्र पढ़ा रहे हैं ……….यही बहुत है ….कन्या दान किसे करना है ……..क्या करना है ………इस सब के लिये हम हैं !
ब्रह्मा जी नें सखियों को हाथ जोडा और चुप हो गए ।
जिस के संकल्प से सम्पूर्ण सृष्टि बन जाती है …….वो ब्रह्मा स्वयं ब्याह करानें के लिये बैठ गए हैं ………..
पर रँग देवि सुदेवी सखियों नें आकर “श्रीजी” का हाथ पकड़ा ….और बोलीं आप चलिये ! पहले आपको देवी की पूजा करनी है ।
ये क्या कह रही हो ………इनसे बड़ी देवी और कौन हैं ?
ब्रह्मा जी नें बीच में बोलनें की कोशिश की ………पर सखियों नें उन्हें चुप कर दिया …….आप न बोलो ज्यादा ।
पर मैं वैदिक रीती का पक्षधर हूँ !
ब्रह्मा जी नें श्याम सुन्दर से कहा ।
धरो अपनें पास अपनी वैदिक रीती !
……हम तो “प्रेम रीती” को भी महत्व देंगी ।
इतना कहकर “श्रीजी” का हाथ पकड़ , बड़े प्रेम से सखियों नें उठाया ।
दूर कुञ्ज में ले गयीं ……….वहाँ एक देवी का विग्रह था …….
दुल्हन को पहले देवि पूजनी ही चाहिये …………….
पर ये कौन सी देवि हैं ?
ललिता सखी नें कहा…..ये “नेह की देवि” हैं ….यानि ये प्रेम की देवि ।
“श्री जी” नें उन प्रेम की देवि को …..बड़े प्रेम से पूजा …………बिधि पूरी की …….फिर धीरे धीरे श्रीजी को लेकर आईँ उसी ब्याह मण्डप में ।
रतन चौकी में दोनों विराजें हैं …….पाग पहनें हुए हैं श्याम सुन्दर …..मोर पंख उस पाग में शोभा पा रहा है ……….चन्द्रिका श्रीजी के माथे में सुशोभित है ……….काजल सखियाँ लगा देती हैं …….ताकि किसी की नजर न लगे इस दोनों दूल्हा दुल्हन को …………..
ये दोनों इतनें सुन्दर लग रहे हैं ……कि इनकी शोभा देखकर ब्रह्मा भी वेद विधि और वेद मन्त्रों को भूल जाते हैं ……तब सखियाँ ही ब्रह्मा को वेद मन्त्र याद दिलाती हैं……या स्वयं पढ़नें लग जाती हैं ।
अग्नि देव स्वयं प्रकट हो गए हैं वेदी में ………………
“आहा ! देखो ! सखी ये दोनों कितनें सुन्दर लग रहे हैं …………सच में कहूँ तो इनको देखना ही इन नयनों की धन्यता है ………..सखियां दूल्हा दुल्हन को देख देख कर ……….मुग्ध हो जाती हैं ।
“गठ जोर” करो…..ब्रह्मा जी के कहनें से पहले ही सखियाँ तैयार थीं ।
“गठ जोर” किया ललिता सखी नें ………..फिर लाल जू की ओर देखकर सजल नयन बोलीं …….”हमारी लाली को कभी छोड़ना नही”
भाँवरि पड़नें लगी …..मन्त्र पढ़ रहे हैं …..ब्रह्मा जी ………गीत गा रही हैं सखियाँ ………….
देखो ! देखो ! भाँवरि लेते हुए दोनों कितनें दिव्य लग रहे हैं……..सखियों ! इस छबि को अपनें हिय में बसाओ ……..यही हमारे जीवन धन हैं …..यही हमारे सर्वश्व हैं ।
पर एक सखी से रहा नही गया ……..वो चँवर ले उठी …….और भाँवरि देते हुए “लाडिली लाल”” के पीछे पीछे चँवर ढुराते हुए चलनें लगी ।
इस छबि को ब्रह्मा देखते हैं तो बिधि भूल जाते हैं ……….इक टक बस इन दोनों को देखते ही रह जाते हैं …….सखियों को ही कहना पड़ता है ……”अब ये करो विधाता …..अब वो करो” !
ललिता सखी आगे आयीं………….अब कन्यादान !
“मैं करूंगी कन्यादान”
पर चरण प्रक्षालन का अधिकार मुझे भी मिलना चाहिये ……….ब्रह्मा मचल कर बोले थे ललिता सखी से ।
श्याम सुन्दर के हाथ काँप रहे हैं ……..काँप तो लाली के भी रहे हैं ।
ललिता सखी नें अपनी लाली का हाथ लाल जू श्यामसुन्दर के हाथों में जब दिया……ललिता सखी रो गयी ….”.हमारी लाली बहुत भोरी हैं ……इनका ध्यान रखना लाल ! “
सिन्दुर दान के समय तो …….श्याम सुन्दर की दशा देखनें जैसी थी…..सखियों नें सम्भाला था उन्हें ………वो बार बार अपनी देह दशा भूल रहे थे ………..सखियाँ तो सब सिद्धा हैं ……….कोई साधारण तो हैं नहीं ………वो सब अपनें आपको सम्भाले हुए हैं ……सेवा में ही इनका ध्यान रहता है ……….सेवा में मिलनें वाले “आनन्द” को भी ये ठुकराते हुए चलती हैं ……..यही तो विशेषता है इन सखियों की ……..तभी तो ये “श्रीजी” की सहचरी हैं ।
हे वज्रनाभ ! उद्धव ! परीक्षित ! एक गम्भीर बात जो इस ब्याह में घटित हुआ वो सुनो ……….महर्षि बोले ।
ब्रह्मा जी मूर्छित हो गए ………जब वो चरण धोनें लगे थे ………..उस समय वो पुरोहित के रूप में नही थे …………..और जैसे ही चरण धोनें लगे ……….तभी आनन्द की अतिरेकता के कारण वे मूर्छित हो गए ।
तब ललिता सखी नें एक रहस्य की बात ब्रह्मा के कान में कही थी …….
हे ब्रह्मा जी ! ये नेह की वीथी है …..ये प्रेम का मार्ग है ……इसमें अपनें आपको सम्भालना पड़ता है …….तनिक चूक से सब कुछ बिगड़नें का डर रहता है ………..हे ब्रह्मा जी ! आप अपना सुख देख रहे हैं ……आपको चरण धोते हुए आनन्द आरहा है …..तो आप उसी आनन्द में डूब रहे हैं ……..पर जानते हो …….इस प्रेम मार्ग में “स्वयं के आनन्द में डूबना” ये भी उचित नही माना जाता ………..क्यों की ये भी स्वार्थ है ….हमनें अपनें आनन्द को महत्व दिया ……पर हमें अपनें आनन्द को नही, अपनें प्रिया प्रियतम के आनन्द को महत्व देना है ।
ओह ! ऐसी प्रेम रहस्य की बात जब ब्रह्मा जी नें सुनी ……तो उनकी बुद्धि चकरा गयी……..वो उठे ……उन्होंने युगल सरकार के चरणों में प्रणाम किया ……..फिर सखियों को भी हाथ जोड़ा .।
मुझे इस रस महोत्सव में सम्मिलित करनें के लिये आप सब सखियों का बहुत बहुत धन्यवाद ……….हे युगलवर ! इस रस को पानें का मैं कहाँ अधिकारी ? ……..मैं बुद्धिजीवी …..पर ये रस बुद्धि से परे है …..इसके द्वार तो हृदय से ही खुलते हैं ………….
दक्षिणा माँगो ! पण्डित जी !
सखियों नें हँसते हुए कहा ।
क्या ब्याह सम्पन्न हो गया …..?
ब्रह्मा जी नें सखियों से पूछा ।
ब्याह अभी कैसे सम्पन्न होगा ?
पर आपकी वैदिक विधि सम्पन्न होगयी ।
हमारी “नेह विधि” तो चलती रहेगी ।
ब्रह्मा जी नें अपनें चारों मस्तक धरती में रखकर प्रणाम किया ।
” आप दोनों के चरणों में अविचल भक्ति हो ” यही मेरी दक्षिणा है ।
मुस्कुरा कर श्रीराधा माधव नें ब्रह्मा जी को देखा ……..और दिया ।
ब्रह्मा जी तो चले गए
….पर सखियों की “नेह विधि” अब शुरू हो गयी थी ।
“तैसिये रूप माधुरी अंग अंग, तैसिये दुहुँन के नैंन विशाल”
चारों ओर आनन्द छा रहा था ………..आनन्द की धारा में बह रहे थे सब ………..महर्षि , वज्रनाभ , परीक्षित और उद्धव जी ।
“तैसिये चतुर सखी चहुँ ओरैं, गावत राग सुहाग रसाल
राधा दुल्हन दूल्हा लाल”
शेष चरित्र कल …..

 
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