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November 21, 2024 9:34 pm

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 33 !!-“विपरीत रति” – प्रेम साधना की एक विधाभाग 2 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 33 !!-“विपरीत रति” – प्रेम साधना की एक विधाभाग 2 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 33 !!

“विपरीत रति” – प्रेम साधना की एक विधा
भाग 2

भगवान शिव के हृदय में विराजती हैं……..समस्त कामनाओं की पूर्ति करनें वाली …….और समस्त तन्त्र मन्त्र की अधिष्ठात्री हैं …….देवों की भी पूज्या …..देवों की भी इष्ट ……..और समस्त साधनाओं की देवी हैं ये त्रिपुर सुन्दरी ………..महर्षि शाण्डिल्य नें समझाया ।

हे वज्रनाभ ! समझो बात को ……..यही त्रिपुर सुन्दरी ही ललिताम्बा के नाम से प्रसिद्ध हैं……..इनके अनेक नाम हैं……..समस्त देवि देवताओं की ये सदा वन्दनीया भी हैं ।

इतना ही नही …………..मन्त्र विज्ञान और शाक्त दर्शनों में तो ये भी आया है कि ..ब्रह्मा विष्णु और रूद्र की भी वरदायिनी हैं ये त्रिपुरा भगवती …….या इनको ललिताम्बा भी कहा गया ।

हे वज्रनाभ ! यही त्रिपुर सुन्दरी भगवती ही यहाँ श्रीराधा और श्याम सुन्दर की प्रसिद्ध सखी बनकर इनकी सेवा में नित्य रहती हैं ……..

ये श्रीराधा जी की समस्त सखियों में मुख्य सखी हैं ………….तो विचार करो हे वज्रनाभ ! त्रिपुरा सुन्दरी जिनकी सेवा में निरन्तर लगी रहती हैं ….और उत्साह से अति उमंग प्रेमपूर्ण होकर …….तो उन अल्हादिनी श्रीराधा रानी की महिमा का गान कौन कर सकता है ।

इतना ही बोले …………….फिर मौन हो गए महर्षि ।

गुरुदेव ! अपराध हो गया मुझ से ………….मुझे उन ललिता सखी की बातों को ही सुनना चाहिये था ……जिस रस का वर्णन वो करनें जा रही थीं ……….उस रस को मैं फिर से सुनना चाहता हूँ ……….कृपा करें ।

महर्षि समझते हैं …………..फिर आगे वज्रनाभ की और प्रसन्नता पूर्वक देखते हुये उस प्रेम रस की चर्चा करनें लगे –


सखी ! मैने रात्रि में अचम्भा देखा …..जब सुहाग के सेज पर प्रिया प्रियतम बिराजे थे ……………..

तब ऐसा लग रहा था ………..जैसे अँधेरी रात में चन्द्रमा पूर्णता से उग गया हो …………ऐसा लग रहा था …….जैसे गौर वदन पर नीला रँग छा गया हो ……..जैसे घनें बादलों में बिजली चमकती हो …….।

ओह ! इतना कहकर ललिता सखी मौन हो गयीं आगे कुछ उनसे बोला नही गया………बोला ही नही जा रहा था ।

पर सखियाँ भी ढीढ थीं ………..उन्हें सुनना था ……..प्रिया प्रियतम के “सुरत संग्राम” को सुनकर उन्हें उस प्रेम के रस को पीना था ।

ललिता सखी को सखियों नें बड़े परिश्रम से बाहर की ओर खींचा ……

“युगलवर उठ गए” ये जैसे ही कहा …………..ललिता सखी तुरन्त उठीं …………क्या उठ गए ?

तब सखियों नें ताली बजाते हुये कहा ……..नही उठे ……पर अब हमें बताओ उस “सुरत सुख” के बारे में …….अब हम तुम्हे छोड़ेंगीं नही ।

उफ़ ! क्या बताऊँ ?

फिर बतानें लगीं कुछ देर बाद ललिता सखी ।

सुहाग के सेज पर श्रीराधा रानी नें श्याम सुन्दर को देखा …….श्याम सुन्दर श्रीराधा रानी को देखते हैं …………..

सखी ! कुछ देर तक देखते हुये तो ये दोनों ही भूल गए कि कौन राधा है और कृष्ण ? ………….

पर पता उस समय चला …………जब दोनों आलिंगन बद्ध हो गए थे …..दोनों एक दूसरे के बाहु पाश में बंध गए थे …………

पर तनिक ध्यान उन श्यामसुन्दर के गले में पड़े मणियों की माला पर गया ……उन मणियों में श्रीराधा रानी को अपना रूप दिखाई दिया ….!

ओह ! मेरे प्यारे के वक्ष में ये सौत कौन हैं ?

बस रूठ गयीं श्रीराधा रानी ………………

ओह ! सारी सखियाँ उदास हो गयीं ……..ऐसे समय में मान करना ?

फिर ? फिर क्या हुआ ?

फिर क्या होना था ……..श्रीराधा दूसरे कुञ्ज में चली गयीं …….

इधर श्याम सुन्दर विरह सागर में डूब गए ……………

राधा ! राधा ! राधा ! राधा !

  उनके रोम रोम से  बस यही नाम निकल रहा था   ।

क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –

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