उद्धव गोपी संवाद
(भ्रमर गीत)
७ एवं ८
वे तुम तें नहिं दूरि,ज्ञान की आंखिन देखौ।
अखिल विश्व भरपूर,रूप सब उनहि विसेखौ।।
लौह,दारू,पाषाण में,जल थल मही आकाश।
सचर अचर बरतत सबैं,जोति -बृह्म-परकास।।
भावार्थ:-
अब उद्धव जी गोपियों को ज्ञान की शिक्षा देते हुए कह रहे हैं कि गोपियों वे अर्थात भगवान तुमसे दूर नहीं हैं, उन्हें ज्ञान की आंखों से देखो, उनका रूप पूरे विश्व में भरपूर समाया है। वे लोहा,पत्थर,जल थल और आकाश में समाये हैं और सचराचर एवं अचराचर सभी में उनकी ज्योति और बृह्म में प्रकाश समाया हुआ है।
८
कोन बृह्म को जोति,ग्यान कासों कहे ऊधौ?
हमरे सुंदर स्याम प्रेम को मारग सूधौ।।
नेंन,बेंन स्त्रुति नासिका,मोहन रूप लखाइ।
सुधि-बुधि-सब मुरली हरी, प्रेम ठगोरी लाइ।।
सखा सुन स्याम के।
भावार्थ:
गोपियां ऊधौ से कह रही हैं कि कौन बृह्म, किसकी ज्योति,ज्ञान किसे कहे हैं ऊधौ? केवल हमारे श्याम ही सुन्दर हैं और हमारा प्रेम का मार्ग ही सीधा मार्ग है। उनके नैंन उनके बैंन अर्थात उनकी वाणी, उनकी नाक यह सब मोहन रूप में हम देखती हैं। उनकी मुरली ने समारी सभी सुध बुध हर ली है और प्रेम में हम ठगी ली हैं।
(भावार्थ जैसा प्रभु कृपा से प्रेरणा हुई मैंने लिखा, कोई त्रुटी रह गई हो तो भगवदीय वैष्णव जन मुझे क्षमा करेंगे और मेरी त्रुटी को अवगत भी करायेंगे।
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एक बार राधिका जी खेलते खेलते नन्दगाँव आ गई। मैया जसोदा ने अत्यधिक लाड़ दुलार कर उन्हें अपने महल में अति प्रेम से ठहराया। जब रात्रि हुई तो मैया राधिका श्याम दोनों को लेकर सोने चली। मैया दोनों अबोध बालकों नन्हें श्याम और नन्हीं राधिका को अपने ही साथ अपनी शैया पर सुलाने लगी।
“राधिका माधव एक ही सेज पे
मैया लै सोई सुभाय सलोने।
कान्ह को बीच पौढ़ाय दियो,
पर राधा कहे ये बात न होने”
राधिका जी तुरंत उठ कर बैठ गईं। मैया ने कहा-“अरी लाली कहा बात है गयी जो तू उठ के बैठ गयी”
तो अबोध बालिका श्री राधे बोली-“सांवरी होउंगी सांवरे के संग”
(साँवरे कन्हैया के पास सोने से मैं भी साँवरी हो जाँऊगीं।)
मैया मुस्करा उठी-“अरी बाबरी बात बताई है कोने”
(अरी बाबरी तुझे ये बात किसने बतायी है)
और मैया हँसती हुई बोली-
“सुन…
सोने को रंग कसौटी लगे, पै कसौटी को रंग लगे नहीं सोने”
(सुन,सोना पीला होता तो वो तेरा रंग है और कसौटी स्याम बरन की है। तेरा रंग तो कन्हैया को लग लग जाएगा पर कन्हैया का रंग तुझपे नहीं लगेगा)
Author: admin
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