!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 33 !!
“विपरीत रति” – प्रेम साधना की एक विधा
भाग 3
पर तनिक ध्यान उन श्यामसुन्दर के गले में पड़े मणियों की माला पर गया ……उन मणियों में श्रीराधा रानी को अपना रूप दिखाई दिया ….!
ओह ! मेरे प्यारे के वक्ष में ये सौत कौन हैं ?
बस रूठ गयीं श्रीराधा रानी ………………
ओह ! सारी सखियाँ उदास हो गयीं ……..ऐसे समय में मान करना ?
फिर ? फिर क्या हुआ ?
फिर क्या होना था ……..श्रीराधा दूसरे कुञ्ज में चली गयीं …….
इधर श्याम सुन्दर विरह सागर में डूब गए ……………
राधा ! राधा ! राधा ! राधा !
उनके रोम रोम से बस यही नाम निकल रहा था ।
मुझ से रहा नही गया ….मैं गयीं श्याम सुन्दर की वह दशा देखकर ।
तब श्याम सुन्दर मेरे सामनें हाथ जोडनें लगे ……
ललिते ! तुम मेरी प्राण प्यारी की सखी हो ………मेरा एक काम कर दो ………ललिते ! तुम्हारी स्वामिनी मुझे छोड़ कर चली गयीं हैं …..उनके बिना मैं कुछ नही हूँ ………देखो ! ना ….इस सेज के फूलों को…… ये भी कुम्हला गए हैं …..जाओ ना ! उन्हें बुलाकर लाओ यहाँ ।
सखियों ! श्याम सुन्दर की दशा देखकर मुझसे रहा नही गया …..मैं गयी उस कुञ्ज में ….जहाँ श्रीराधा रानी बैठी थीं ………
पर इनकी भी दशा विचित्र हो रही थी ।
ललिते ! मेरी सखी !
देख ! मुझ से अपराध हो गया ……मैं क्या करूँ अब ?
ललिते ! मैं भी कैसी ईर्ष्यालु स्वभाव की हो गयी थी……मणि के माल में मणियों में , मैं ही दीख रही थी ……पर सौत समझ कर मैनें उन प्राण प्यारे को कितना भला बुरा कहा ………अब मैं क्या करूँ …बता ना अब मैं क्या करूँ ?
सुन ! रो रही हैं श्रीराधा रानी ………………
ललिते ! ले आ उन्हें इस कुञ्ज में ……जा ना !
सखियों !
मैं प्रिया की बातें मानकर फिर इधर आई श्याम सुन्दर को लेनें ……..
पर ये क्या !
श्याम सुन्दर तो “राधा राधा राधा” करते हुए….राधा ही बन गए थे ।
श्रीराधा रानी का चिन्तन करते हुए ………..उन गौर वर्णी श्रीराधा का चिन्तन करते हुए ..श्याम रँग इनका मिट गया था …….गौर हो गए थे ।
और हे श्याम ! हे मेरे प्राण ! हे मेरे प्रियतम कृष्ण !
यही बोलनें लग गए थे ।
मैं इस स्थिति को देखकर स्तब्ध थी ………ये बदल गए थे !
मैं दौड़ी श्रीराधा रानी के पास ……तो सखियों ! उस कुञ्ज की स्थिति तो और विचित्र हो गयी थी ………..
हे राधे ! हे राधा ! हे श्यामा ! हे मेरी प्राणाधार !
श्रीराधा रानी श्याम सुन्दर बन गयीं थीं …………….विरह में इतनी तप गयीं थीं ………कि कृष्ण कृष्ण कहते हुए श्रीराधा रानी कृष्ण ही बन गयीं थीं ……गौर वर्ण विरह में धुल गया था …श्याम रँग में रँग गयी थीं श्रीराधा रानी ।
फिर आपनें क्या किया ललिता सखी जू ?
सखियों नें पूछा ।
मैने श्रीराधा रानी से कहा ………..आप चलिये ! आपकी राधा आपको बुला रही हैं ……चलिये श्याम सुन्दर !
कहाँ है मेरी राधा ! ये कहते हुए वो दौड़ीं जहाँ श्याम सुन्दर थे ।
उधर से श्याम सुन्दर नें जब सुना ……….वो उधर से दौड़े ……..
हे कृष्ण ! हे प्यारे ! हे मेरे श्याम ! ये कहते हुए ।
दोनों उसी सेज में जाकर मिले …………
गौरवर्णी श्रीराधा रानी श्याम सुन्दर के वक्ष पर थीं
…..मेरी प्यारी ! मेरी प्राण ! मेरी स्वामिनी ! बस यही कहती जा रही थीं श्याम सुन्दर को ।
श्याम सुन्दर कह रहे थे …….मेरे प्यारे ! मेरे नाथ ! मेरे प्राणाधार …..
दोनों के अधर मिल गए …………….दोनों के वक्ष मिले ……..दोनों की साँसें मिल गयीं ……….दोनों के देह मिले ……अब तो भार लगनें लगा …….ये कंचुकी भी ….उतार दिया ………आभूषण भी …उतार दिया ……….अरे ! इतना ही नही …..ये देह भी भार लगनें लगा ……….कि मैं राधा और मैं कृष्ण ……ये “मैं” भी क्यों ?
धड़कनें एक हो गयीं ……..दोनों में अब कोई भेद नही रहा ……..एक ही हो गए दोनों ………..सखियों ! मैं देख रही थी …………मैं स्वयं समझ नही पा रही थी कि कौन कृष्ण है और कौन राधा …….!
ललिता सखी से आगे कुछ बोला नही गया ……….
इस समाधि में सब डूब गए थे ।
“चलो ! प्रिया प्रियतम उठ गए हैं “
रँग देवि सखी कुञ्ज से आयी ….और जोर से बोली ।
बस इतना सुनते ही सब सखियाँ भागी कुञ्ज की ओर ………
और जब उठे दोनों युगलवर …..आहा ! उनकी अलसाई आँखें …..उनका नीलाम्बर और इनका पीताम्बर दोनों ही बदल गए थे ।
इनकी माला इनके गले में थी और इनकी माला उनके गले में …….
एक दूसरे की माला एक दूसरे में उलझी हुयी थीं ।
हँसती हुयी सखियाँ कुञ्ज में प्रवेश करती हैं
……और बड़े प्रेम से आरती उतारती हैं…….।
आरती के समय की ये झाँकी बड़ी अद्भुत है …….जिसे शब्दों में कह पाना बड़ा कठिन है …….इसका तो ध्यान करो वज्रनाभ !
इतना कहकर मुस्कुराये महर्षि ।
कनक वेल श्रीराधिका , मोहन श्याम तमाल ,
दोनों मिल एक ही भये, श्रीराधबल्लभ लाल ।।
शेष चरित्र कल –
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