उद्धव गोपी संवाद
(भ्रमर गीत)
११ एवं १२
जाहि कहौ तुम कान्ह!ताहि कोऊ पिता न माता।
अखिल -अंड-ब्रम्हंड सकल, उन्हीं सो जाता।।
लीला कौ अवतार लै,धरि आए तन स्याम।
जोग जुगति ही पाइऐ, परब्रह्म पुर धाम।।
सुनों ब्रजनागरी।।
भावार्थ:-
उद्धव जी गोपियों को समझाते हुए कह रहे हैं कि जिनें तुम कान्ह कहते हो न,उनके कोई माता पिता नहीं हैं,वे तो अखिल ब्रह्माण्ड के सृजन हार हैं अर्थात उन्ही से सकल विश्व चलता है।
वे तो स्याम रूप धारण करके लीला अवतरित करने आए हैं।
उनको प्राप्त करने के लिए जोग की जुगत करके पर ब्रह्म का धाम पा सकती हो।
ताहि बताऔ जोग,जोग ऊधौ जहां पावौ।
प्रेम -सहित हम पास,नंद -नंदन गुन गावौ।।
नेंन,बेंन,तन,प्रान में,मोहन गुन रह्यौ पूरि।
प्रेम -पियूषै छांडि कै,कोन समेटे धूरि।।
सखा सुन स्याम के।
भावार्थ:-
गोपियां, उद्धव जी से कह रही हैं कि, उद्धव जोग उनको बताओ जहां जोगी मिलें। हम तो नंद नंदन के पास रहकर प्रेम सहित उनके गुणो का गान करती हैं। इन नैनों में,वाणी में,तन में, और प्राणों में,उन मोहन के हि गुणगान का वास है। इसलिए ऊधौ जी, प्रेम रस को छोड़ के धूर को अपने पास क्यों समेटे।
( भावार्थ,जैसा मेरी समझ में आया,प्रभु कृपा से वैसा ही किया
कोई त्रुटी रह गई हो तो भगवदीय वैष्णव जन मुझे क्षमा करेंगे 🙏)
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