उद्धव गोपी संवाद:-
( भ्रमर गीत)
१५ एवं १६
करम हिं निंदौ कहा?करम सों सदगति होई।
करम रूप ते बली नाहिं, त्रिभुवन में कोई।।
करम ही ते उत्पत्ति है,करम हि तें सब नास।
करम करें तें मुक्ति होई, परब्रह्म पुर वास।।
उद्धव जी गोपियों से कह रहे हैं कि करम की क्यों निंदा करते हो,करम से सद्गति होती है। पूरे त्रिभुवन में करम से अधिक बली कोई नहीं है। संसार में करम ते ही उत्पत्ति होती है और करम से ही नास होता है।करम करने से ही मुक्ति होती है और परब्रह्म पुर में वास मिलता है।
करम पाप औ पुन्य,लोह -सोने की बेरी।
पांइन बंधन दोऊ,कोऊ मानों बौहतेरी।।
ऊंच करम तें सरग है,नींच करम तें भोग।
प्रेम बिनां सब पचि मरें,विषै वासना रोग।।
अब गोपियां उद्धव जी को प्रतिउत्तर देते हुए कह रही हैं कि करम जो हैं वे लोहे और सोने की बेड़ी जैसे हैं। बेड़ी सोने की हो अथवा लोहे की बांधा पैरौं में ही जाता है। करम अच्छे हैं तो स्वर्ग और करम खराब है तो नरक। इसीलिए प्रेम के बिना सब पचि मरते हैं,वो चाहें विषय,वासना और भोग हों
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