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November 22, 2024 2:33 am

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 35 !!-शरद की वह प्रथम पूर्णिमा भाग 1 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 35 !!-शरद की वह प्रथम पूर्णिमा भाग 1 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 35 !!

शरद की वह प्रथम पूर्णिमा
भाग 1

शरद ऋतु था उस समय जब कामदेव गोलोक से वृन्दावन आया ….

वह प्रसन्न हुआ …..

……..चलो ! मेरे युद्ध के लिये “शरद” मेरा सहायक ही होगा ।

नाना जाति के फूलों से वृन्दावन महक रहा था ……कामदेव नें चारों ओर दृष्टि घुमाकर देखी …..मल्लिका गुलाब जूही ये सब चारों ओर खिले हुए हैं………और जिनकी आवश्यकता थी …….उनको और खिला दिया क़मदेव नें ……..शीतल वयार चल रही है ……..ऐसी वयार जो काम वासना से दूर भी हो ….उसके मन में भी कामोद्दीपन हो उठे ।

मुझ “मदन” को वो “कृष्ण” पराजित करेगा……फिर हँसता है – काम ।

हाँ हाँ …..समझ गया मैं …….कृष्ण नारायण का ही एक रूप है …….पर उससे क्या ! नारायण के ही इस रूप को कामदेव पराजित करेगा ।

“बस तापसी का भेष न हो ……तापसी की चर्या न हो उसकी “

मेरा पुष्पों का बाण ही काफी होगा उस कृष्ण के लिये तो ….

कामदेव खुश हो रहा है ।

तभी ….संध्या की वेला हुयी…….और ये सन्ध्या कुछ ख़ास थी ।

शरद की पहली पूर्णिमा थी ये ।

मैं चारों ओर फैल गया था वृन्दावन में …..फूलों में था मैं ……यमुना में बह रहा था मैं ………हवा में था मैं …….चन्दा की चाँदनी में था मैं ।

“हा हा हा हा हा……मैं भी सर्वव्यापी हूँ……नारायण से कम नही हूँ “

अहंकार बढ़ते बढ़ते कितना बढ़ गया था आज इस कामदेव का ।

तभी – सूर्यास्त हो चुका था ……..दिशाएँ अरुण हो गयी थीं ……ऐसी अरुण जैसे कुंकुम की तरह …….अनुराग ही मानों वृन्दावन के आकाश में उड़ चला हो…….

मैने देखा ……..एक किशोर …एकाकी किशोर ……..वह अपनें नन्दगाँव के महल से निकला …….और वृन्दावन के सघन कुञ्ज में पहुँच गया था …..कामदेव देखते ही समझ गया कि कृष्ण यही है ।

ओह ! ये ? ये तो बहुत सुन्दर है………मेरी तरह सुन्दर है ये ।

वह देखनें लगा……कृष्ण को…….कितना कोमल है …..इसका अंग अंग सौन्दर्य से भींगा हुआ है ….नही ये तो मेरे से भी सुन्दर है …..इतनी सुन्दरता , इतनी सुषमा , इतनी शोभा तो मुझमें कभी नही थी ……

विचित्रता ये है इस किशोर की ……कि इसे जितना देखो …..और सुन्दर होता जाता है …..और और ….कामदेव चकित हो रहा है ।

घुँघराली अलकें …….उन सघन अलकों पर ……….मोर पिच्छ …मस्तक पर गोरोचन का तिलक ………उफ़ ! इसकी मुस्कान ।

क्रमशः ….
शेष चरित्र कल ……

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