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July 7, 2025 1:16 pm

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श्री जगन्नाथ मंदिर सेवा संस्थान दुनेठा दमण ने जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा दुनेठा मंदिर से गुंडीचा मंदिर अमर कॉम्प्लेक्स तक किया था यात्रा 27 जुन को शुरु हुई थी, 5 जुलाई तक गुंडीचा मंदिर मे पुजा अर्चना तथा भजन कीर्तन होते रहे यात्रा की शुरुआत से लेकर सभी भक्तजनों ने सहयोग दिया था संस्थान के मुख्या श्रीमति अंजलि नंदा के मार्गदर्शन से सम्पन्न हुआ

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 40 !!-गहरो प्रेम समुद्र को भाग 3 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 40 !!-गहरो प्रेम समुद्र को भाग 3 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 40 !!

गहरो प्रेम समुद्र को
भाग 3

हाँ राधे ! विरह प्रेम को पुष्ट करता है ………मिलन प्रेम को घटा सकता है ……….पर विरह प्रेम को बढ़ाता है …….इसलिये मैं अंतर्ध्यान हुआ हूँ ………फिर गम्भीर हो गए थे कृष्ण ……..राधे ! गोपियों जैसा प्रेम इन जगत में किसी का नही है ….न था ….न है ….न होगा ………..ऐसे निःस्वार्थ प्रेम से अपरिचित है ये जगत ………..मैं इन गोपियों के प्रेम को जगत में प्रकाशित करना चाहता हूँ ……….जगत के स्वार्थ से भरे लोगों को इस प्रेम का दर्शन कराना चाहता हूँ …….

कृष्ण बोल रहे थे …………..श्रीराधा बस सुन रही थीं ।

ओह ! तुम्हारी लटें उलझ गईं हैं ……..सुलझा दूँ प्यारी !

मन्द मुस्कान के साथ बोले थे श्याम सुन्दर ।

मैं तुम्हारी ही हूँ प्यारे ! आज्ञा किससे ले रहे हो ?

बेणी मैं बहुत सुन्दर गुंथता हूँ ……………ये कहते हुए …………श्रीराधा रानी के पीछे चले गए थे श्याम ।

लताओं को झुकाया………..उनमें से फूल तोड़े ……………

तुम्हारी कसम राधे ! मैं बेणी अच्छी गुंथता हूँ ।

सफेद फूल, लाल फूल, पीले फूल …………बेणी बनाते हुए उनमें लगा रहे हैं ……………डर लगता है राधे ! तुम्हारी बेणी देखकर ।

क्यों ? ऐसा क्या है जो तुम्हे डर लगता है ?

दूर से देखो तो लगता है ………कोई विष धर साँप है ………….

मेरी चोटी तुम्हे साँप लग रही हैं ……………रूठना हक़ है प्रेमिन का ।

रूठ गयीं श्रीराधा रानी ।

अब रूठो मत ………….थक गयी हो ……..मैं पांव दवा देता हूँ ………

मैं अपनी पीताम्बरी से हवा कर देता हूँ ……………..

हवा करते हैं पीताम्बरी से श्रीराधा रानी को ………..

कभी पांव दवा रहे हैं ……………….।

मुझ से अब चला नही जायेगा………श्रीराधा रानी नें कह दिया ।

अच्छा ! तो कोई बात नही ……..हम ही आपको अपनी गोद में ले लेते हैं …….ऐसा कहकर जैसे ही गोद में लेनें लगे ।


यहाँ से एक ही चरण चिन्ह हैं ……..दूसरा नही है !

आगे आगे एक सखी चली थी……उसनें आगे जाकर देख लिया था ।

सब सखियाँ ध्यान से उठ गयीं ………और चरण चिन्हों को देखती हुये आगे बढ़ रही थीं ……….यहाँ उचक कर लता से फूल तोड़े हैं श्याम सुन्दर नें ….तभी तो चिन्ह देखो !

और यहाँ ? ललिता सखी बैठ ही गयीं फिर ………चरण चिन्हों को देखनें लगीं ध्यान से ।

हूँ ………..चरण चिन्ह तो एक ही हैं ……….पर ध्यान से देखो ………ये एक चरण चिन्ह …..जो हमारे श्याम सुन्दर के हैं ……….वो धरती में थोड़े धँसे हुए हैं …….ध्यान से देखो !

ललिता सखी के कहनें पर सब ध्यान से देखनें लगीं थीं ।

मुझे लगता है …..यहाँ श्री राधा रानी से चला नही जा रहा होगा ….इसलिये उन्होंने गोद में उठा लिया होगा ……

इसलिये एक चरण चिन्ह हैं …………..वो भी धँसे हैं ।

पर ये क्या ! किसी के सुबुकनें कि आवाज आरही थी ।

अरे ! ये तो हमारी बृषभान नन्दिनी कि आवाज है ………..

क्रन्दन ……..कितना आर्त था वो स्वर …….ओह !

सखियाँ सुन रही हैं ………..यमुना के किनारे से वो आवाज आरही थी ।

“तुम कहाँ गए प्यारे ! आओ ! तुम्हारी राधा तुम्हारे वियोग में अपनें प्राण त्याग देगी ……….मैं तो तुम्हारे गोद में बैठनें के लिये इसलिये तैयार हो गयी थी की “तुम चाहो जहाँ ले जाओ”…….तुम्हे बार बार मुझ से पूछना पड़ता था ना ………इसलिये मैं तुम्हारी गोद में बैठनें के लिये ……..पर इसे भी तुमनें क्या राधा का अहंकार समझ लिया !

हे श्याम सुन्दर ! हे मोहन ! हे गोविन्द ! हे नाथ !

अब ये राधा तुम्हारे बिना मर जायेगी …….फिर तुम फूट फूट कर रोओगे ?

मत रोना प्यारे ! मत रोना ।

ओह ! हृदय के सहस्त्र टुकड़े हो जायेंगें ऐसा लग रहा था …….ये श्रीराधा का करुण विलाप था ही ऐसा ।

हे नाथ ! हे सखे ! हे महाभुज ! हे मुरली मनोहर !

प्यारे ! और हिलकियाँ ………..फिर जैसे सब कुछ शून्य में लय ।

सखियाँ दौड़ीं ………हे स्वामिनी ! हे राधे ! हे हरिप्रिया !

राधे ! उठो ! उठो हे राधा ! हे श्री जी ! उठो ………….ललिता आदि सखियों नें उठाना चाहा ………पर नही, श्रीराधा उठीं नहीं ।

वो तपे हुए स्वर्ण की तरह जिनकी अंग छटा है …………….वो मृग नयनी श्रीराधा आज धरती में मूर्छित पड़ी हैं ।

वो नील वसना …….वो सर्वेश्वरी ……….आज म्लानकान्ति मुर्छिता पड़ी हैं यमुना किनारे ।

ललिता सखी नें रोते हुए श्रीराधा रानी को अंक में उठाया ……..राधे ! मेरी स्वामिनी ! अपनें नेत्र खोलो आप ! आप इस तरह से हमें छोड़ कर नही जा सकतीं ………अगर आप नें हम सब को छोड़ दिया तो हम भी अभी अपनें प्राणों को यमुना में कूद कर त्याग देंगीं ।

वे आयेंगें ! आयेंगें ! राधे ! नेत्र खोलो ! वे आयेंगें !

सभी सखियाँ बोलनें लगीं ……हाँ वे श्याम सुन्दर अवश्य आयेंगें ।

पूरा वृन्दावन बोलनें लगा था …..स्वामिनी ! वे आयेंगें !

पक्षी , पशु, वृक्ष सब कह रहे थे वे श्याम आयेंगें ।

हे वज्रनाभ ! बहुत अटपटो पन्थ है……ये प्रेम पन्थ ।

ये कहते हुए अपनें आँसुओं को पोंछा था महर्षि शाण्डिल्य नें ।

शेष चरित्र कल ………

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