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July 7, 2025 6:42 am

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श्री जगन्नाथ मंदिर सेवा संस्थान दुनेठा दमण ने जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा दुनेठा मंदिर से गुंडीचा मंदिर अमर कॉम्प्लेक्स तक किया था यात्रा 27 जुन को शुरु हुई थी, 5 जुलाई तक गुंडीचा मंदिर मे पुजा अर्चना तथा भजन कीर्तन होते रहे यात्रा की शुरुआत से लेकर सभी भक्तजनों ने सहयोग दिया था संस्थान के मुख्या श्रीमति अंजलि नंदा के मार्गदर्शन से सम्पन्न हुआ

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 41 !! – गोपीगीत” – एक दिव्य प्रेमगीतभाग 1 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 41 !! – गोपीगीत” – एक दिव्य प्रेमगीतभाग 1 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 41 !!

“गोपीगीत” – एक दिव्य प्रेमगीत
भाग 1

क्या श्याम सुन्दर आगये ?

एकाएक उठ गयीं थीं श्रीराधा रानी ।

नही आये, वे निष्ठुर कन्हाई नही आये…..सखियों नें दवे स्वर से कहा ।

ओह ! अभागिन हैं हम कि हमारे प्राण भी नही निकलते !

कराहते हुये श्रीराधा रानी बोली थीं ।

हे वज्रनाभ ! श्रीराधा रानी नें सब गोपियों को कहा ……..अब आगे न चलो ……यहीं बैठ जाती हैं हम सब ।

पर क्यों ? सखियों नें पूछा ।

क्यों की सखियों ! वे जिद्दी हैं …..हम उन्हें खोजनें जा रही हैं तो वे हमसे आगे आगे और आगे बढ़ते ही जा रहे हैं ……..उफ़ ! कितनें काँटे गढ़ रहे होंगें उनके चरणों में ……वैसे ही उनके चरण कितनें कोमल हैं ।

इसलिये अब उन्हें और न भगाओ …….हम सब यहीं बैठ जाती हैं ……..आना होगा वे आजायेंगें……इतना कहकर चुप हो गयी श्रीराधा रानी ……..श्रीराधा रानी की बातें सबको अच्छी लगी थी…..तो सब वहीँ बैठ गयीं……..और श्रीकृष्ण का चिन्तन सहज करनें लगीं…….कृष्ण का चिन्तन होते ही ……..फिर वियोग नें जकड़ लिया इन गोपियों को ……..रुदन फिर शुरू हो गया ………..

वीणा के झंकार की तरह बोली थी इन गोपियों की…..उसी बोली में जब हृदय के उदगार प्रकट हुए ……तब वही गीत बन गए…….हे वज्रनाभ ! इसे “गोपी गीत” कहते हैं …..ये गीत बड़ा प्रसिद्ध है…..बड़े प्रेम से …..भावपूर्ण होकर गोपियों नें इसका गान करना शुरू कर दिया था।

हे प्यारे ! कह तो रही हैं हम कि – “तेरी हैं” !

हाँ गलती हो गयी, माफ़ करो….कि कह दिया – “तुम हमारे हो” !

नही…..”लहरों का समुद्र नही होता…समुद्र का लहर है”…..वैसे अनपढ़ हैं हम….नही जानती इन भाषा के भेदों को…..तुम हमारे कैसे ? हाँ …..”हम सब तुम्हारी हैं”…..अब तो खुश ! आजाओ ना अब !

मर जातीं हम तो ……..पर तुम्हे बिना देखे ये प्राण भी जानें को मान नही रहे …….उफ़ ! हम क्या करें ?

दासी हैं तुम्हारी …….वो भी बिना मोल की प्यारे !

इसीलिये हमें मार रहे हो ? अबला नारी को ……….वो भी इस भयावह वन में लाकर ……….अर्ध रात्रि के समय …………..हमारे प्राण ले रहे हो ? क्यों ?

क्या कहा ? हमनें कहाँ प्राण लिए तुम्हारे …..झूठी गोपी ।

नही ….झूठे तुम हो ……….वध कर रहे हो हमारा तुम ……..फिर पूछते हो ……कैसी हो ? वाह जी !

नही …….मात्र शस्त्र से मारना ही वध नही कहलाता……..तुमनें अपनी तिरछी निगाह से हमें मारा है ……..हमें देखो ! अभी भी कैसे तड़फ़ रही हैं ……घायल कर दिया हमें …..बोलो ? हम क्या करें अब ?

हम “अपनें आपसे” प्रेम करती हैं …………तुम्हे कोई दिक्कत ?

क्रमशः ….
शेष चरित्र कल….

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