!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 41 !!
“गोपीगीत” – एक दिव्य प्रेमगीत
भाग 2
क्या कहा ? हमनें कहाँ प्राण लिए तुम्हारे …..झूठी गोपी ।
नही ….झूठे तुम हो ……….वध कर रहे हो हमारा तुम ……..फिर पूछते हो ……कैसी हो ? वाह जी !
नही …….मात्र शस्त्र से मारना ही वध नही कहलाता……..तुमनें अपनी तिरछी निगाह से हमें मारा है ……..हमें देखो ! अभी भी कैसे तड़फ़ रही हैं ……घायल कर दिया हमें …..बोलो ? हम क्या करें अब ?
हम “अपनें आपसे” प्रेम करती हैं …………तुम्हे कोई दिक्कत ?
और हाँ एक बात और कहे देती हैं तुमसे ……..हम ही क्यों इस दुनिया में हर जीव अपनें आप से ही प्रेम करता है ………. सब जीव अपनी “आत्मा” से ही प्रेम करते हैं ! झूठ बोलते हैं वो लोग जो कहते हैं हम पति से , पत्नी से , परिवार से , अपनें बच्चों से , अपनें घर से प्रेम करते हैं ……..नही, कोई नही करता किसी से प्रेम इस जगत में……हर जीव अपनी आत्मा से ही प्रेम करता है ……….आत्मा की अनुकूलता के कारण ही प्रेम करता है……..क्या ये बात सच्ची नही है ?
अच्छा ! अब तुम बताओ – तुम कौन हो ?
हम ही बता देती हैं – तुम कौन हो !
तुम यशोदा के पुत्र नही हो ……तुम नन्द के सुत भी नही हो …….तुम यदुवीर भी नही हो ……..तुम, तुम सबके भीतर विराजमान तत्व आत्मा हो ……और हम अपनी आत्मा से ही प्रेम कर रही हैं ……जो सब करते हैं…….हम को पता है …….लोग बेहोशी में करते हैं ।
तप रही हैं हम……जल रही हैं हम विरहाग्नि में……हमें बचा लो ।
हे प्राण ! रख दो अपनें अधर इन प्यासे अधरों पर …………..
उफ़ ! वे अधरामृत…….उन्हीं से हमारी तपन बुझेगी ।
इन चरणों को हमारे वक्ष में रख दो …….जल रहा है हमारा हृदय ।
क्यों ? क्यों भाव खा रहे हो यार !
क्या हमारे वक्ष उन कालिय नाग के फनों से भी विष बुझे हैं …….अब बुझा दो ना इस अगन को …..हे हरि !
बन्द करो ! नही सुननी उस कृष्ण की कथा ……..नही सुननी हमें ।
क्या है उसकी कथा में …………..कपट ही कपट ……..जैसे वो छलिया छल करता है हमारे साथ ……ऐसे ही उसकी कथा भी हमारे साथ छल करती है …………देखो ! ये दशा किसके कारण हुयी है ……..उस कपटी कृष्ण की कथा सुननें के कारण ……….छोड़ो जी ! उस कपटी की बातें ………छोडो ।
क्रम …
शेष चरित्र कल….


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