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November 21, 2024 1:14 pm

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!! परम वियोगिनी – श्रीविष्णुप्रिया !! -एकोनचत्वारिंशत् अध्याय : Niru Ashra

!! परम वियोगिनी – श्रीविष्णुप्रिया !! -एकोनचत्वारिंशत् अध्याय : Niru Ashra

!! परम वियोगिनी – श्रीविष्णुप्रिया !!

( एकोनचत्वारिंशत् अध्याय : )

गतांक से आगे –

हे स्वामी ! आप कहाँ हैं ? इतनी रात्रि में भी आप मुझ से लुका छुपी खेल रहे हैं …..अब आइये ना सामने मैं थक गयी हूँ खोजते खोजते …कहाँ हैं आप । अंधकार भी है ना …दीया मैं जला नही सकती …क्यों कि माँ उठ जायेगी ….फिर आपका ये रासरंग का भेद भी खुल जाएगा ।

उठ गयी थी विष्णुप्रिया …..पर पर्यंक में जब अपने स्वामी को नही देखा तो वो धीमें स्वर में पुकारने लगी …..पर्यंक के नीचे भी उसने देखा ……कहीं छुपे तो नही है ऐसा विचार कर उसने शयन कक्ष के कोने कोने में भी खोजा …..प्रकाश नही था अन्धकार था …इसलिए उसे खोजना पड़ रहा था ….देखिये पीछे से मत आजाना ….मुझे डर लगता है ….पर विष्णुप्रिया को कक्ष में नही मिले निमाई …..अब प्रिया भयभीत होने लगी ….वो अज्ञात भय से काँप गयी …..कहीं ? …..वो बाहर आई ….बाहर आँगन में शचिदेवि सो रही हैं …..गहरी नींद है उनकी ….प्रिया ने घर के द्वार को देखा …. .जो खुला हुआ था ….उसको और डर लगा ….वो बाहर तक आई …..अंधकार है बाहर । वो फिर भीतर गयी ….अब तो उठाना ही पड़ेगा माता को ….उसने शचिदेवि के पाँव पकड़ कर जैसे ही हिलाया ….शचिदेवि उठ गयीं ….क्या हुआ ? मेरा निमाई तो ठीक है ना ? वो घबराई हुयी हैं । माँ ! देखो ना ….वे कहाँ गये ….द्वार भी खुला है ….वो कहीं दिखाई भी नही दे रहे । बस …प्रिया के मुख से ये सुनना था कि पछाड़ खा कर शचि देवि धरती पर गिर पड़ीं ……बेटी ! उसने अपनी निष्ठुरता दिखा दी …वो हम सब को छोड़कर चला गया । विष्णुप्रिया स्तब्ध हो गयी …जड़वत् ….क्या मुझे त्याग दिया मेरे स्वामी ने ! वो शून्यता में चली गयी …..ये गजरा …काजल …ये सिन्दूर ….फिर क्यों सजाया रात्रि में मुझे ……विष्णुप्रिया के सामने वो रात्रि के प्रेम प्रसंग क्रम बद्ध आरहे थे । शचिदेवि – निमाई ! हा निमाई ! तू भी निठुर ही निकला ….ये कहती जा रही हैं ।

माँ ! माँ !

एकाएक विष्णुप्रिया उठी ….माँ ! वो रात्रि में कभी कभी गंगा घाट में भी जाते थे ना ! चलो , चलो माँ ! मेरा हृदय कह रहा है वो गंगा घाट में ही होंगे …हाँ …माँ , चलो । विष्णुप्रिया ने शचि देवि को उठाया …..और जैसे ही बाहर खोजने के लिए जाने लगी ….रुको मैं लालटेन ले आती हूँ ….विष्णुप्रिया लालटेन जला कर ले आती । अन्धकार में दोनों गंगा घाट निकले हैं …..कोई नही है मार्ग में ।

माँ , आप उनका नाम लेकर पुकारो ना ….शायद आपकी आवाज सुनकर वो उत्तर दें ।

शचि देवि – निमाई ! निमाई ! निमाई …आजा बेटा , आजा ….ऐसे रात्रि में घर से बाहर नही जाते …..शचि देवि पुकार रही हैं ….शचि देवि आवाज लगा रही हैं । गंगा घाट पर पहुँचे हैं …वहाँ कोई नही है …..जन शून्य है अभी …बस गंगा बह रही हैं । विष्णुप्रिया इधर उधर भागती है ….उसके पीछे शचि देवि भी भाग रही हैं …..उस वृक्ष के नीचे शायद बैठे होंगे …..प्रिया वृक्षों को देखती है …वृक्षों के ऊपर देखती है । गंगा के उस पार तक देखती है …..पर नही हैं निमाई ।

माँ ! वो अपने मौसा चन्द्रशेखर जी के यहाँ गये होंगे ….चलो ना , उनके यहाँ जाते हैं …..चन्द्रशेखर आचार्य …..उनके घर में गयी विष्णुप्रिया अपनी सासु माँ के साथ । शचि देवि की बहन ने द्वार खोला था ….क्या निमाई आया है यहाँ ? नही ….एक मास से वो नही आया ….ओह ! ये सुनते ही विष्णुप्रिया के हृदय में वज्राघात हो गया …वो अपने को सम्भाल नही पाई …जैसे तैसे अपनी सासु माँ का हाथ पकड़ कर अपने घर में आई …और घर में आते ही धड़ाम से धरती पर गिर पड़ी ।

कान्चना ने आवाज सुन ली थी …..वो भागी घर से ….और जब प्रिया को देखा तो वो भी काँप गयी ….केश बिखरे हैं …धरती पर वो कोमलांगी पड़ी हुई है ….पुष्पों की माला जो इसके स्वामी ने इसे पहनाई थी वो बिखर गयी है …अश्रु बहते जा रहे थे ….उससे धरती भींग रही हैं …..

प्रिया ! मेरी सखी ! कान्चना दौड़कर सम्भालती है विष्णुप्रिया को ….पर प्रिया को होश कहाँ है ।

क्यों चले गये मेरे स्वामी ! कहाँ गये ? क्यों गये ? मुझ से क्या अपराध बन गया …अरे कोई तो मुझे बताओ …मुझ से क्या भूल हो गयी …..मैं तो अबोध थी …पर वो तो बोध सम्पन्न थे …मुझे समझाते …मुझे कहते विष्णु प्रिया ! तू ये मत कर …मैं नही करती ….।

हिलकियों से रोते हुए कान्चना सम्भालती है प्रिया को ….पर प्रिया की स्थिति इस समय उन्मादिनी की बनी हुई है ……

अरुणोदय होने वाला है …आकाश में पक्षियों की चहक शुरू हो गयी है ……

मत उगना सूर्य देव ! मत उगना …आज का दिन नवद्वीप वासियों के लिए अच्छा नही है ….मेरे लिए तो काल रात्रि ही है ….चाहे तुम उगो या न उगो । हे पक्षी , मत गाओ गीत ….रोओ मेरे साथ …मेरे स्वामी मुझे त्याग कर चले गये …..हाय ! इस विष्णुप्रिया से अभागी और कौन होगी इस जगत में ….जो अपने स्वामी का प्रेम न पा सकी ….अभागी है तू प्रिया !

ये कहते हुए धरती में मस्तक को पटक रही है …….

क्या मेरे स्वामी आगये ? एकाएक उठ गयी उसी उन्माद की अवस्था में …..और बाहर भागी ।

बाहर आँगन में लोगों की भीड़ है …..निमाई के भक्त जन आये हैं ….और जब उनको ये जानकारी मिलती है कि निमाई ने गृह त्याग दिया ….और फिर श्रीमति प्रिया की ये स्थिति देखते हैं तो उनकी भी हिलकियाँ बंध जाती हैं ।

मेरे स्वामी कहाँ हैं ?

विष्णुप्रिया के केश खुले हैं …..लाल बिन्दी माथे में है …वो भी बिगड़ गयी है ….मुख सूख रहा है …..साड़ी में धूल लगी है ……वो आती है और खड़े लोगों से पूछती है …..

मेरे स्वामी कहाँ हैं ? कब आयेंगे ? बताओ ना ! कब तक आयेंगे ?

ये दशा प्रिया की देख कठोर से कठोर हृदय भी रो रहा था …….

तभी ….नित्यानंद आये ….ये निताई हैं …..इनको देखते ही शचि देवि ने कहा ….तू तो खोज कर ला ….निताई ! देख तेरा निमाई कहाँ गया ? तू उसे समझा कर ला ना ।

नित्यानंद को देखते ही प्रिया ने कहा ….अरे ! तुम तो मेरे स्वामी के मित्र हो …तो हम लोगों की प्रार्थना सुन लो ……उनको ले आओ यहाँ । विष्णुप्रिया रो रही है …सन्यासी के साथ स्त्री नही रह सकती ….किन्तु माँ स्त्री नही होती …माँ तो माँ है …स्त्री त्याज्य है सन्यासी के लिए किन्तु माँ नही ….मैं यहाँ से चली जाऊँगी …गंगा किनारे बैठ जाऊँगी …या गंगा में कूद जाऊँगी …पर उनको कहना …इस बूढ़ी माता को तो न छोड़ें …ये बेचारी कैसे रहेंगी …..उनको ले आओ …उनको समझा कर ले आओ …मेरा नाम लें …तो कह देना वो घर से निकल जायेगी ….फिर तो आपके संकीर्तन में कोई बाधक नही होगा ना …..आप जाओ , निताई भैया ! मेरी ये प्रार्थना सुन लो ।

श्रीमति प्रिया की ये स्थिति देखकर नित्यानंद भी बालकों के समान हिलकियों से रो पड़े थे ।

ओह ! शचि देवि ने आचार्य चन्द्रशेखर और नित्यानंद को खोजने के लिए भेज दिया …निमाई को खोजने के लिए ये लोग कुछ और भक्तों को लेकर चले गये थे ।

शेष कल –

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