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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 45 !!
“श्रीराधा की को करे होड़” – एक प्रसंग
मोम के घोड़े में बैठकर आग का दरिया पार करना – प्रेम है ।
परवाह अपनी जब छूटनें लगे , प्रियतम हमारे केंद्र में जम जाए – प्रेम है ।
अकेलापन अच्छा लगे, भीड़ भाड़ से अरुचि होजाये – प्रेम है ।
अपना सिर काटकर, गेंद बनाकर खेलनें की हिम्मत हो – प्रेम है ।
कभी मुस्कुराना, कभी रोना आजाये – प्रेम है ।
सहनशक्ति बढ़ जाए, गाली और तारीफ़ का महत्व खत्म हो जाए – प्रेम है !
न चाहनें के बाद भी उसकी यादें बनी रहें – प्रेम है ।
उसके लिये जगत से लड़नें की भी शक्ति आजाये – प्रेम है ।
जगत क्या कहता है, ये बात महत्वहीन लगनें लगें – प्रेम है ।
हे वज्रनाभ ! ये प्रेम है….हाँ यही प्रेम है….और इसी दिव्य प्रेम का सन्देश देनें के लिये ही श्रीराधा रानी का प्राकट्य हुआ, इस धरा में ।
महर्षि शाण्डिल्य बोले – बरसानें में एक बुढ़िया थी …….बड़ी घमण्डी थी ……….बरसानें की महिलाएं इसे मानती थीं ………क्यों की सबसे बूढी बड़ी थी ……..”जटिला” नाम था इसका ……….इसकी बहु थी नाम तो कुछ और ही था बहू का …..पर अपनें घर जब ये बहू लाई तब नाम बदल दिया …..नाम रखा बहू का “सावित्री” ………पौराणिक महान सती सावित्री के नाम से बहू का नाम रखा ।
ईर्ष्यालु थी ये बुढ़िया “जटिला”………अहंकार तो चरम पर था ।
अहंकार था इस बुढ़िया को अपनें परम सती होनें का ………..मैं इस सम्पूर्ण बृज मण्डल की सबसे सन्मान्य सती हूँ …..पतिव्रता हूँ …….और मेरी ये बहु सावित्री भी………ये भी इधर उधर परपुरुष को देखती नही फिरती ………ये बात जहाँ भी छिड़ जाती ये बुढ़िया जटिला तो आक्रामक हो उठती थी ।
अरे ! जाओ ! राधा की तरह हम थोड़े ही हैं ……….शरद की रात्रि वृन्दावन में रात भर कृष्ण के साथ नाचती रही है ……..हम सब जानती हैं …….न कोई मर्यादा ……न कोई मान …….अरे ! लड़कियों को भी भला इतनी छूट मिलनी चाहिये ! जटिला बुढ़िया थी इसलिये इसे कोई कुछ कहता भी नही था ……….पर जहाँ बात हुयी… जटिला अपनें सतीत्व की महिमा और श्रीराधा रानी को गलत तरीके से प्रस्तुत करना ।
सती क्या होती हैं तुमको पता भी है ? मेरी बहु है सती ……मैं हूँ सती ………इतनी बुढ़िया हो गयी पर आज तक मजाल है किसी पुरुष को देखा भी हो मैने…….ये शिक्षा बचपन से ही मिलनें चाहिये ……हमको मिले …….हमको संस्कार मिले…….अब अगर बचपन से ही लड़कों के साथ नाचना ……घूमना……..फिरना …..अरे ! राम राम !
आज हरितालिका व्रत था …………..तो सब इसी बुढ़िया के घर में ही इकट्ठे हुए थे …………सब स्त्रियों नें व्रत किया था ………..और कथा हरितालिका की सुनानें वाली यही बुढ़िया थी ।
जटिला सुनानें लगी ………………
तू नई आई है ना बरसानें में ?
तो सुन, राधा और उसकी सखियों का संग न करियो …..बिगड़ जायेगी तू……..समझी ?
वो बेचारी नई बहु पूछती – श्रीराधा रानी …….वो तो हमारे मुखिया जी की बेटी हैं ………..उनमें क्या अवगुण है ऐसा ?
क्रमशः …
शेष चरित्र कल ….🙏
👏 राधे राधे👏


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