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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 45 !!
“श्रीराधा की को करे होड़” – एक प्रसंग
भाग 2
तो सुन, राधा और उसकी सखियों का संग न करियो …..बिगड़ जायेगी तू……..समझी ?
वो बेचारी नई बहु पूछती – श्रीराधा रानी …….वो तो हमारे मुखिया जी की बेटी हैं ………..उनमें क्या अवगुण है ऐसा ?
सुन ! ज्यादा कचर कचर मत बोल …………मैं बूढी बड़ी हूँ ……..जो शिक्षा दे रही हूँ सुन ……………कृष्ण के साथ लगी है वो………और बिगड़ गयी है सब बिगड़ रही हैं जो जो इसके संग में है ।
फिर जटिला कहती – अब सुनो कथा, हरितालिका के व्रत की कथा ।
“स्त्री के लिये पति ही सबकुछ होता है ……पर पुरुष का संग ……उसकी चर्चा भी – पाप है ……….
मुझे देखो ! मैं आकाश में चल सकती हूँ ……जटिला कुछ भी बोलती ।
वो सब स्त्रियां चौंक जातीं ।
हाँ मैं झूठ नही कहती ……..मैं आकाश में चल सकती हूँ ।
क्यों ? पता है कैसे चल सकती हूँ ? जटिला ही पूछती ।
“सतीत्व के प्रभाव से ……पति की सेवा करके …….पति के अलावा किसी पुरुष को नही देखना …..और अगर देखना भी है तो भाई, पिता पुत्र इनकी दृष्टि से देखना …….वो बुढ़िया जटिला खूब बोलती ….खूब कहती….उसकी बातों में सिर्फ अपनी प्रशंसा और श्रीराधा की निन्दा ।
हो गयी खतम हरितालिका व्रत और उसकी कथा ………सब प्रणाम करके जटिला के घर से निकलतीं ………फिर बातें हैं …….वो तो कानों से होती हुयी फैलती ही है ………फैली बरसानें में ।
राधा ! बेटी ! कीर्तिरानी नें श्रीराधा को बुलाया ।
राधा ! क्या सुन रही हूँ मैं, ये आज कल ?
क्या सुन रही हो माँ ? मुझे नही पता ……….
तेरी कितनी निन्दा हो रही है बेटी ? तू तो जानती होगी !
बड़े दुःख भरे स्वर में कीर्तिरानी नें कहा । ।
नही, मुझे कुछ नही पता………..श्रीराधा रानी नें मना किया ।
राधा ! वो जटिला है ना ! वो सबके कान भर रही है……..तेरे बारे में कितना भला बुरा कहती है वो ।
कहनें दो ना मैया ! अब ऐसे कहनें वालों का कोई मुँह तो बन्द कर नही सकता ………….उसी समय ललिता सखी आगयी थी ……….उन्होंने ही ये बात कही कीर्तिरानी को ।
वैसे भी उस जटिला बुढ़िया को कोई गम्भीरता से नही लेता !
ललिता बोलती गयी ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल ….🙏
👏 राधे राधे👏
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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 45 !!
“श्रीराधा की को करे होड़” – एक प्रसंग
भाग 3

राधा ! बेटी ! कीर्तिरानी नें श्रीराधा को बुलाया ।
राधा ! क्या सुन रही हूँ मैं, ये आज कल ?
क्या सुन रही हो माँ ? मुझे नही पता ……….
तेरी कितनी निन्दा हो रही है बेटी ? तू तो जानती होगी !
बड़े दुःख भरे स्वर में कीर्तिरानी नें कहा । ।
नही, मुझे कुछ नही पता………..श्रीराधा रानी नें मना किया ।
राधा ! वो जटिला है ना ! वो सबके कान भर रही है……..तेरे बारे में कितना भला बुरा कहती है वो ।
कहनें दो ना मैया ! अब ऐसे कहनें वालों का कोई मुँह तो बन्द कर नही सकता ………….उसी समय ललिता सखी आगयी थी ……….उन्होंने ही ये बात कही कीर्तिरानी को ।
वैसे भी उस जटिला बुढ़िया को कोई गम्भीरता से नही लेता !
ललिता बोलती गयी ।
तुम लोग कृष्ण के साथ…….राधा ! तुम वृन्दावन में रास करती हो ?
कीर्तिरानी नें बड़े स्पष्ट शब्दों में पूछा ।
मैया ! किसकी बातों में तुम आगयीं……..श्रीराधा नें इतना ही कहा ।
तू ज्यादा नही मिलेगी कृष्ण से …..बस !
कीर्तिरानी नें स्पष्ट कह दिया । …….श्रीराधा रानी से यह बात सहन नही हुयी वो रोते हुए अपनें महल में गयीं ।
ललिता सखी नें बहुत समझाया ………पर श्रीराधा कैसे मान लें …….”क्या कृष्ण से मैं अब नही मिल सकूँगी ? ललिते ! फिर मैं कैसे जीवित रहूँगी …………कृष्ण मेरे प्राण हैं …कृष्ण मेरी साँसे हैं …..मेरी धड़कन हैं ……….ललिते ! कुछ कर” ।
हिलकियों से रोती रही थीं रात भर श्रीराधा रानी ।
ललिते ! ललिते !
श्याम सुन्दर नें ललिता सखी को देखा तो दौड़ पड़े उसके पास ।
हाँफते हुए पहुँचे ………..ललिते ! बता ना मेरी स्वामिनी कहाँ हैं ?
मेरी प्राणाधार कहाँ हैं ? बता ना ललिते !
ललिता सखी के पैर ही पकड़नें लगे थे श्याम सुन्दर तो ।
वो बहुत दुःखी हैं ………ललिता नें सजल नेत्रों से कहा ।
पर क्यों ? कारण कौन है ? मुझे बताओ ललिते !
श्याम सुन्दर परेशान हो उठे थे ।
हमारे बरसानें में एक सती है ………उसका नाम है जटिला ………हे श्याम सुन्दर ! वो अपनें आपको सती अनुसुइया के बराबर मानती है ……..वो अपनी बहू को भी सती और पतिव्रता बनाये हुए है…….
ललिता सखी बोले जा रही थी ।
वो जटिला……हमारी श्रीराधा रानी को बराबर तानें देती रहती है ।
नही नही …..सामनें बोलनें की हिम्मत नही है पर बरसानें में सब को कहती है ……….कि राधा बिगड़ गयी है ………वो कृष्ण के साथ है ……तुम्हारा नाम लेकर बेचारी हमारी लाडिली को दुःख दे रही है ।
वो कहती है …….इस छोटी अवस्था से ही जो बिगड़ जाती हैं……..वो पतिव्रता कहाँ हो पाती हैं ? उनमें सतीत्व कहाँ रह पाता है ।
सतीत्व ? पतिव्रता ? कृष्ण हँसे …….हमारी श्रीराधा रानी के बराबर कौन सती है ? हमारी श्रीराधा रानी के बराबर कौन पतिव्रता है ? सती अनुसुइया या महान सती अरुंधती ये भी तो हमारी श्रीराधा रानी की चरण धूलि को चाहती हैं ……हँसे श्याम ये कहते हुए ।
चलो ! स्वामिनी को कह देना……..अब उस “सती जटिला” का उपचार होगा……और पूरा बृज मण्डल देखेगा…….इतना कहकर गम्भीर हो श्याम सुन्दर वहाँ से चले गए थे……….
मौन हो गए थे महर्षि शाण्डिल्य कुछ सोचनें लगे ।
वज्रनाभ नें पूछा ……गुरुदेव ! फिर आगे क्या हुआ ? क्या लीला की जिससे श्रीराधा रानी की महिमा को लोगों नें समझा ?
हे वज्रनाभ ! श्रीराधा रानी की होड़ कौन कर सकता है ?
जिनकी नख चन्द्र छटा से लक्ष्मी उमा सावित्री प्रकट होती हैं ……उनकी होड़ कौन करेगा …………….
पर लीला बिहारी नें एक लीला दिखाई …………सुनो –
शेष चरित्र कल ….🙏
👏 राधे राधे👏

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