🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚 विरही- गोपी- उध्धव छे- संवाद-१०🦚
🌹 भ्रमर -गीत🌹
👉 श्रीकृष्ण – उध्दव संवाल- उध्धव को गोकुल क्यां भेजा ?
🪷 *उद्धव! भैय्या की ऐसी अनेकों बातें हैं, तुम्हें कितनी बाते बताऊँ। तुम माँ को जाकर मेरा समाचार देना कि हम दोनों भाई ब्रज में जल्दी आएंगें।
🦚 “हाथ धर कहत प्रीति जसुमति कि।
मौको दौषि नोद करि लीनो, इनहि दियौ कर ठेलि।
नंदबाबा तब गोद करि कान्ह, खीझ न लागे मौकौ।”
👏 उद्धव जी, आज सारी रात सो नहीं सकें, नींद उड़ गई विचारों में अनेकों प्रश्न उठते ऐसा ब्रज में क्या है जो प्रभु इतने तड़प रहें? करवटे बदलते सुबह होते प्रश्नों में उलझे, सोचते हैं!।
👉 (१) यह ब्रज क्या है?
👉 (२) प्रभु गोप-गोपियों के लिए क्यों तड़पते हैं?
👉 (३) अनपढ़ ग्वालों के लिए इतनी चाह क्यों?👉 (४) माता-पिता, गोपसखा से इतना आत्मीय लगाव क्यों ?👉 (५) राधादेवी कौन, जो हृदय मे बस रही हैं? 👉 (६) राधा ने प्रभु का हरण (दिल) किया क्यों? 👉 (७) ब्रजभूमि से लगाव ज्यादा क्यों?
👉 (८) मथुरापति होने के बावजूद अप्रसन्न क्यों ?
👉 (९) हमारी सेवा मे तो कोई कमी नहीं
👉 (१०) आनंद ब्रज में ही क्यों ?
🙏 उद्धव ! मेरे लिए सर्वस्व त्याग करने वाली गोपियाँ जो अन्य पुरुष को देखती, बोलती तक नहीं है।
*इसलिये
🍁 *तुम मेरा पीतांबर, अंगवस्त्र शृंगार धारण कर जाओ। मेरे प्रिय मित्र मेरा संदेश लेकर ब्रज जाओ।*
सुबह होते ही प्रातः वंदन से निवृत्त हो जल्दी राजमहल में पहुंचे। इधर राजमहल में प्रातः प्रभु उद्धव का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे अतः प्रभु जल्दी तैयार हो बैठे राह देख रहे हैं। उद्धव को आते देख भगवान् ने उद्धव को समझा कर संदेश पत्रों को सौंप दिए और रथ में बैठा (बिराजने) जल्दी जाने को कहा। (चित्र-४)
🍁 “जीव जब जीवपना छोड़ ईश्वर के साथ एकाकार होता है तब ईश्वर भी ईश्वर और ईश्वरपना छोड़ भूल जाते हैं। मथुरापति श्रीकृष्ण आज ऐश्वर्य, वैभव भूल कर उद्धवजी के रथ पीछे कुछ दूर दौड़े।” रथ में बिराजे उद्धवजी ने श्रीकृष्ण को कहा प्रभु आप मथुरानाथ हो। आपका मेरे रथ पीछे दौड़ लगाना उचित नहीं है, आप संतोष कीजिए। मैं सभी ब्रजवासियों, परिवारजनों, सखा, गोप-गोपियाों को समझा-बुझा कर सांत्वना के साथ खुश कर लौटूंगा। अब प्रभु रुककर रथ को जाता देख रुक गये और विचारते हैं, मेरा उद्धव कितना भाग्यवान है जो ब्रज प्रेम भूमि जा रहा है।
उद्धव प्रभु को अपने रथ के पीछे दौड़ते देख बहुत आश्चर्य हो रहा कि “जरूर ही ब्रज मार्ग की (धूल) रज उद्धव पर उड़ने लगी जिनके स्पर्श से उनके मानसिक विचारों में बदलाव महसूस होने लगा। जरूर ही ब्रज में खासियत तो है। इन ब्रजरज का प्रभाव है। इन विचार मंथन के संग ब्रज की ओर रथ अग्रसर हो रहा है।”
प्रभु के मथुरा जाने से ब्रज वीरान, सूना हो गया है। सब कुंज सूख से रहे हैं। गौऊ घास नहीं खा रही ऐसा लगता है। गौ जैसे मथुरा तरफ देख प्रभुदर्षन की चाह में है। कई गायें अपने बछड़ों को दूध नहीं पीने देती हैं। यमुना जल प्रभु विरह में श्याम हो गया ? समस्त ब्रज प्रभु विरह में अकल-विकल नजर आ रहा है।
🌹 बिन गोपाल बैरिनि भई ब्रज, प्रभु तुम्हारे दरस कौ”
भोर होते ही सुबह उद्धवजी को रथ में बिरजा (बैठा) कर ब्रज की ओर रथ प्रस्थान करवाने स्वयं श्रीकृष्ण पधारे।
🌺विरही गोपी भाव-भावना🍁
🪷 भक्त की भक्ति में जब बसंत आता है, तब आँखों में अश्रु फूल है। अश्रुपात से दुःख भूल जाते हैं। भक्ति भाव से गदगद हो बहते अश्रुधारा से सभी पाप घुल नष्ट हो जाते हैं। गोपियों की विरह भक्ति बसंत जैसी है। जिसमें अश्रु से मन, हृदय का मैल साफ़ हो जाता है। जीवन रूपी कपड़े को धोने के लिये कुएं, नदी का जल नहीं चाहिये। निर्मल प्रेमाश्रु की जरूरत होती है। शब्द-स्वर (संगीत) की भाषा जब पूर्ण होने लगे तब भाव प्रेमभक्ति में ही अश्रु शुरू होते हैं (अश्रु-बसंत पुष्प) 🪷🪷🪷 विरही गोपी -११- गोपियों की व्यथा भाव
🪷 क्रिष्णा 🪷🪷🪷

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