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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 46 !!
सती शिरोमणि “श्रीराधारानी”
भाग 3
अच्छा ! चलो अब दावत है तुम्हारी नन्द गाँव, अपनी बहु को भी ले लो …….बरसानें की अन्य महिलाओं नें कहा जटिला से …….जटिला अपनी बहु को साथ में लेकर चल पड़ी थी नन्दगाँव ।
ललिता सखी नें देख लिया…….क्या कारण है, वहाँ नन्द गांव में कि इस जटिला को बुलाया गया है…….चलूँ ! देखूँ मैं !
इतना कहकर चल पड़ी ललिता सखी भी पीछे पीछे जटिला के।
हजारों लोग खड़े हैं यमुना के किनारे………….जटिला गयी वहाँ ………उसकी बहू भी साथ में थी……….
जटिला को बाबा नें समझाया ……..कन्हैया बीमार है ………इसका इलाज यही है कि कोई सती स्त्री अगर इस छिद्र वाले कलश में, केश में पैर रखकर यमुना से जल भर लाये तो कन्हैया ठीक हो जाएगा ।
बस इतनी सी बात……….इस कार्य के लिये तो मेरी बहू ही बहुत है ।
अहंकार में बोली जटिला ।
बहू नें डरते हुये पूछा ……सासू माँ ! कुछ होगा तो नही ?
पगली डरती है ………हम चाहेँ तो काल की गति को रोक दें …….जटिला ये बात सबको सुनानें के लिये जोर से बोली थी ।
सबनें तालियाँ बजाईं ……….उन बाबा नें भी बजाई ।
बहू गयी पहले …………पर ये क्या ? पैर रखते ही उस केश में ……. केश टूट गया और धड़ाम से यमुना में गिरी वो जटिला की बहू ।
सब हँसीं ………बाबा भी हँसें …………पर जटिला झेंप गयी ।
राधा का संग करती है क्या ? जटिला नें अपनी बहू से कहा ।
नही सासू माँ !
देख ! असती के संग से सतियाँ भी गिर जाती हैं …..समझीं ?
हाँ समझ गयी सासू माँ ………. ..सिर झुकाकर खड़ी रही बहू ।
अब देखो ! मैं जाती हूँ ………..आकाश की ओर देखा जटिला नें …..फिर कुछ मन्त्र बुदबुदाई …………….
लाओ ! कलश ……..छिद्र वाले कलश को लिया ……..पर जैसे ही उस केश पर पैर रखा ……………………
ओह ! ये भी गयी ……..तो जटिला सती नही थी ?
ललिता सखी देख कर हँसनें लगीं ………..
सबमें यही चर्चा शुरू हो गयी ……….कि जटिला में कोई सतीत्व नही है ।
अरे ! ये काम तो महासती अनुसुइया से भी नही हो सकता……..ऐसे काम कोई सतियों के लिये होते हैं ? जटिला झेंप कर बोलती रही ।
पर अब सबकी दृष्टि उन बाबा पर टिक गयी थी …………वो बाबा धरती पर बैठ गए थे …..और कुछ आड़े टेढ़े रेखाएं खींचनें लगे थे ।
फिर कुछ हिसाब सा करनें लगे….आँखें मूंदकर बोलते रहे कुछ कुछ ।
“आपके बृज में इतनी बड़ी सती शिरोमणि हैं उनको अभी तक क्यों नही बुलवाया ……….बाबा अब कुछ क्रोधित से हो रहे थे ।
पर बाबा ! सब सतियाँ तो यहीं हैं …………जो परम पवित्र हैं ……किसी अन्य पुरुष को देखती भी नहीं ………..सब यहीं हैं ।
बृजरानी बोलती रहीं …….जटिला, सावित्री अन्य सतियों को वो दिखाती रहीं ………………
नही …..ये नही ……………बरसाना कहाँ है ?
बाबा आँखें बन्दकर के बोले …..मेरी विद्या बता रही है कि बरसानें में कोई महान सती है …………….
मैं ही हूँ बरसानें की महान सती ……..जटिला फिर आगे आई ।
अरे ! तुम नही ……तुम काहे की सती ?
बाबा नें हटा दिया सामनें से जटिला को ।
बरसानें की राधा …..हाँ यही नाम है श्रीराधा ……आँखें बन्दकर के बाबा बड़े आनन्द से बोले थे …………..
ललिता सखी नें सुना………बृजपति नें ललिता की ओर देखा …..बृजरानी नें भी …….तब ललिता मुस्कुराईं और दौड़ी बरसानें की ओर ।
लाडिली ! लाडिली ! लाडिली !
मोर कुटी में बैठीं थीं श्रीराधा रानी ……ललिता सखी दौड़ी गयीं वहाँ ।
क्या बात है ललिते ! इतनी तेज़ दौड़ ? क्यों ?
आपको बुलाया है नन्दगाँव में ……….अभी चलिये लाडिली !
ललिता हाथ पकड़ कर बोली ।
पर क्यों ? क्या हुआ नन्दगाँव में ? श्रीजी नें पूछा ।
श्याम सुन्दर मूर्छित हैं ……दो दिन से मूर्छित हैं………ललिता बोलती गयी ……..पर इससे आगे श्रीराधा रानी नें सुना ही नही …..वो तो नन्दगाँव की ओर चल दीं …..पीछे पीछे ललिता सखी दौड़ रही थीं ।
क्या हुआ इनको ? क्या हुआ मैया ?
सीधे कन्हैया के पास ही गयीं श्रीराधा रानी ……..कन्हैया को छूआ ………फिर बृजरानी से पूछनें लगीं ।
“कोई सती अगर इस सौ छिद्र वाले कलश में जल भरकर, इस केश के पतले तन्तु से चलकर, कलश में जल भरके ले आये …..और उस जल को कन्हैया के मुँह में डाल दिया जाए ……तो …………
वो बाबा बोलते रहे……..पर श्रीराधा रानी नें उन बाबा के हाथों से कलश लिया……और केश के उन पतले से तन्तु पर चलते हुए मध्य यमुना में उस कलश में जल भर लिया ……और लेकर चली आईँ …..
स्वयं आगे बढ़कर श्याम सुन्दर के मुख में , कलश के जल का छींटा दिया ……और जैसे ही छींटा पड़ा…..उठकर बैठ गए श्याम सुन्दर ।
अपनें गले से लगा लिया था श्रीराधा रानी नें श्याम सुन्दर को ।
जटिला का मुख देखनें जैसा था अब ……….चारों ओर से यही आवाज आरही थी ……”सती शिरोमणि श्रीराधा रानी की – जय जय ।
पर इन सब से क्या लेना देना श्रीराधा को ….
…वो तो चल दीं थीं बरसानें की ओर ।
पर ये क्या ! जो कल तक कुलटा, व्यभिचारिणी कहते थकती नही थी वही जटिला अब स्वयं उन श्रीराधा रानी के चरण धूल को अपनें माथे से लगा रही थी……उसकी बहू…..अन्य समस्त बृज की सतीयाँ भी श्रीराधा रानी के चरण धूल से अपनें आप को पवित्र किये जा रही थीं ।
पता है हे वज्रनाभ ! वो बाबा कौन थे ?
महर्षि नें हँसते हुये कहा ……..वो बाबा स्वयं भगवान शंकर थे ……
उन्होंने भी श्रीराधा रानी के चरण रज को अपने माथे से लगाया था ।
आकाश में समस्त सतियाँ इकट्ठी हो गयी थीं…..अनुसुइया, अरुंधती , सावित्री इत्यादि सब श्रीराधा रानी के ऊपर फूल बरसा रही थीं ।
शेष चरित्र कल…🙏
🌸🍃 राधे राधे🍃🌸

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