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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 47 !!
प्रेम की टेढ़ी मेढ़ी पगडंडी
भाग 3
ये संसार नाम रूप में ही तो फंसा है ना ? और नाम रूप, देश काल में है …..और देश काल मन में है ………..अगर मन को ही कोई चुरा ले ….तो “नाम रूप” रूपी ये प्रपंचमय जगत खतम…….देश काल खतम ।
क्यों की ये सब मन में ही रहते हैं ना ! पाप पुण्य खतम …….वाह ! श्रीराधा जी स्वयं बोल रही हैं …..और आनन्दित हो रही हैं ।
अरे ! प्रियतम ! स्वर्ग नरक खतम…….क्यों की इन सबका कारण ही मन है ……बन्धन मुक्ति खतम……मन ही है सबका कारण ।
वाह ! बड़े प्यारे चोर हो तुमतो …………सबकुछ चुरा लेते हो ?
अच्छा ! छोडो ये सब हमें ये बताओ कि ये घाव लगा कैसे ?
श्याम सुन्दर को उस जख़्म की ही ज्यादा फ़िक्र थी ।
क्या हर बात बताना आवश्यक है ? श्रीराधा रानी मुस्कुराके बोलीं ।
हमें नही बताओगी ? श्याम सुन्दर फिर अड़ गए ।
नही , हम चोर को अपना राज़ नही बतातीं ……जाओ !
मन ही मन मुस्कुरा रही थीं श्रीराधा ।
पर उदास से हो गए जब श्याम सुन्दर ……..तब श्रीराधा बोलीं ……अच्छा अच्छा ! सुनो अब ……..ये जख़्म दिया है तुमनें ही …..
पर हाँ …..घाव कम था ………वो तो मैने ही …………….
श्रीराधा रानी नें उस घाव की पपड़ी निकाल दी …………
ये क्या कर रही हो प्यारी ! रोका श्याम सुन्दर नें ।
चार दिन पहले मैं गयी थी नन्द गांव जब तुम बेहोश हो गए थे …..तब मैने ही शत छिद्र वाले कलश से जल भरकर तुम्हे पिलाया था ….और तुम्हे अपनें हृदय से लगा रही थी कि तभी …….तुम्हारे नख से मुझे घाव हो गया …………..
ओह ! पर तुमनें इसमें कुछ दवा नही लगाई …..क्यों ?
श्याम सुन्दर नें पूछा ।
किस पर दवा प्यारे ! श्रीराधा नें कृष्ण को प्यार से छूआ ।
इस पर ? पर ये तुम्हारे लिए घाव होगा …….तुम्हारे लिए जख़्म होगें ….तुम्हारे लिये दर्द होगा ……पर मेरे लिये तो ये दर्द नही है …ये दर्द की दवा है ……….हाँ प्यारे ! मैं तो चाहती हूँ ये घाव कभी ठीक ही न हो ……….इसलिये जब जब ठीक होनें के लिए इसमें पपड़ी जमती है ……मैं कुरेद देती हूँ……….आहा ! आनन्द आता है……..तुम मेरे हृदय में प्रकट हो उठते हो ……….तुम्हारे नख नें इस देह को छूआ ……….ये सोचकर ही मैं प्रफुल्लित हो उठती हूँ …………मैं जब जब इस घाव को देखती हूँ ……तेरी याद आती है ……….तू सामनें होता है ……….फिर क्या कहूँ कि ये दर्द है या दर्दों की दवा है ?
श्याम सुन्दर हिलकियों से रो दिए थे …और अपनी प्यारी को हृदय से लगा लिया था ……अद्भुत प्रेम है श्रीराधा रानी का ……दिव्य प्रेम ।
हाँ …पर इस प्रेम की पगडंडी बहुत टेढ़ी है……हे वज्रनाभ ! इस प्रेम की राह में …..रोना, हँसना है ……हँसना , रोना है ………..दर्द, दवा है ….दवा, दर्द है ………..कुछ नही कह सकते …क्या क्या है !
शेष चरित्र कल…🙏
💕 राधे राधे💕

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