🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚 विरही- गोपी- उध्धव छे- संवाद-१७🦚
🌹 भ्रमर -गीत🌹
🌺 ब्रजराज के प्रश्न से यशोदा हृदय में बिजली सी चोट हुई और वह निराश हो बोली “समझी गई” प्रश्न करती:
👉 १. क्या समझी? ब्रजराज ने प्रश्न कर पूछा?
👉 २. देवकीने आने नहीं दिया होगा?
👉 ३. वो तो आने के लिये तड़प रहा होगा?
👉 ४. देवकी माँ के आगे कन्हैया की नहीं चलती होगी?
👉 ५. पर मैं उसकी माँ नहीं हूँ?
👉 ६. मैं माँ होती तो देवकी उसे नहीं रोक पाती?
👉 ७. मेरा कान्हा पर क्या अधिकार?
🪷 अब नंदराय यशोदा को आश्वस्त कर कहते 👉 “अरे यशोदा तुम्हारे अधिकार की तो सीमा ही नहीं? उस पर वासुदेव-देवकी का भी अधिकार है? अब तो कन्हैया पर मथुरा का भी अधिकार है। अब तो उस पर त्रिलोक सम्पूर्ण का भी अधिकार है यशोदा। इतना स्वार्थी मत बनो यशोदा, अब सिर्फ तुम्हारी गोद में ही न समाई सके, उसे तो त्रिलोक में जाने दो।
नंदबाबा की बातों ने यशोदा को झंझोड दिया बोलते हुए कहते : ये माखन नहीं है कि बेचू। त्रिलोक ने उसके लिए क्या किया ? त्रिलोक कन्हैया को सुलाने के लिए क्या रातभर जागा? त्रिलोक ने क्या कभी उसे हँसना खेलना सिखाया? क्या गोप-गोपियाँ उलाहना देने त्रिलोक के पास कभी गई थी ?
🌻 यशोदा को फिर श्याम का स्मरण आते ही नंदबाबा को कहने लगी “अरे सुनो उसने (कन्हैया) मेरे पास आने की जिद नहीं करी?”
यशोदा के हठ को देख नंदबाबा समझाते आश्वासन देने लगे। यशोदा मथुरा में कन्हैया ने सब मथुरावासियों से मेरे और तुम्हारे नाम की जय बोलने को कहा बता, ये हमारे गौरव की बात नहीं है क्या ? जगत का पालनहार है, उसे तुमने पाला पोसा है बहुत महत्व दिया कोख से ज्यादा तुम्हें चाहता है यशोदा का माखनचोर, नटखट, तुम्हारा अति प्यारा नाम कहलाता है माखन खिलाया तब ही तो कान्हा और दाऊ ने कंस का वध किया विलाप करते रो-रो रही, तो फिर ढाढ़स बंधा नंदराय कहते, विवेक धरो और विश्वास करो। दोनों भाई अवश्य जल्दी ही आने वाले हैं।
🪷 यशोदा फिर कहती :
👉 कान्हा कहाँ गया है?
नंद कहते : वो तो यही गोकुल, नंदगाँव में है। तुम्हारे मन में, गोप-गोपियों, ब्रज वासियों के हृदय में बिराज रहा है। अब तो सिर्फ नंदगाँव का ही नहीं, त्रिलोक का प्यारा हो गया। ये शब्दों को सुनकर नंदबावा नित्य समझाते हैं :
👉 १. मेरे कान्ह को कहाँ छोड़ आये हो?
👉 २. हमारे सम्पूर्ण ब्रजवासियों के प्राण प्यारे को वासु-देवकी ने छीन लिया है उन्होंने ठीक नहीं किया?
👉 ३. मेरा प्राण कान्हा में अटका हुआ है ?
👉 ४. नंदभवन का माखन, दूध, दहीं, छाछ कन्हैया के लिए नित्य वैसा ही रखा रहता है।
👉 ५. अब कोई सखा, गोपी उलाहना नहीं देने आती है, उदास है? मुझे कई वर्षों से ठपका सुनने की आदत सी हो गई है।
👉 ६. कभी गौचारण से आकर शिकायत करता है, गोप बहुत दौड़ाते हैं?
👉 ७. गोप सखा ठंडी रोटी खिलाते, खूब नचाने की शिकायत अब कौन करें ?
👉 ८. क्या इससे दुःखी होकर तो मथुरा चला गया ?
👉 ९. मथुरा जा इतना निष्ठुर कठोर कैसे हो गया क्या हमें भूल गया ? मैं ऐसा नहीं सोच सकती।
👉 १०. यदि में जानती होती तो मथुरा जाने ही नहीं देती नंदबाबा ?
👉 ११. मथुरा वालों ने कहीं जादू-टोना तो नहीं कर दिया ?
👉 १२. नंदबाबा बोले कान्हा खुद शौक से गौ चराने जाता था, मैं नहीं भेजता था, वो स्वेच्छा से जाता था। गौ सेवा करने जाता था?
👉 १३. यशोदा कहती एक बार रस्सी से बाँधा था, उससे रिसकर नाराज तो नहीं है?
👉 १४. माँ नहीं, तो आया माँ की तरह से तो संबंध रख कान्हा ? हमसे क्या गलती हो गई ? हम सब इसके लिए माफी मांगते हैं, बेटा कन्हैया जल्दी लौट आओ ?
🌺 नंदभवन का अब यह नित्यक्रम हो गया है। यशोदा, नंदबाबा, गोपसखा, गोपियाँ विरह में दिन रात बातें कर याद में डूब रहते हैं।🌺 विरही गोपी-१८
🌺🌺🌺🦚🌺क्रिष्णा💃💃🍁💃💃
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