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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 48 !!
प्रेम उपासना है, वासना नही
भाग 3
राधा ! राधा ! राधा ! नाम से गुँजित हो उठी थी ……….
क्यों की शताधिक मोर …..तोता , मैना , कोयल सब एक साथ बोल रहे थे ………श्रीराधा का नाम सुनकर …….और श्रीराधा के ही द्वारा पोषित पालित इन पक्षियों के मुख से श्रीराधा नाम सुनकर ……श्याम सुन्दर के आनन्द का ठिकाना नही रहा ………….वो अपनें आपको भी विस्मृत कर बैठे थे ……..वो श्रीराधा के ही अंग में लुढ़क गए थे ।
कुछ देर रहे श्याम सुन्दर ………..फिर साँझ होनें लगी ……तो नन्दगाँव की ओर चल पड़े थे ।
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आपको एक बात पूछें ?
सखियों में मुँह लगी सखी है ललिता ………ये श्रीराधा रानी से कुछ भी कह देती है …………।
हाँ हाँ …पूछो ….क्या पूछना है ……. श्रीराधा रानी नें कहा ।
हे स्वामिनी ! गलती हो तो क्षमा करना …………बस एक बात पूछनी है कि अभी श्याम सुन्दर आपके कुञ्ज में आकर गए ………….पर हम सब सखियों को एक बात अखरी ……..वही हमें पूछना है ।
हाँ ….हाँ …..कहा ना ! पूछो ! श्रीजी नें फिर कहा ।
आपनें इन मोरों को तोतों को ……अन्य पक्षियों को अपना ही नाम क्या रटवाया ? हे हरिप्रिया श्रीराधे ! आप प्रेम की अधिष्ठात्री देवी हैं ……..फिर प्रेम , कैसे अपनें प्रियतम को छोड़ अपना नाम रटाये ?
आपनें ऐसा क्यों किया ? प्रेम तो पिय के लिए ही समर्पित होता है ना ?
फिर उस प्रेम में …….”हम” कहाँ है ? फिर हमारा नाम क्यों ?
कृष्ण नाम क्यों नही बुलवाया …….राधा नाम क्यों बुलवाया आपनें …….हे प्रेम की देवी ! अपराध हो तो क्षमा करना …… पर हमें इसका समाधान चाहिये ………श्रीराधा रानी से ललिता सखी नें ही ये प्रश्न किया था ।
छोडो ना ! मैं क्या जानूँ प्रेम !
मुझ में तो प्रेम की एक छींट भी नही है …….श्रीराधा रानी नें कहा ।
ना ! आप हम लोगों को बहका नही सकतीं…….आपको उत्तर देना ही पड़ेगा………हम सब की प्रार्थना है……सब सखियों नें ही अब हाथ जोड़ लिए थे ।
अच्छा ! सुनो ! प्रेम को समझ पाना इतना सरल नही है सखियों !
आहा ! प्रेम की देवी आज प्रेम पर बोल रही थीं ।
श्रीराधा रानी नें कहा – हे सखियों ! कृष्ण नाम से मुझे बहुत सुख मिलता है ……………कृष्ण नाम सुनकर ……..कृष्ण नाम कहकर मुझे जितना सुख मिलता है ……..उसका मैं वर्णन तक नही कर सकती ।
पर हे सखियों ! राधा नाम सुनकर मेरे प्यारे को बड़ा सुख मिलता है ……….राधे राधे …..इस नाम को सुनते ही मेरे प्यारे श्याम को इतना आनन्द मिलता है ……मैने देखा है ………वो अद्भुत रस में डूब जाते हैं …………उनके हृदय का आनन्द हिलोरें लेता रहता है…..वो उसी में डूबे रहते हैं …………….
श्रीराधा रानी नें कहा – सखियों ! प्रेम का अर्थ अपना सुख तलाशना नही है ………..हमें अपनें सुख को नही देखना …………श्रीजी नें स्पष्ट किया – सखियों ! प्रेम का अर्थ है……..मेरे प्रिय को सुख मिले …….मेरे प्रियतम सुखी हों ………….और मेरे प्रियतम सुखी होगये ….तो दुनिया में किस दुःख की ताकत है जो हमें दुःखी कर जाए ……..हम तो प्रियतम के सुख में सुखी हैं ………उन्हें जो अच्छा लगता है …..वही हम करेंगीं …………..हे सखियों ! मैं स्वसुख देख सकती थी ……और स्वसुख देखते हुए …….उन पक्षियों के मुख से “कृष्ण” नाम का उच्चारण करवा सकती थी ………..मुझे अपार सुख और आनन्द मिलता जब मेरे प्रियतम के नाम से मेरा कुञ्ज गुँजित हो उठता ……..पर ।
पर सखी ! हमें अपना ही सुख तो नही देखना है ना !
हमारी तो साधना ही यह है ………..वे सुखी रहें ……..उन्हें अच्छा लगे …उन्हें आनन्द मिले …………हमारा क्या है ? हम तो मिट चुकी हैं कबकी …………हमनें तो अपना आस्तित्व ही मिटा डाला है अपनें प्रियतम के चरणों में ………सखी ! देखा नही ! जब मेरे कुञ्ज के ये पक्षी मेरा नाम ले रहे थे …….राधे ! राधे ! राधा ! राधा ! कर रहे थे तब मेरे प्यारे कितनें गदगद् हो रहे थे ओह ! हमें और क्या चाहिये ! हमें तो मिल गया मोक्ष ! हमें तो मिल गयी मुक्ति ……….हमें तो इतनें में ही मिल गया सर्वस्व …..क्यों की हमारा प्रियतम प्रसन्न हो गया ना !
श्रीजी की बातें सुनकर सखियाँ प्रेम के अश्रु बहानें लगीं थीं ……….
और श्रीराधा रानी के चरणों में गिर गयीं….धन्य धन्य हो श्री हरिप्रिया ।
उफ़ ! क्या प्रेम है ! वज्रनाभ !
शेष चरित्र कल…🙏
🙌 राधे राधे🙌
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