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November 22, 2024 11:19 am

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 49 !!-“वो साँवरी सुनारन” – एक प्रेम कहानी भाग 1: Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 49 !!-“वो साँवरी सुनारन” – एक प्रेम कहानी भाग 1: Niru Ashra

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 49 !!

“वो साँवरी सुनारन” – एक प्रेम कहानी
भाग 1

प्रेम क्या है ? यदुकुल नरेश वज्रनाभ नें प्रश्न किया ।

मुस्कुराये महर्षि शाण्डिल्य – “जिसमें समस्त रस, सभी भाव उमड़ते घुमड़ते हो उस रस सागर का नाम ही – प्रेम है ।

प्रेम सबमें है ……प्रेम – विहीन व्यक्ति इस जगत में कोई नही है …..हे वज्रनाभ ! तुम्हे पता है ? ईश्वर नें जब जीव को इस पृथ्वी में भेजा तो जीव का एक ही प्रश्न था ……..”हम संसार में जा रहे हैं ……….पर संसार को तो “अपार” कहाँ जाता है …….उसका पार कहाँ ? हम तो भटक जायेंगें ……….अनन्त जन्मों तक संसार के राग द्वेष में फंसे रहेंगें ……जन्म फिर मृत्यु …..फिर जन्म…….जीव दुःखी हो गया …….फिर बोला…….आप तक पहुंचनें का कोई तो सरल उपाय बता दो …….की आपके पास कैसे आएं ? जीव नें ये प्रश्न किया था ।

हमारे श्रीकृष्ण तो करुणा वरुणालय हैं ………करुणा से भर गए ….अपनें जीव को बड़े प्रेम से देखते हुए बोले …..मेरी एक डोर तुम्हारे पास ही रहेगी…..उस डोर को पकड़ कर जब चाहो मेरे पास चले आना ।

वो डोर क्या है गुरुदेव ! वज्रनाभ नें पूछा ।

वो डोर है प्रेम की डोर ………महर्षि आनन्दित हो उठे ।

और ये प्रेम की डोर जीव के पास रहती ही है …….इसे कृपा करके भगवान नें ही दे दी है ……ताकि इस प्रेम की डोर को पकड़ कर जब चाहे वो जीव जा सकता है ……अपनें सनातन साजन के पास ।

माँ के हृदय में वात्सल्य देकर भेजा ईश्वर नें ……”वात्सल्य रस” प्रेम ही तो है …….हमारे जो मित्र हैं उनमें “सख्य रस” दिया ……..ये प्रेम ही तो है ……हमें पत्नी दी …….हमें प्रेयसि दी……..”मधुर रस” ……कहो या “श्रृंगार रस” कहो…….हे वज्रनाभ ! याद रखो……..निरन्तर उस कृपालु श्रीकृष्ण की करुणा का स्मरण करो ……देखो ! प्रेम के रूप में सबके घट घट में वही बैठ गया है ……..बस कुछ करनें की जरूरत ही नही है ………उसी प्रेम को पकड़ कर वापस जाना है अपनें साजन के घर……अपनें सनातन प्रियतम , सनातन साथी के पास ।

महर्षि नें प्रेम की महिमा का गान किया ।

भान सरोवर के पास से एक सुन्दर साँवरी सुनारन जा रही थी ।

कोई बिछिया ले लो , अरे कोई तो ले लो !

ऐसे वैसी नही है ये बिछिया…….अनमोल रतन जड़े हैं इसमें ……..अरी ! तू तो ले ले ………..देख ! इस बिछिया को मन्त्र तन्त्र से बांध दिया है मैनें……इसको जो लगाकर चलेगी इसकी ध्वनि जिस पति , प्रियतम के कानों में जायेगी ……बस वो तो गुलाम बन गया समझो ।

आहा ! कितना सुन्दर बोलती थी वो साँवरी………सब बरसानें की सखियाँ उसकी आवाज सुनकर बाहर आगयीं……..वो साँवरी थी …….सब देखनें लगीं ……..सुन्दर थी …….नही सुन्दर ही नही ……बहुत सुन्दर थी ……..रँग साँवरा था … …..ज्यादा ही साँवरा था ….।

उसकी आवाज में जादू था ……………साँवरी तो थी पर गजब की लग रही थी ………..किसी अच्छे घर की सुनारन लग रही थी ।

तुम्हारे बरसानें में पानी मिलेगो ? थक गयी थी चिल्लाते चिल्लाते …..”बिछिया ले लो” ……..सुबह से ही तो चिल्लाये जा रही थी ।

तो क्या तुम्हारी बिछिया एक भी नही बिकी ?

एक गोपी पानी ले आयी थी……और पानी पिलाते हुये पूछ रही थी ।

ना जी ! कछु नाय बिको ……………सुनारन बोली ………….

अजी ! हम तो ऐसे ही आय गयीं …………नही तो हम नही जातीं ऐसे वैसे किसी भी गाँव में ……….पानी पी लिया था ……….और वहीँ बैठे बैठे बातें बनानें लगी थी वो सुनारन ।

अब देखो ! हम महलन की सुनारन हैं ……….ऐसे कोई गली कूचे में घूम के बेचवे वारी थोड़े ही हैं ………वो तो आगयीं यहाँ ।

तो क्या कहना चाह रही हो ?

बरसानें की एक गोपी, वो भी तुनक गयी ।

हाँ तो सही कह रही हूँ .

….हमारे इतनें कीमती बिछिया या गाँव में कौन लेगा ?

तू हमारे बरसानें के महल में ना गयी ? गोपी नें फिर पूछा ।

देख लियो बरसाना …….कछु नाय यहाँ ………..हम तो चलीं अब ……

इतना कहकर अपना थैला उठाया सुनारन नें और चल दी ।

अरी ! रुक तो ……….सुन ! महल में चली जा ……….वहाँ खूब तेरी खातिरदारी होगी…….और तेरे सारे गहनें भी बिक जायेंगें ।

बीर ! अब ना बेचनो मोय……..गर्मी में वैसे ही परेशान हो गयी हूँ ।

अच्छा ! रुक तो ………..चल मेरे साथ ! वो गोपी चल दी उस सुनारन के आगे आगे …………..

पर कहाँ ले जा रही है तू ……..सुनारन भी पूछती जा रही है ।

बृषभानु जी के महल में ……..गोपी इतना ही बोली और चलती रही ।

ये सुनारन है ……..पास के गांव से आयी है ………….कुछ गहनें लाई है ………देख लो ……….नही तो ये बातूनी बहुत है ………..यहाँ बरसानें में इसके कुछ भी गहनें नही बिके ना ………तो ये बदनामी करेगी बरसानें की ……..गोपी इतना ललिता सखी को कहकर चली गयी ।

क्रमशः ….
शेष चरित्र कल…🙏

🍃 राधे राधे🍃

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