Explore

Search

November 22, 2024 11:24 am

लेटेस्ट न्यूज़

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी !!-“प्रात समय दोऊ रस लम्पट” – दिव्य झाँकी : Niru Ashra

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी !!-“प्रात समय दोऊ रस लम्पट” – दिव्य झाँकी : Niru Ashra

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी !!

( “प्रात समय दोऊ रस लम्पट” – दिव्य झाँकी )

गतांक से आगे –

“मेरे दधि को हरि स्वाद न पायो “……..

सूरदास जी ने एक पद में इस झाँकी का वर्णन किया है …..श्रीराधा रानी जा रही हैं दधि बेचने …वैसे ये राजकुमारी हैं ये क्यों जाने लगीं दधि बेचने ….पर इनके हृदय में जो प्रेम श्याम सुन्दर के लिए हिलोरे ले रहा है ये उसी के लिए जा रही हैं …पर श्याम सुन्दर को अभी आता नही है प्रेम कैसे किया जाता है ….ये तो बस अपने सखाओं के साथ हंगामा करना ही जानते हैं ….

हंगामा किया ..दधि की मटकी फोड़ दी दही खा लिया इधर उधर बिखेर दिया ..और चले गये …

सूरदास जी कहते हैं – दुखी श्रीराधा अपनी सखियों से कहतीं हैं …..दधि का स्वाद नही पाया हरि ने । फिर कैसे स्वाद मिलता ? सखियाँ पूछती हैं …तो श्रीराधा उत्तर देती हैं ….प्रेम का स्वाद लुटेरों को नही मिलता न हरण करने वालों को मिलता है ….सखी ! प्रेम का स्वाद तो समर्पण में मिलता है …वह मिलेगा भूमिका परिवर्तन से …पीताम्बरी देकर मेरी नीली चुनरी ओढ़ने से ..अपना श्याम रंग छोड़कर गौर रंग में रंगने से …मोर मुकुट त्याग कर चंद्रिका धारण करने से …जब अकुला उठें प्राण कि मुझे अपनी आत्मा से मिलना है ….तब प्रेम का प्राकट्य होता है सखी !

सूरदास जी ने इसका वर्णन किया है । अस्तु ।

प्रेम झीना झपटी नही है …प्रेम जबरन होने वाला व्यापार नही है …प्रेम तो आत्मा की गहराई तक जाकर एक झंझावात पैदा कर दे ..पूर्ण समर्पण है प्रेम । प्रेम होता है या नही होता ..होता है तो पूरा होता है …नही तो होता ही नही है । आत्मा जब पुकार मचा दे …मिलने की छटपटाहट , लगे कि वो मिलें या प्राण निकल जायें ..उस स्थिति में पहुँचकर जब मिलन होता है ….वो “रति केलि” कहलाता है । इसमें द्वैत से अद्वैत की यात्रा होती है …दो , एक हो गये …पर उस निकुँज में सखियाँ हैं ….जो ‘एक’ को फिर ‘दो’ बना देती हैं ….ये सखियाँ हैं …..ये भी समझना आवश्यक है कि – युगल से सखियाँ भी भिन्न नही हैं …युगल का मन ही सखियाँ हैं । जैसे – भक्त न हो तो भगवान कहाँ से हों ? ऐसे ही रसोपासना में सखियाँ न हों तो तो ये युगल सरकार भी न हों । इसलिए इस रसोपासना में सखियाँ मुख्य भूमिका में हैं ….गुरु हैं ।

रसोपासना वालों को प्रातः ध्यान करते समय सबसे प्रथम गुरु सखी का ध्यान करना चाहिए …आपको निकुँज दर्शन , आपको युगल सरकार के दर्शन , और उनके रति केलि का दर्शन …यहाँ तक पहुँचना है तो इसके लिए सखियों को पकड़ो …प्रथम उनका ही ध्यान करो ।

पागल बाबा आज कुछ विशेष प्रसन्न हैं ….वो राधा बाग के लताओं को बड़े प्रेम से देख रहे हैं ….एक मोर वृक्ष से उतर कर बाबा के पास आया ….बाबा उसे छूते हैं …बड़ा प्रेम करते हैं …..वो मोर अपने पंख फैलाता है ….फिर उन पंखों को हिलाता है तो एक पंख उसका गिर जाता है ….गौरांगी मुस्कुराते हुये उठा कर अपने मस्तक में लगा लेती है । बाबा ये देखकर उसे गदगद भाव से प्रणाम करते हैं ….प्रणाम करते हुये उनके नेत्रों में दिव्यता झलक रही थी ।

श्रीहित चौरासी जी का आज तीसरा पद गायन करना है …..गौरांगी पद को देखती है …मुस्कुराती है ….फिर नेत्र बन्द कर लेती है ….और मधुर कण्ठ से उसका गायन …….


                            “प्रात समय  दोऊ रस लम्पट ,

                                                सुरत जुद्ध  जय जुत अति फूल ।

                                श्रम वारिज  घन बिंदु वदन पर ,

                                                              भूषण अंगहिं  अंग विकूल ।

                                  कछु रह्यो  तिलक सिथिल अलकावलि,

                                                               वदन कमल मानौं अलि भूल ।

                                     श्री हित हरिवंश मदन  रँग रँगी रहे ,

                                                                नैंन  बैंन  कटि सिथिल दुकूल ।3 । 

पद का गायन जब पूरा हुआ तब पागल बाबा ने पहले इस पद का ध्यान बताया …..कराया ।


                                              !! ध्यान !! 

प्रातः की वेला है …….सुन्दर सुरभित वायु बह रही है ….पक्षियों ने कलरव करना शुरू ही किया था कि सखियों ने उन्हें रोक दिया । क्यों की इनके कलरव से प्रिया प्रियतम के नींद में विघ्न पड़ जाता ….पक्षियों ने भी जब देखा कि सखियाँ उन्हें मना कर रही हैं और लता रंध्र से वो देख रही हैं …..तो पक्षी भी वहीं आगये …..उन्हें भी देखना है जो सखियाँ देख रही हैं ….चुप ! ललिता सखी मना करती हैं कि बोलना नही । पक्षी शान्त हो गये हैं ….ऋषि मुनि की तरह मौन । सखियों की दृष्टि युगल के जागने पर है …उससे पहले ये उस शयन कुँज में प्रवेश नही करेंगीं । तभी शैया में हलचल हुई …..तो सखियों ने देखा कि प्यारे और प्यारी जाग गये हैं ……इनके जागते ही सखियाँ शयन कुँज में प्रवेश कर गयीं ……ओह ! इनके प्रवेश करते ही प्रिया जू अपने अंगों को नीली साड़ी से छुपाने लगीं……इस दिव्य झाँकी का दर्शन करते हुए “हित सजनी” आगे आईं और अन्य सखियों से कहने लगीं ।

हित सजनी जब बता रही थीं तब सखियाँ ही नहीं पूरा श्रीवन उनकी बातों को सुन रहा था ….लता पक्षी सब सुन रहे थे ….हित सजनी वर्णन करती है ……देखो देखो सखी !


प्रातः की वेला में हमारे “रस लम्पट” युगल जाग गये हैं ……क्या कहा रस लम्पट ? निकुँज की सारी सखियाँ हित सजनी की बात सुनकर हंस दीं ……तो हित सखी बोलीं ….क्यों तुम्हें दिखाई नही दे रहा ? देखो …..दोनों ने रात भर विहार किया है …सुरत सुख खूब लूटा है …रति केलि मचाई है ….फिर भी तृप्त नही हुए ! देखो इनके नयनों में , अभी भी एक दूसरे में डूबने की प्रवल कामना इनके अन्दर है …..इसलिए सखी ! मैंने आज इन युगल को ये नाम दिया है ..”रस लम्पट”…ये सुनकर सारी सखियाँ हंस पड़ीं तो तुरन्त प्रिया जू ने अपने अस्त व्यस्त वस्त्रों को सम्भाल लिया …..तब हित सखी कहती हैं – देखो तो ….इसके श्रीअंग ! कैसी दिव्यता लग रही है ….लाल जू की माला प्रिया के कण्ठ में कैसे आई ? और देखो ! श्रीवन में शीतल हवा बह रही है …और इनके मस्तक में ये मोतियों की तरह पसीने की बूँदे ! अरी ! ये सब प्रेम लीला का प्रमाण है ….अंग के गहने बदल गये हैं …..प्रिया जू का हार लाल जू के कण्ठ में है …और लाल जी की माला प्रिया के कण्ठ में । तभी पक्षी गण आनंदित होकर कलरव करने लगते हैं ..जिसके कारण प्रिया जी और शरमा जाती हैं ।

सखी ! देख ….माथे में तिलक नही है …प्रिया श्याम बिन्दु धारण करती हैं ..और श्याम सुन्दर लाल रोरी ….पर देखो …दोनों के मस्तक में तिलक नही । ललिता सखी ने धीरे से कहा …थोड़ा है ….बाकी पुछ गया है ……वही तो ….हित सखी मुस्कुराती हैं …..बार बार पसीने आने से वो तिलक बह गया……थोड़ा बहुत बचा है । ये कहते हुए कुछ देर के लिए सखियों की दृष्टि ठहर जाती है …वो प्रातः की इस झाँकी का दर्शन करती हैं और सुध बुध खो देती हैं …फिर अपने को सम्भालती हैं …..क्यों की यही सखियाँ हैं जो “रस केलि” की प्रेरक हैं ।

सखी ! देखो …अपने आपको सम्भाला हित सखी ने …फिर आगे वर्णन करने लगीं …..

श्रीराधा जू की अलकावलि तो देखो ….कैसी बिखरी हुई हैं ……पर शोभा दिव्य लग रही है …सखी ! ऐसा लग रहा है बस देखते ही रहें । अरे अरे देखो ! अलकावलि पवन के बहने से इधर उधर हो रहें हैं ….अब तो वो कानों के कुण्डल में जाकर उलझ गये हैं ….सखी ! ऐसा लग रहा है कि ….कमल के पुष्प पर मानों भँवर बैठ गया हो …और अपनी चंचलता को भूल गया हो….वो उड़ना ही नही चाहता अब । सारी सखियाँ मन्त्रमुग्ध होकर देख रही हैं बस ।

हित सजनी सबका ध्यान खींचती हुई कहती हैं …..आहा ! देखो तो प्यारे की पीताम्बरी और प्यारी की साड़ी दोनों ढीले हो गये हैं …..इतना ही नही …अब इनके नेत्रों को फिर से देखो …प्रेम और आनन्द के रंग से कैसे रंजित हो रहे हैं । ये मिले हैं …मिले रहते हैं …पर फिर भी इन्हें लगता है कि अभी तो मिले ही नही । सखी ! इसलिये ये रस लम्पट हैं …..कैसी प्रीत ! कि तृप्ति ही नहीं हैं …पी लिया रस ..फिर भी प्यास बुझी नही …और बढ़ गयी । ये कहते हुए हित सखी एक तिनका तोड़कर फेंक देती है ..ताकि प्रिया लाल के इस नित्य विहार को किसी की नज़र ना लगे ।

पागल बाबा की दशा विलक्षण हो गयी है …..इनकी आँखें रस मत्तता के कारण चढ़ गयीं हैं ।

कुछ देर बाद फिर इसी तीसरे पद का गायन किया जाता है …..सब गाते हैं …..

“प्रात समय दोऊ रस लम्पट , सुरत जुद्ध जय जुत अति फूल”

आगे की चर्चा अब कल –

admin
Author: admin

Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877

Leave a Comment

Advertisement
लाइव क्रिकेट स्कोर
कोरोना अपडेट
पंचांग