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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 49 !!
“वो साँवरी सुनारन” – एक प्रेम कहानी
भाग 3
मेरा हृदय अब ठीक नही है इसलिये मैं जा रही हूँ ……..सुनारन तो जानें लगी ………..।
अच्छा ! अच्छा ! रुक जा …………रुक फिर पूछ के आती हूँ ……..
ललिता सखी फिर गयी ………..और इस बार महल के भीतर से वापस आकर सुनारन को भी ले गयी ।
जब जा रही थी निज महल में साँवरी सुनारन ………तब उसकी ख़ुशी देखनें जैसी थी ………….वो गदगद् भाव से भरी थी ………वो बोलती भी जा रही थी ………..स्वर्ग फेल है …वैकुण्ठ भी तुच्छ है इस बरसानें की शोभा के आगे तो …………..आहा ! कितना दिव्य है ये बरसाना और बरसानें में भी ये लाडिली का महल ………….
बातूनी सुनारन बोलती ही गयी श्रीजी के निज महल में ।
ये रहीं हमारी श्रीराधा रानी …………..ललिता सखी नें दिखाया ।
हे लाडिली ! ये है वो साँवरी सुनारन ………..कह रही है पास के गांव से आयी हूँ ………….आभूषण लेकर आयी है ……..बातें तो बड़ी बड़ी करती है ……बोलती भी खूब है …………..
श्रीराधा रानी नें सुनारन की ओर देखा ……..वो हाथ जोड़े खड़ी थी ।
सुन्दर है ………श्रीराधा जी के मुख से निकल गया ।
हम काहे की सुन्दर हैं …….सुन्दर तो आप हैं !
साँवरी सुनारन नें अब बोलना शुरु कर दिया था ।
आप का ही नाम है ना ! श्रीराधा ! आहा ! मैने आपका नाम बहुत सुना है ………और जब से सुना है तब से ही आपको देखनें की इच्छा थी …….सुनारन बोली ।
आहा ! कितना मीठा बोलती है ………सुनारन ! सच में तू मुझे बहुत अच्छी लगी ……पर तुझे देख कर मुझे ऐसा लगता है कि तेरा और मेरा परिचय जन्मों जन्मों का है……….श्री राधा रानी बोलीं ।
अजी ! ये तो आपकी महानता है नही तो हम कहाँ सुनारन ………
अच्छा ! बता क्या चाहिये तुझे ? श्रीराधा रानी उस के पास गयीं ….और उसका हाथ पकड़ उठाया ………….
बोल ! क्या चाहती है तू ? ध्यान से देखनें लगीं उस सुनारन को ।
ये घुँघराले बाल……..मैने छूए हैं ……..ये कपोल ……….जानें पहचानें से लग रहे हैं…….ये हाथ ……..श्रीराधा जी को रोमांच होनें लगा….
तुरन्त सुनारन नीचे बैठ गयी ……….मैं आपको पायल पहनाऊँगीं ।
पर तू मोल क्या लेगी ? सुनारन का चिबुक पकड़ कर उठाया ।
मोल ? मोल मैं जो कहूँ ………..सुनारन बोली ।
नही ऐसे नही होता …….जो मोल भाव हो पहले ही बता ….ललिता नें स्पष्ट कहा ।
आप बरसानें की राजदुलारी हो ………फिर ये मोल भाव ?
श्रीराधा जी उस सुनारन की एक एक बात पर गदगद् हुयी जा रही थीं ।
अच्छा ! ठीक है ……ठीक है ………..तू जो कहेगी ।
सुनारन खुश हो गयी ………और उसनें अपनें झोला से आभूषण निकालनें शुरू किये ……………
ये पायल………हे भानु दुलारी ! ये है पायल……….
इसमें मेरा हृदय है………लो आपके पांवों को मेरा हृदय सौंपती हूँ ।
पायल लगा दिया सुनारन नें …………..ये कुण्डल ……आपको बहुत जंचेंगे……….लगा दिए कुण्डल ……..ये हार …..शुद्ध मोतियों का हार है ……….बहुत कीमती है ……..आँखें मटकाती हुयी बोली ।
सुनारन ! अब बता क्या लेगी ?
श्रीराधा रानी नें अंतिम में पूछा ।
मुझे हिसाब तो आता ही नही …….इसलिये मैं क्या कहूँ !
साँवरी सुनारन अब मटक रही थी ।
पर तूनें तो कहा था कुछ नही लुंगी ……..ललिता सखी नें कहा ।
गलत बात है ! आप अपनी लाडिली से पूछ लो …….
मैने कहा था ना आपसे ………मोल जो मैं कहूँगी ।
हाँ कहा था …..कहो क्या चाहिये ……..श्रीजी नें मुस्कुराके पूछा ।
मौन ही हो गयी थी कुछ देर तक वो साँवरी……कुछ बोल ही नही पाई ।
अरी ! कुछ तो कह …..क्या दूँ मैं तुझे ।
उठकर खड़ी होगयी …….नेत्र सजल हो गए उस सुनारन के ………जब नयनों को देखा श्रीराधा रानी नें …………तब वो चौंक गयीं ।
मुझे एक बार अपने हृदय से लगा लो ………..नेत्र बरस पड़े थे ।
श्रीराधा रानी बस देखती ही रहीं …………उनके भी समझ नही आरहा था कि ये सुनारन तो पहचानी सी लग रही है ………
प्यारी ! बस एक बार अपनें हृदय से लगा लो ………….फिर वही बात दोहराये जा रही थी ।
श्रीराधा रानी से रहा नही गया ……….वो दौड़ीं ……….और उस सुनारन को जैसे ही गले से लगाया …………………
तुम ? प्यारे श्याम सुन्दर ? आनन्दित हो उठीं श्रीजी ।
ओह ! तो तुम हो……….वही मैं कह रही थी कि इस सुनारन को कहीं तो देखा है…….ललिता सखी नें हँसते हुए कहा ।
प्यारे ! मेरे प्राण ! मेरे सर्वस्व ! क्यों ऐसी लीला करते हो ?
कपोल को छूते हुये श्रीराधा रानी बोल रही थीं ।
तुम्हारे बिना एक पल भी चैन नही आता …………सच प्यारी !
पर ये क्या ? अन्य समस्त सखियाँ भी वहाँ आगयीं ……..और ललिता के कहनें पर सबनें पकड़ लिया ……………….
अब श्याम सुन्दर वहाँ से भाग भी तो नही सकते थे ।
श्रीराधा जी बस हँस रही थीं …….आनन्दित थीं …………क्यों न हों आनन्दित …..उनका प्यारा जो उनके सामनें था ।
नेह की गति अटपटी है………हँसे महर्षि शाण्डिल्य ।
शेष चरित्र कल…🙏
🍃 राधे राधे🍃
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