।। राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” ।।
( हित सखी की कृपा – “ मंजुल कल कुंज देस” )
गतांक से आगे –
आज आनन्द दुगुना हुआ …क्यों की बाबा के साथ गहवर वन की परिक्रमा लगाने का भी अवसर हम सबको मिल गया । बरसाना में वर्षा हो रही है …मोर नाच रहे हैं …पक्षियों के कलरव से वातावरण और मधुर हो रहा है । गहवर वन में बैठ कर सब लोगों ने श्रीहित चौरासी जी का गान किया …..गान में ही सब इतने तल्लीन हो गये कि आगे बढ़ने की कोई सोच ही नही रहा था । कुछ देर बाद बाबा ही उठे और आगे चल दिये …ठीक पाँच बजे श्रीहित चौरासी जी पर कथा होगी …इसके लिए “राधा बाग” पाँच बजे से पूर्व ही पहुँचना है ।
“सखी जू के चरण पकड़ लो”…….बाबा शाश्वत से बोले ।
थोड़ी तेज चाल से मैं बाबा के पास पहुँचा …तो बाबा चलते चलते शाश्वत को उत्तर दे रहे थे ।
मैंने शाश्वत से धीरे ही पूछा …..प्रश्न क्या था तुम्हारा ?
उसने मुझ से भी धीरे ही कहा ….”उस दिव्य निकुँज में प्रवेश कैसे हो”?
देखो , अष्ट सखियाँ हैं ना , इनमें से किसी के भी चरण पकड़ लो …
बस निकुँज में प्रवेश मिल जायेगा । बाबा ने फिर पीछे मुड़कर शाश्वत को कहा ।
शाश्वत कुछ कहता कि बाबा फिर बोले …एक किसी सखी का आश्रय ले लो ..आश्रय लेने का अर्थ है सबसे प्रथम जब प्रातः भजन ध्यान में बैठो तो उस समय उन सखी का स्मरण करो ..उनसे प्रार्थना करो कि आप ही हमें निकुँज में प्रवेश दिला सकती हैं ।
उसी समय गौरांगी भी मेरे पीछे आगयी थी …वो भी बाबा की बातें सुनने लगी थी ।
सखी चाहें तो किसी को भी प्रवेश दिला सकती हैं ? ये मैंने पूछा ।
हाँ , किसी को भी , अधम से अधम को भी ……कोई साधना नही है …बस उसने सखी के चरण पकड़ लिए हैं ….और बस प्रार्थना ही करता रहता है …..फिर कुछ सोच कर बोले बाबा ….ये बात मैं ऐसे ही नही कह रहा …..मुझे श्रीरंग देवि सखी जू ने प्रवेश दिलाया । इतना कहकर बाबा चुप हो गये ….उन्हें लगा कि ये बात नही कहनी चाहिये थी ।
कुछ देर हम लोग “राधा राधा राधा” नाम जाप करते हुये आगे बढ़े ……
फिर तो राधा बाग आही गया ।
सखी जू ही गुरु रूपा हैं …..उनकी कृपा बिना श्रीजी की कृपा भी नही मिलती ।
फिर बाबा बोले – अच्छा सुनो , एक लुटेरा था श्रीवृन्दावन में ….उसका नाम था नरवाहन ।
वो लूटता था …जो व्यापारियों का माल श्रीवृन्दावन से होकर जाता था तो वो टैक्स लेता था …पहले तो यमुना जी बहुत बड़ी थीं ….जल भी बहुत था ..पानी जहाज़ चलते थे ..दिल्ली आगरा प्रयाग आदि व्यापारी लोग नाव से ही सामान लेकर आते जाते थे …तो नरवाहन उन्हें लूटता था ….इसके लोग थे लुटेरे …उन सबका सरदार ये नरवाहन राजा कहलाता था ।
श्रीहित सखी के अवतार श्रीहित हरिवंश महाप्रभु श्रीधाम वृन्दावन आये …..तो इनके साथ इनकी दो पत्नियाँ और श्रीराधा बल्लभ लाल जू थे । ये विवाह इन्होंने भोग वश नही किया था …एक पण्डित जी थे …वही अपनी दो बेटियों को इन्हें दे गये …ये आ रहे थे श्रीवृन्दावन ।
बाबा राधा बाग आगये…और प्रेम से बैठ गये रज में , जहां बैठते थे …
श्रोता लोग बैठे हैं । पाँच बजने में अभी समय है ।
हाँ , तो मैंने कह रहा था …उन पण्डित जी के पास थे श्रीराधा बल्लभ लाल …उन श्रीराधा बल्लभ जू को लेने के लिए श्रीहित हरिवंश जू ने उन दोनों कन्याओं से विवाह किया ….क्यों की वो पण्डित जी बोले थे …इनको तो मैं दहेज में ही दूँगा अपनी बेटियों के साथ । तो उन कन्याओं से विवाह करके श्रीराधा बल्लभ जी को लेकर श्रीहित हरिवंश जू आगये श्रीधाम वृन्दावन । उन दिनों श्रीवृन्दावन सच में ही वन था ….टीले बहुत थे …तो मदन टेर नामक टीले में आकर श्रीहित जू ने उनके ठाकुर श्रीराधा बल्लभ जू को विराजमान कराया ।
पागल बाबा बोले – उन दिनों टीलों पर क़ब्ज़ा था नरवाहन का ….क्यों की यमुना में कौन सी नाव जा रही है , कौन सी आरही है …ये उन के लुटेरे टीले पर चढ़कर ही देखते थे …श्रीहित हरिवंश जी ही पहले थे जिन्होंने निर्भय होकर मदन टेर ही नही ..आगे आगे के टीले भी ले लिए थे । नरवाहन से उनके लोगों ने कहा ….कोई ग्रहस्थ संत है ठाकुर जी सेवा करता है ….उसने हमारे सारे टीले क़ब्ज़े कर लिए हैं …..आप कहें तो हम हटा दें ।
नरवाहन ने कुछ सोचकर कहा …मैं देखता हूँ ।
नरवाहन गये …..वहाँ देखा तो श्रीहित जू दिव्य स्वरूप धारण करके विराजे थे …उनका गौर वर्ण …उनकी कान्ति ….उनकी प्यारी मुस्कुराहट …उनका वो दिव्य आभा मण्डल । उनके अंग से “राधा राधा राधा” नाम प्रकट हो रहा था । नरवाहन देखते रहे …वो सुध बुध भूलने लगे , उस दिव्य रसपूर्ण नाम के श्रवण से ही ये नरवाहन श्रीहित जू के चरणों में गिर गये । और राधा नाम महामन्त्र उन्होंने प्राप्त किया ।
बाबा बोले – शिष्य तो श्रीहित जू के कई हैं …..ओरछा के राजगुरु श्रीहरिराम व्यास जी भी इनके ही शिष्य थे…पर पूर्ण कृपा बरसी ….नरवाहन के ऊपर ।
क्यों ? शाश्वत ने पूछा ।
क्यों की इसकी कोई गति नही थी …..ये तो लुटेरा था …दूर दूर तक मुक्ति की बात छोड़ो स्वर्ग जाने की व्यवस्था भी इसके पास नही थी …क्यों की पुण्य कुछ था नही । इसलिये इन सखी जू ने ….कृपा करके नरवाहन को ……ओह ! सीधे निकुँज में प्रवेश दिला दिया …ये सखी की कृपा थी क्यों की “हित सखी” यही तो हैं ।
फिर राधा बाग को लोगों से भरा हुआ देखा बाबा ने तो कहा ….श्रीहित चौरासी में गोसाईं श्रीहित हरिवंश जी के छाप सारे पदों में है ….बस दो पद में – एक ग्यारहवाँ और बारहवाँ ..में ही “नरवाहन प्रभु” नामकी छाप मिलती है …..जो ये नरवाहन को लेकर हित सखी पहुँच जाती हैं और निकुँज में , जाकर नरवाहन जो दर्शन करते हैं …आहा ! ये साधन साध्य थोड़े ही है ..निकुँज में प्रवेश …इसके लिए तो सखी की कृपा चाहिये ….उसके बिना सम्भव नही है ।
इसके बाद बाबा आज के श्रीहित चौरासी जी का ग्यारहवाँ पद गाने के लिए कहते हैं …गौरांगी मधुर स्वर से वीणा में गायन करती है ।
मंजुल कल कुंज देस, राधा हरि विशद वेस।
राका नभ कुमुद बन्धु , शरद जामिनी ।।
श्यामल दुति कनक अंग , बिहरत मिलि एक संग ।
नीरद मणि नील मध्य , लसत दामिनी ।।
अरुण पीत नव दुकूल , अनुपम अनुराग मूल ।
सौरभ जुत शीत अनिल , मन्द गामिनी ।।
किसलय दल रचित सैन , बोलत पिय चाटु बैन ।
मान सहित प्रतिपद , प्रतिकूल कामिनी ।।
मोहन मन मथत मार , परसत कुच नीवी हार ।
वेपथ जुत नेति नेति , वदत भामिनी ।।
“नरवाहन प्रभु” सु केलि , बहु विधि भर भरत झेली ।
सौरत रस रूप नदी , जगत पावनी ।11 !
मंजुल कल कुंज देश ……………
इस पद गायन के बाद बाबा ने नित्य की तरह इसका भी ध्यान कराया ।
!! ध्यान !!
सुन्दर फूलों का कुँज है ….नील मणि के समान तमाल वृक्ष हैं….उसमें सफेद सफेद फूल लगे हैं वो चमकते हैं तो ऐसा लगता है आकाश में अनगिनत तारे चमक रहे हैं ।
ऋतु वसन्त है …और अब सन्ध्या बीत गयी है रात्रि का आगमन हो रहा है । आकाश में चन्द्रमा पूर्ण है …उस की चाँदनी से पूरा श्रीवन जगमग कर रहा है ….उस समय जो शोभा हो रही है श्रीवन की …..वो तो बस चिन्तन का ही विषय है ।
इधर कुँज की शोभा अद्वितीय है ….कुँज पुष्पों से तैयार किया गया है ….उस कुँज में जो पच्चीकारी है वो भी पुष्पों के कलियों की है …एक प्रकार से फूलों का बंगला ही है ।
कुँज एक नही हैं …छ कुँज हैं …एक प्रवेश कुँज है …वो पीले कमल का है …उसके आगे जो कुँज है …ये सब भीतर ही भीतर हैं …..दूसरे लाल कमल के हैं ….सबमें अलग अलग सुगन्ध है …जो मादकता फैला रही है …फिर नील कमल के …फिर हरित कमल के ….इस तरह कुँज में कुँज ….प्रत्येक कुँज के द्वार पर परदा है , वो परदा भी कलियों का है ।
हर कुँज में …छोटी सी सा जल की बाबडी है ..उसमें भी कमल हैं …..संगीत भौंरे देते हैं …मोरों को प्रवेश है कुँज में …ये चारों ओर घूम रहे हैं । पक्षियों का कलरव और दिव्यता भर रहा है वातावरण में ।
अंतिम कुँज में एक सिंहासन है …वो सिंहासन भी फूलों का ही है ……उसमें सारे रंग के कमल लगे हैं …कमल दल को सिंहासन में सजाया गया है उसी में युगल सरकार बिराजे हैं ।
कुँज का स्थान बड़ा ही मनोरम है ….मनोरम से भी मनोरम है । क्यों की इस कुँज में श्याम सुन्दर और श्रीराधा रानी विराजमान हैं …..सखी ! देखो , इनके ही ऊपर कैसे चन्द्रमा की उजियारी फैल रही है …सीधे चाँदनी इन्हीं के ऊपर बरस रही है …ये कितना सुन्दर लग रहा है ना ?
और हाँ , ये सब तो सुन्दर है ही पर इन सबको भी मात दे रहे हैं श्याम द्युति वाले श्याम सुन्दर और तप्त सुवर्ण के समान अंग वाली श्रीराधा रानी । दोनों विहार करते हैं ना तो जो आनन्द बरसता है वो कह नही सकते । विहार करते हुये ऐसा लगता है काले बादलों में बिजली चमक रही है ।
दोनों के वस्त्र भी तो देखो एक ने पीताम्बर ओढ़ के मानों अपनी प्रिया को ही ओढ़ लिया है और जो प्रिया ने ओढ़नी ओढ़ी है वो ऐसे चमक रही है जैसे श्याम सुन्दर अपनी प्रिया को देखकर आज चमक रहे हैं । अब क्या उपमा दूँ ? अनुराग का जो कन्द है वो ये हैं …अब इसका वर्णन कैसे हो सकता है । सखी ! देख ….शीतल हवा चल रही है यमुना जी का जल भी शीतल हो गया है …वातावरण में शीतलता ही है ….अब जिस कमल दल में ये विराजे हैं …सखी ! वो भी शीतल है …पर श्याम सुन्दर को देखो …वो अपने नयनों से प्रार्थना कर रहे हैं अपनी प्यारी की । क्यों ? दूसरी ने पूछा । इसलिए की इनकी प्यारी आज मान कर रही हैं ….ये मना रहे हैं पर वो मान नही रहीं । ये छू रहे हैं ….पर प्यारी …ना ना ना ही करती जा रही हैं ।
अब मैं समझी ! क्या समझी तू ?
सखी ! कामदेव को ये श्याम सुन्दर रोज मथते थे ना , पर आज वो इन्हें मथ के चला गया । इस बात पर सब हंसी ।
हित सखी के साथ आज नरवाहन सखी भी आई है ….वो इस निकुँज रस को अपने नेत्रों से पीकर उन्मत्त हो गयी है ….वो रस केलि को देखकर उन्मादी हो चली है ….अब वो आगे आई …और बोली …हे प्यारी जू ! हरि से केलि करो । रस में डुबो दो इन्हें ….तुम तो सुरत रस की सरिता हो …बहा ले जाओ इन्हें । डुबो दो प्यारी जू ! क्यों की यही रस जग का मंगल करने वाला है ।
ये बात नरवाहन सखी ने कही थी ।
धन्य हैं ये रसोपासना के आचार्य जिन्होंने सामान्य जीवों पर ये रस बरसाकर कितनी कृपा की …..आपकी कृपा हम पर भी हो …..जय हो जय हो ।
बाबा इतना ही बोले …गौरांगी ने ग्यारहवें पद का फिर से गान किया ।
“मंजुल कल कुंज देस , राधा हरि विशद वेस………
आगे की चर्चा अब कल –
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